नगर में रामधुन की शुरूआत आजादी से पहले आबकारी विभाग में पदस्थ सरदार घनश्याम दास श्रीवास्तव एवं चपरासी देवी नकीब ने की थी। इसका उद्देश्य हिंदू समाज को एकत्रित करना एवं सुख-शांति रहे, यही था। नगर में इसी धार्मिक सोच के साथ रामधुन की शुरूआत हुई और इसमें शामिल लोग हाथों में ढोलक, मजीरा लेकर श्रीराम जय राम जैजै राम की धुन गाते हुए नगर की परिक्रमा लगाने लगे। यह रामधुन हनशंकरी मंदिर से प्रारंभ होकर शीतला माता एवं नगर का भ्रमण करते हुए वापस हनशंकरी मंदिर पहुंचकर रामधुन का समापन होता था और यह प्रतिदिन होता है।
यह परंपरा जारी है
नगर में पीढ़ी दर पीढ़ी रामधुन की परंपरा जारी है। इसके बाद पं. रामनारायण दांतरे, वृंदावन लाल श्रीवास्तव, गिरजाशंकर दूर्वार, कैलाश अग्रवाल, गिरधारी दांतरे, बच्ची नीखरा, डब्बू नीखरा, मन्नी महाते, शीतल प्रसाद दांतरे, शीतल इटौरिया, मघनमल सेठ, बाबू ठेकेदार, रघुवीरशरण खरे, सीताराम नीखरा, बृजमोहन दांतरे, रामप्रकाश सेन, सीताराम कुशवाहा, महेश नीखरा, रमेश गेड़ा, मनमोहन दांतरे, राजेश नीखरा एव नई युवा टीम यह परंपरा जारी रखे हुए है।
हर वर्ष मनती है वर्षगांठ
नगर में आजादी से पूर्व से चली आ रही रामधुन की परंपरा की वर्षगांठ हर साल धूमधाम के साथ मनाई जाती है। इस दिन विशेष रामधुन निकाली जाती है जिसमें भारी संख्या में लोग शामिल होते है और सभी मंदिरों तक रामधुन पहुंचती है। इसके पश्चात कन्या भोज एवं भण्डारा का आयोजन किया जाता है।