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बिना चुनाव कराए ही विदा हो गई सरकार, विकास पर लगा है ग्रहण

locationदौसाPublished: Dec 21, 2018 08:14:05 am

Submitted by:

gaurav khandelwal

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dausa mandi

बिना चुनाव कराए ही विदा हो गई सरकार, विकास पर लगा है ग्रहण

दौसा. आखिरकार प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार कृषि उपज मण्डियों के चुनाव कराए बिना विदा हो गई। पिछले सवा दो वर्ष से प्रदेश भर की 247 कृषि उपज मण्डियों में चेयरमैन एवं बोर्ड सदस्यों की कुर्सियां खाली ही पड़ी हैं। मण्डियों का बोर्ड गठन नहीं होने से न मण्डी परिसरों में विकास हो रहा है और ना ही ग्रामीण इलाकों में। अब देखने की बात यह है कि गत कांग्रेस सरकार ने मण्डियों में चुनाव कराए थे, अब वही सरकार फिर से आ गई तो कब तक चुनाव हो पाएंगे।

प्रदेश की राजनीति में राजनीतिक दृष्टि से काफी अहम माने जाने वाले कृषि उपज मण्डी के सदस्य एवं चेयरमैन पदों की कुर्सियां पिछले दो वर्ष से खाली हैं। सरकार ने राज्य की करीब 247 कृषि उपज मण्डियों में पिछले सितम्बर 2016 से जनप्रतिनिधियों की कुर्सियों को प्रशासकों को सौंप रखी है। यानि चेयरमैन पदों की कुर्सियां आरएएस अधिकारियों के हवाले हैं।

बोर्ड का गठन नहीं होने से न तो कृषि उपज मण्डियों के यार्ड में विकास हो पा रहे हैं और ना ही ग्रामीण इलाकों के किसानों के गांवों में। किसानों को मिलने वाली सुविधाओं पर ग्रहण सा लगा हुआ है। किसान योजनाओं का लाभ लेने के लिए भटक रहे हैं। प्रदेश की सभी कृषि उपज मडियों में पिछला बोर्ड सितम्बर 2016 में भी भंग हो गया था। हालांकि वर्ष 2017 में वर्ष कृषि उपज मण्डियों में चुनावों की लिए सरकार ने तैयारी भी की थी, लेकिन सरकार चुनाव कराने में कामयाब नहीं हो पाई।

महत्वपूर्ण माना जाता है मण्डी चुनाव


कृषि उपज मण्डियों में गठित जनप्रतिनिधियों के बोर्ड में अधिकांश जनप्रतिनिधि ग्रामीण इलाकों से जुड़े रहते हैं। मण्डी का सालाना करोड़ों रुपए का बजट होने के कारण इस पद को विकास की दृष्टि से राजनीति में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। यही कारण है कि राजनीतिक पार्टियां कृषि उपज मण्डी सदस्य एवं उसके बाद चेयरमैन के चुनावों में एड़ी-चोटी का जोर लगाती है। राजनीतिक पार्टियां अपने ही समर्थक का बोर्ड बनवाना चाहती है। सदस्यों की बाड़ाबंदी भी होती है। दौसा कृषि मण्डी चुनाव में भी 2011 में भी यही हुआ था।

कांग्रेस व भाजपा ने जमकर जोर आजमाइश की थी। उस वक्त यहां कांग्रेस पार्टी का विधायक यहां काबिज था, उसी के समर्थक को चेयरमैन का पद मिला था। यह बोर्ड सितम्बर 2016 तक चला, लेकिन भाजपा सरकार के पांच साल निकल ही गए, लेकिन कृषि उपज मण्डियों में चुनाव करा ही नहीं पाई।

पंच-सरपंच करते हंै मतदान


कृषि उपज मण्डियों में चेयरमैन चुनाव से पहले मण्डी सदस्यों का चुनाव होता है। कृषि विपणन बोर्ड चुनाव से पहले वार्ड निर्धारित करते हैं। सामान्यत: सात-आठ ग्राम पंचायतों का एक वार्ड गठित किया जाता है। सदस्यों के लिए होने वाले मतदान में ग्राम पंचायत के वार्ड पंच, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य हिस्सा लेते हैं। जिन वार्ड पंचों की पूरे पांच वर्ष में कोई खास पूछ नहीं होती, उनका मण्डी सदस्य चुनावों के वक्त महत्व बढ़ जाता है।

मण्डियों में नहीं हो रहा है विकास


कृषि उपज मण्डियों में पिछले दो वर्ष से किसान हर काम के लिए भटक रहा है। चाहे दुघर्टना होने पर राजीव गांधी कृषि साथी योजना हो या फि उनके इलाके में सड़कों का विकास कराना हो। मण्डियों के यार्ड में दुकानों आवंटन, पानी, बिजली एवं सड़क समेत कई सुविधाओं की पूर्ति कराना मण्डी प्रशासन का काम होता है।
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