रेल प्रशासन की ओर से सार-संभाल नहीं किए जाने से कब्रों के चारों तरफ जंगली पौधे उगे हुए हैं। ऐसे में रेलवे कॉलोनी स्थित अंग्रेजों के जमाने के अपनी अनूठी स्थापत्य कलां के लिए प्रसिद्व क्रिश्चयन कब्रिस्तान में आने वाले लोग सरकार की उदासीनता के चलते मायूस होने लगे हैं।
जानकारी के अनुसार 1874 में पहली बार बांदीकुई-आगरा ट्रेन संचालन शुरू हुआ था, लेकिन इससे पहले ही 1802 में अग्रेजों ने आकर रहना शुरू कर दिया था। उस समय यहां क्रिश्चयन परिवारों की संख्या काफी अधिक थी। ऐसे में रेलवे कॉलोनी में क्रिश्चयन कब्रिस्तान का निर्माण किया गया।
यहां वर्तमान में 1812 से कब्रे बनी हुई हैं और करीब 100 से अधिक कबे्रं हंै, लेकिन अब धीरे-धीरे यहां क्रिश्चयन परिवारों की संख्या घटती जा रही है। खास बात यह है कि यहां अजमेर, दिल्ली, जोधपुर, अलवर, जयपुर, दिल्ली सहित कई जगहों से अपने पूर्वजों की जयंती एवं पुण्य तिथि पर क्रिश्चयन समाज के लोग प्रार्थना के लिए आते हैं, लेकिन इन कब्रों के आस-पास काफी मात्रा में जंगली पौधे उगे होने से अपनों की कब्र की पहचान के लिए पहले पौधों की कटाई करनी पड़ती है।
कब्र की पहचान होने पर प्रार्थना कर पुष्प अर्पित करने पड़ते हैं। हालात ये हो गए हैं, कि कब्रिस्तान की एक ओर की सुरक्षा दीवार क्षतिग्रस्त होने से आवारा जानवर विचरण कर गंदगी फैला रहे हैं।
कब्रिस्तान के मुख्य द्वार पर कबाड़ एवं कुल्हड़ बिखरे हुए हैं। अजमेर निवासी छाया विलियम ने बताया कि वह यहां उनकी मां की कब्र पर प्रार्थना करने के लिए आते हैं, लेकिन कब्रिस्तान के हालात देख मन में पीड़ा होती हैं। क्रिश्चयन धर्मावलबी अपनी रीतियों के अनुसार कब्रों को रचनात्मक रूप देने के लिए प्रयासरत रहते हैं, लेकिन सरकार की अनदेखी के कारण कब्रिस्तान देखरेख के अभाव में जर्जर होता दिखाई दे रहे हंै। जयपुर के बिशप लुईस का कहना है कि यहां लोग अपने पूर्वजों की कब्र पर प्रार्थना के लिए आते हैं, लेकिन कब्रिस्तान को विकसित नहीं किया जा रहा है। हालांकि सरकार की ओर से डेढ़ वर्ष पहले बोरिंग लगाया गया था।