script

कोरोना व लॉकडाउन से जब पदरेस में टूटे सपने तो अब गांव में ही सींच रहे उम्मीदों के पौधे

locationदौसाPublished: May 28, 2020 08:54:30 am

Submitted by:

Rajendra Jain

युवा अब गांव में रहकर बदलेंगे तकदीर

कोरोना व लॉकडाउन से जब पदरेस में टूटे सपने तो अब गांव में ही सींच रहे उम्मीदों के पौधे

मानपुर क्षेत्र में युवाओं के द्वारा लॉक डाउन में तैयार की गई खेतीबाड़ी।

मानपुर. कोरोना संक्रमण व लॉकडाउन के चलते अधिकतर लोग परिवार सहित लौट आए। गांव में आने से इन लोगों की दिनचर्या भी बदल गई। अब घरों में लोग पहले की तरह एक साथ बैठकर खाना खाने व टीवी देखने लगे हैं। एक-दूसरे से अपना दुख-दर्द बांटने लगे हैं। पुराने किस्से कहानियों का दौर भी चल पड़ा है। परिवार के लोग रात में बैठकर अंत्याक्षरी, लूडो खेलते हैं। रोजगार के लिए गांव छोड़ गए लोग पहले साल में एक या दो बार तीन-चार दिन के लिए आते थे। अब कई लोगों ने तो फिर रोजगार के लिए शहर लौटने का मानस बदल दिया है। इनका कहना है कि भले ही कम कमाएं, लेकिन अब गांव में ही रहेंगे। यहां सुकून मिल रहा है।
कोरोना के खौफ से टूटे युवाओं के सपने
लॉकडाउन में सारे सपने टूट गए। काम छूटने के बाद महानगरों से मजदूर व युवा गांव लौट चुके हैं। अब वे गांव में ही कुछ करके अपना भविष्य तलाश रहे हैं। कोरोना के खौफ से युवाओं के सपने टूटे तो उम्मीदों को भी पंख लगने लगे हैं। वे सामूहिक रूप से गांव की तस्वीर बदलने और यहीं रोजगार के अवसर पैदा करने की तैयारी में हैं। बुजुर्ग भी बच्चों को परदेस नहीं भेजने की शपथ ले चुके हैं।
वापसी से खुशियों का माहौल
प्रवासियों की घर वापसी से खुशियों का माहौल है। पूरा परिवार एक साथ नजर आ रहा है। कोरोना वायरस के चलते लोग शारीरिक दूरी का पालन करते हुए काम कर रहे थे। लीखली निवासी बनवारीलाल ने बताया कि अब किसी कीमत पर दिल्ली या दूसरे प्रदेश नहीं जाएंगे। गांव में ही मजदूरी करेंगे। रामसिंह गांवड़ी ने कहा कि किसान खेतों से अन्न पैदा करते हैं तो पूरे देश के लोगों की भूख मिटती है। ऐसे में परदेस में नौकर बनने से बेहतर है कि अपने गांव में मालिक बनकर रहें।
युवाओं की सोच बदली
रामभरोसी मीना ने बताया कि लॉकडाउन से शहर छोड़ गांव आए युवाओं की सोच बदली है। प्रेम प्रकाश उमरवाल बताते हैं कि लॉकडाउन में युवाओं का रोजगार छीनने के बाद गांव में ही कुछ कर गुजरने का आत्मविश्वास जगा है। जयपुर से लौटे दिलीप कहते हैं कि अब सामूहिक रूप से गांव में रोजगार की व्यवस्था करेंगे। राधेश्याम सैनी बताते है कि अब अपने गांव-कस्बे में रहकर ही उद्योग लगाएंगे।
गांव में रहकर ही तकदीर तय करेंगे
विश्राम सिंह मरियाडा़ ने कहा कि लॉकडाउन परदेस में काम करने वालों के लिए सबक है। घर-परिवार का महत्व हो या फिर वहां नौकरी कर भविष्य संवारने का भ्रम, सब समझ में आ गया है। अब युवा गांव में रहकर ही अपनी तकदीर तय करेंगे।
शहरीकरण होने की होड़ में आएगी अब कमी
वैश्विक महामारी कोरोना वायरस संक्रमण ने लोगों की सोच को भी बदला है। शहरीकरण होने की होड़ काफी हद तक कम होगी। अपने राज्य को छोडकऱ दूसरे राज्यों में जाकर अपने को सर्वश्रेष्ठता के लाइन में खड़ा करने की सोच बदल रही है। शहरों में काम का तरीका बदलेगा तो रोजगार के अवसर कम होंगे। इसके बाद शहर से गांवों की ओर लौटने और अपने मूल कार्यों के लिए प्रेरित होंगे। इसके बाद एक बार फिर से अपने गांव में अपना काम शुरू करने की होड़ मचेगी। लोगों को अब खेतों सहित परंपरागत कामों में भी शारीरिक दूरी और मास्क लगाकर काम करना होगा- महाराज सिंह गुर्जर सरपंच मरियाडा़।

ट्रेंडिंग वीडियो