पिता बुजुर्ग व पोते-पोती छोटे होने के कारण इन तीनों परिवारों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी तीनों विधवा हो चुकी बहुओं के कंधों पर आ गई है। मदद की कई जगह गुहार लगाने के बाद भी न कोई सरकारी सहायता मिल पा रही है और न ही कोई भामाशाह इनकी मदद के लिए आगे आ रहा है।
जानकारी के अनुसार भोलाराम सैनी के तीन पुत्र बदरी प्रसाद (33), हरफूल (30) व मुन्नालाल सैनी (28) वर्ष के थे। इनमें से बदरी की 6 वर्ष पहले बीमारी से मौत हो गई। तीन वर्ष पूर्व सिलिकोसिस के चलते हरफूल भी मौत के मुंह में समा गया। गत 26 अगस्त को सबसे छोटे मुन्नालाल को भी मौत लील गई। इन तीनों भाइयों के कुल 10 बालक हैं, जिनकी उम्र 8 से 17 वर्ष के बीच है। तीनों ही पत्थर नक्काशी का काम करते थे।
नहीं मिली कोई सहायता
पीडि़त परिवार की महिलाओं ने बताया कि तीनों के परिवार को किसी भी प्रकार की सरकारी या गैर सरकारी कोई सहायता नहीं मिली है। तीनों की पत्नियां ही मेहनत मजदूरी करबालकों का भरण-पोषण कर रही है।
काफी पैसा खर्च हुआ
पिता भोलाराम ने बताया कि उनके तीनों ही बेटे पत्थर नक्काशी का काम करते थे। बड़े बेटे की मौत के समय तो सिलिकोसिस की जानकारी ही नहीं थी, लेकिन बीच वाले बेेटे ने तो बीमारी के चलते अपना सिलिकोसिस कार्ड भी बनवा लिया था।
कार्ड बनवाने के बाद भी उसको कोई सहायता नहीं मिली। वहीं अधिकारियों की लापरवाही के चलते छोटा बेटा मुन्नालाल को श्रमिक डायरी बनने व कई जगह शिविरों में जाने के बाद भी सिलिकोसिस कार्ड नहीं बन पाया। बीमारी में भी काफी पैसा खर्च हो गया। परिवार पर कर्जा हो गया है।
छप्परपोश में रहने को मजबूर
तीनों मृतकों का परिवार अपने ब”ाों के साथ अलग-अलग छप्परपोश घरों में रह रहे हैं, लेकिन इनका नाम बीपीएल सूची में भी नहीं है और ना ही किसी प्रकार की आवास सुविधा मिल पाई है।
तीनों मृतकों का परिवार अपने ब”ाों के साथ अलग-अलग छप्परपोश घरों में रह रहे हैं, लेकिन इनका नाम बीपीएल सूची में भी नहीं है और ना ही किसी प्रकार की आवास सुविधा मिल पाई है।
अंधविश्वास के चलते रह गया मकान अधूरा
जानकारी के अनुसार तीनों परिवार जब एक ही साथ रहते थे, उस समय एक मकान का निर्माण कार्य शुरू किया था। अंधविश्वास के चलते इन परिवारों ने उसे भी अधूरा छोड़ दिया और छप्परपोश घरो में रहने लगे। उसके बाद से आज तक मकान का काम पूरा ही नहीं हो पाया है।