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पशुओं की घटी दूध देने की क्षमता, पशुपालक नजर आने लगे चिन्तित

locationदौसाPublished: Jan 20, 2022 10:49:05 am

Submitted by:

Rajendra Jain

सर्दी का सितम बरकरार

पशुओं की घटी दूध देने की क्षमता, पशुपालक नजर आने लगे चिन्तित

तेज सर्दी से मवेशी का बचाव करते हुए।

दौसा /बांदीकुई. बीते दिनों से सर्दी का सितम लगातार बरकरार है। दिनभर गलन के चलते आमजन का जनजीवन अस्त व्यस्त दिखाई दे रहा हैं।
किसान भी अपनी फसलों के बचाव की जुगत मे दिखाई पड़ता हैं। शीतलहर के चलते किसान हरसंभव प्रयास में जुटा नजर आता हैं। यहीं नहीं पशुपालक भी तेज सर्दी के बीच अपने पशुओं को लेकर ङ्क्षचतित दिखाई पड़ रहे हैं। पशुपालकों का कहना है कि सर्दी के प्रकोप से पालतू पशुओं का हाल बेहाल हैं। दुधारू पशुओं को शीत के प्रकोप से बचाने को लेकर पशुपालक हर प्रकार के जतन में जुटा हुआ हैं। पशुओं की दूध देने की क्षमता घट रही हैं।
पशु चिकित्सालय पहुंच ले रहे सुझाव
भले ही दुग्ध उत्पादन के लिहाज से सर्दी का मौसम पशुपालकों के अनुसार अनुकूल माना जाता है़, लेकिन लगातार गिरते तापमान के बीच दुधारू पशुओं को सर्दी सताने लगती हैं। पशु चिकित्सक की मानें तो तेज सर्दी व शीतलहर के बीच दूध देने की क्षमता में खासा असर पड़ता हैं।
सर्दी से ग्रसित पशुओं के लक्षण
तेज सर्दी के बीच पशु ब्राउन काइटस (निमोनिया), कोल्ड स्ट्रोक (ठंड) सहित अन्य बिमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। जिनके लक्षण नाक से पानी बहना, पेशाब में पीलापन अधिक होना, गोबर की बजाय दस्त होना, ज्यादा समय तक सुस्त बैठे रहना हैं। पशु चिकित्सकों के अनुसार वातावरण में ठिठुरन बढऩे से जैसे आम व्यक्ति की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता हैं। वैसे ही पशुओं पर इसका असर दिखना स्वभाविक है।
ये करें उपाय…….
वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. आनन्द प्रकाश के अनुसार शीतलहर व तेज सर्दी के बीच पशुओं को सर्दी से बचाव के आवश्यक उपाय करने चाहिए। पशुओं को बाड़े में बांधते समय उनका मुंह दीवार की ओर किया जाना चाहिए, प्रतिदिन हर पशु को आधा किलो गुड, ताजा पानी पिलाएं। खल को गुनगुना, हरे चारे का उपयोग कम करें। पशुओं के पास अलाव की व्यवस्था करें। पशुओं पर टाँट या बोरी बांधे। जिससे तेज सर्दी से राहत मिल सकें।
1 लाख 46 हजार 101 परिवारों को औषधीय पौधे वितरित
दौसा . राजस्थान सरकार की घर-घर औषधि योजना अन्तर्गत 1 लाख 46 हजार 101 परिवारों को औषधीय पौधे वितरित किए गए हैं। इसमें तुलसी, अष्वगंधा, कालमेघ एवं गिलोय प्रत्येक प्रजाति के दो-दो अर्थात कुल 8 औषधीय पौधे वितरित किए गए। इस योजना का मुख्य उद्देश्य औषधीय पौधों के उपयोग से लोगों में व्याधिक्षमता बढ़ाना है।
उप वन सरंक्षक वी. केतन कुमार ने बताया कि आवंटित लक्ष्य के विरुद्ध 100.34 प्रतिषत उपलब्धि अर्जित की गई है। गिलोय एन्टीपायरेटिक, एन्टीएलर्जिक एवं इम्यूनिटी बुस्टर औषधि है। तुलसी को पवित्र पौधा माना जाता है। इसका आयुर्वेद के साथ ही एलोपेथिक, होम्योपेथिक एवं यूनानी पैथी में किसी न किसी रूप में औषध के रूप में प्रयोग किया जाता है। कालमेघ एन्टीपायरेटिक एवं वल्ड प्यूरेटिक गुणों से युक्त होने के कारण कुष्ठ, गनोरिया,त्वचा के विकार, सोराईसिस एवं पेट के कीडों तथा टी.बी. में भी असरकारक होता है। सभी प्रकार के ज्वर, प्रमेह, ह्रदय रोग, यकृत के रोगों में उपयोगी औषधि है। अश्वगंधा के प्रयोग से हानिकारक कॉलेस्ट्रोल का लेवल कम होता है। इसे बुद्धिवर्धक रसायन, एन्टिट््यूमर व एन्टिवायोटिक के रूप में उपयोग लिया जाता है। यह तंत्रिका तंत्र को बल प्रदान करने वाला होने के कारण मानसिक विकार जैसे अनिद्रा, हाथ पैरो में टुटन आदि शारिरिक व मानसिक रोगो में उपयोगी है।
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