scriptदौसा में शुरू से ही संवेदनशील रहे छात्रसंघ चुनाव | Students' union elections were sensitive in Dausa | Patrika News

दौसा में शुरू से ही संवेदनशील रहे छात्रसंघ चुनाव

locationदौसाPublished: Aug 13, 2019 08:20:48 am

Submitted by:

gaurav khandelwal

Students’ union elections were sensitive in Dausa: पुराने अध्यक्षों ने बताया अनुभव

Students' union elections

दौसा में शुरू से ही संवेदनशील रहे छात्रसंघ चुनाव

दौसा. प्रदेश के संवेदनशील जिले दौसा में छात्रसंघ चुनाव भी खासी गहमा-गहमी में होते हैं। यह माहौल हाल के वर्षों से नहीं, अपितु दशकों से है। तनावपूर्ण माहौल हमेशा बना रहा। चुनाव शुरू से प्रतिष्ठा का सवाल रहे हैं। राजनीतिक दलों के छात्र संगठन का प्रभाव शुरू से ही यहां देखने को नहीं मिला। जाति, क्षेत्र व व्यक्तिगत छवि के आधार पर ही चुनाव होते रहे हैं। गौरतलब हैकि 2013 में छात्रसंघ चुनाव के दौरान हुई हिंसा आज भी शहरवासियों के मन में बसी है। हालांकि इसके बाद काफी कुछ बदला। गत चार वर्षों से शांतिपूर्णचुनाव सम्पन्न हो रहे हैं। पत्रिका ने कुछ पुराने अध्यक्षों से बात कर अतीत को खंगाला तथा तब व अब के फर्क को उनके अनुसार समझा।
Students’ union elections were sensitive in Dausa


1994 में दौसा पीजी कॉलेज के अध्यक्ष रहे मुरलीमनोहर शर्मा ने बताया कि उनके समय में कईवर्षों बाद फिर से चुनाव शुरू हुए थे। चुनाव के दौरान कड़ा संघर्षरहा। उनको अध्यक्ष पद पर कार्य करने का Óयादा मौका नहीं मिला। जनवरी में चुनाव हुए और मार्चमें परीक्षा हो गई। शर्मा का कहना हैकि दौसा में छात्रसंघ चुनाव के गरमा-गरम माहौल में खास बदलाव नहीं आया है।

1995-96 में दौसा पीजी कॉलेज अध्यक्ष रहे कमलेश झार्राने बताया कि उन्होंने पायल-95 के नाम से कार्यक्रम कराया था। इसमें डीजीपी किशनलाल मीना व जिला प्रमुख डॉ. किरोड़ीलाल मीना शामिल हुए थे। वह कार्यक्रम काफी चर्चित रहा। झार्रा का कहना था कि पहले चुनाव सैद्धांतिक रूप से हुआ करते थे, अब नेताओं के कुछ दूसरे ही लक्ष्य हो गए हैं। पहले क्षेत्रवाद हावी हुआ करता था। अब जातिवाद बढ़ गया है।

1999-2000 में अध्यक्ष रहे वीरेन्द्र शर्मा छोट्या ने कहा कि उनके कार्यकाल में छात्रसंघ उद्घाटन समारोह कराना काफी चर्चित रहा था। समारोह में मंत्री परसादीलाल मीना, सीपीजोशी, विधायक महेन्द्र मीना, शैलेन्द्र जोशी, जिला कलक्टर एमएस खान आदि आए थे। शर्माका मानना हैकि अब नियम बनने से छात्रसंघ चुनावों में सुधार हुआ है। शैक्षणिक माहौल भी सुधरा है।
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