इसका कारण यह बताया जा रहा है कि जब अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हुआ था, उस वक्त विधायक एवं सांसद का मत नहीं डलवाया। जबकि विधायक एवं सांसद भी पार्षदों के समान ही अपने मताधिकार का उपयोग करने का अधिकार रखते हंै।
इस सम्बन्ध में गुरुवार को न्यायालय के आदेश तो नहीं मिले, लेकिन हाईकोर्ट में राजकुमार जायसवाल के अधिवक्ता आर.एन माथुर से पत्रिका ने बात की तो बताया कि जायसवाल ने न्यायालय में याचिका दायर की थी कि अविश्वास प्रस्ताव के लिए हुए मतदान में विधायक एवं सांसद का मत नहीं डलवाया। इस पर न्यायाधीश की बैंच ने सुनवाई करते हुए अविश्वास प्रस्ताव को निरस्त कर दिया है। हालांकि अभी तक न्यायालय के आदेश की कॉपी उपलब्ध नहीं हो पाई है।
तो फिर लगेगा झटका…
नगरपरिषद सभापति का चुनाव शुरू से ही नाटकीय रूप लेता आया है। इस कार्यकाल में पहली बार के चुनाव में भाजपा ने राजकुमार जायसवाल को तो कांग्रेस ने मुरली मनोहर शर्मा को प्रत्याशी बनाया था। उस दौरान कांग्रेस के पास अधिक पार्षद होते हुए भी मतदान में दोनों को बराबर मत मिले। ऐसे में पर्ची से सभापति पद का फैसला किया तो उसमें राजकुमार विजयी हुए।
इसके बाद दो वर्ष पूरे होने से पहले पार्षदों ने जायसवाल के खिलाफ बिगुल बजा दिया। दोनों ही पार्टियों के अधिकांश पार्षदों ने कई दिनों तक भूमिगत रह कर रणनीति बनाई। आखिर 15 दिसम्बर 2017 को उनके खिलाफ अविश्वास आ गया। ऐसे में उपसभापति वीरेन्द्र शर्मा को कार्यवाहक के रूप में सभापति का चार्ज दिया, लेकिन वे भी दो माह भी इस पद पर नहीं टिक पाए कि वीरेन्द्र को भी हटा दिया।
वीरेन्द्र को हटाने के बाद हुए मतदान में भाजपा द्वारा किसी भी प्रत्याशी नहीं बनाने से कांग्रेस के मुरलीमनोहर को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर सभापति बनाया गया।वर्तमान में भी मुरलीमनोहर ही सभापति के पद कार्यरत हैं। हालांकि उपसभापति के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था, लेकिन एक मत से विजयी होकर कांग्रेस के वीरेन्द्र ही उपसभापति बने हुए हैं।