हिंदू पंचांग के मुताबिक चैत्र नवरात्रि 2 अप्रेल शनिवार से शुरू हो रहे हैं, वही शनिवार होने और नवरात्रि शुरू होने के चलते मंदिर पर बेतहाशा भीड़ बढ़ने की संभावना है। कोरोना के बाद इस नवरात्रि में भक्तों का बढ़ती संख्या को देखते हुए मंदिर प्रबंधन ने धूमावती माई के दर्शनों का समय और बढ़ा दिया है। अब सुबह और शाम मिलाकर पौने 4 घंटे धूमावती माई के पट खुले रहेंगे, जवकि पिछले शनिवार को 3 घंटे 15 मिनट दर्शन हुए थे।
धूमावती माई के दर्शनों के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को दर्शन हो सके इसके लिए पीतांबरा पीठ प्रबंधन ने व्यवस्था कर दी है पिछले शनिवार को जहां दर्शनों का समय 3 घंटे 15 मिनट कर दिया था। इस शनिवार को यानि कल यह समय बढ़ाकर पौने 4 घंटे कर दिया है। तय समय के मुताबिक धूमावती माई के पट सुबह 7:15 पर खुलेंगे और 9 बजे तक खुले रहेंगे वही शाम को 6 बजे पट खुल जाएंगे और रात 8बजे तक दर्शनार्थी दर्शन लाभ ले सकेंगे। पीठ के प्रबंधक बीपी पाराशर ने बताया कि भक्तों की सुविधा को देखते हुए ट्रस्ट ने निर्णय लिया है।

भगवती धूमावती का इकलौता मन्दिर
पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में ही देश का एक मात्र मन्दिर माँ भगवती धूमावती देवी का मंदिर है। मन्दिर परिसर में माँ धूमावती की स्थापना न करने के लिए अनेक विद्वानों ने स्वामीजी महाराज को मना किया था। तब स्वामी जी ने कहा कि- "माँ का भयंकर रूप तो दुष्टों के लिए है, भक्तों के प्रति ये अति दयालु हैं।" समूचे विश्व में धूमावती माता का यह एक मात्र मन्दिर है। जब माँ पीताम्बरा पीठ में माँ धूमावती की स्थापना हुई थी, उसी दिन स्वामी महाराज ने अपने ब्रह्मलीन होने की तैयारी शुरू कर दी थी। ठीक एक वर्ष बाद माँ धूमावती जयन्ती के दिन स्वामी महाराज ब्रह्मलीन हो गए। भक्तों के लिए धूमावती का मन्दिर शनिवार को सुबह-शाम 2 घंटे के लिए खुलता रहा है। माँ धूमावती को नमकीन पकवान, जैसे- मंगोडे, कचौड़ी व समोसे आदि का भोग लगाया जाता है।
पीताम्बरा पीठ की स्थापना स्वामीजी महाराज ने 1935 में की थी। स्थानीय लोगों के अनुसार स्वामी महाराज ने बचपन से ही सन्न्यास ग्रहण कर लिया था। स्वामीजी प्रकांड विद्वान् व प्रसिद्ध लेखक थे। उन्हेंने संस्कृत, हिन्दी में कई किताबें भी लिखी थीं। इन्हीं स्वामीजी महाराज ने श्मशान के शिवमंदिर पर रहकर पास ही 'बगलामुखी देवी' और धूमावती माई की प्रतिमा स्थापित करवाई थी। पीताम्बरा पीठ के अतिरिक्त यहाँ बना वनखंडेश्वर मन्दिर महाभारत कालीन मन्दिरों में अपना विशेष स्थान रखता है। यह मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है। इसके अलावा इस मन्दिर परिसर में अन्य बहुत से मन्दिर भी बने हुए हैं।
1962 चीन के साथ युद्ध के दौरान हुआ था विशेष यज्ञ
माँ धूमावती मन्दिर के साथ एक ऐतिहासिक सत्य भी जुड़ा हुआ है। सन् 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया था। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। भारत के मित्र देशों रूस तथा मिस्र ने भी सहयोग देने से मना कर दिया था। तभी किसी योगी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से स्वामी महाराज से मिलने को कहा। उस समय नेहरू दतिया आए और स्वामीजी से मिले। स्वामी महाराज ने राष्ट्रहित में एक यज्ञ करने की बात कही। यज्ञ में सिद्ध पंडितों, तांत्रिकों व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यज्ञ का यजमान बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया गया। यज्ञ के नौंवे दिन जब यज्ञ का समापन होने वाला था तथा पूर्णाहुति डाली जा रही थी, उसी समय 'संयुक्त राष्ट्र संघ' का नेहरू जी को संदेश मिला कि चीन ने आक्रमण रोक दिया है। मन्दिर प्रांगण में वह यज्ञशाला आज भी बनी हुई है।
