देहरादून

कैबिनेट के इंतजार में है संशोधित गौवंश संरक्षण अधिनियम

विधि आयोग इसके लिए लंबे समय से सरकार के जवाब का इंतजार कर रहा है…

देहरादूनJan 18, 2019 / 06:29 pm

Prateek

(देहरादून): गौवंश की सुरक्षा को लेकर सरकार कई तरह की योजनाओं पर कसरत कर रही है। इस क्रम में ही सरकार ने विधि आयोग से गौवंश को लेकर एक सख्त कानून पर अध्ययन करने को कहा ताकि गौवंश की जरूरी देखरेख के साथ ही साथ उनकी सुरक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया जा सके। सरकार का मकसद ऐसे पशुओं को लेकर भी रहा है कि जिन्हें पशुपालक जहां-तहां विचरण के लिए छोड़ देते हैं।


कानून मौजूद, नहीं हो रहा सख्ती से पालन

ऐसी बात नहीं है कि उत्तराखंड में गौवंश की सुरक्षा को लेकर कोई कानून नहीं है। कानून है पर इसका पालन सख्ती से नहीं किया जाता है। जिससे गौवंश की सुरक्षा को लेकर समस्या पैदा हो रही हैं। विधि आयोग ने सरकार के सुझाव को काफी गंभीरता से लिया और पिछले 28 अगस्त 2018 को अपनी बैठक में वर्तमान में प्रदेश में लागू गौवंश संरक्षण अधिनियम 2007 में संशोधन करने का निर्णय लिया। साथ ही विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को भी सौंप दी।


उम्मीद में था विधि आयोग, आज तक नहीं लगी मुहर

विधि आयोग को उम्मीद थी कि अगली कैबिनेट की बैठक में गौवंश संरक्षण अधिनियम (संशोधित)-2007 पर मुहर लग जाएगी, लेकिन आज तक उस पर मुहर नहीं लग पाई है। विधि आयोग मानता है कि कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद गौवंश की सुरक्षा काफी सशक्त हो जाएगी।

 

विधि आयोग ने दिए यह सुझाव

विधि आयोग ने गौवंश संरक्षण -2007 की धारा -2 की उप धारा (ज) एवं (झ) और धारा 8 में शहरी क्षेत्रों के अतिरिक्त ग्रामीण और पंचायत क्षेत्रों को भी शामिल करने का भी सुझाव दिया है। ऐसा हो जाने से आवारा पशुओं को आवास, संरक्षण तस्करी या फिर अवैध व्यापार से बचाया जा सकता है। इसके अलावा विधि आयोग ने काल सेंटरों की स्थापना कर टोल फ्री नंबर भी जनहित में जारी करने को कहा है। विधि आयोग ने यह भी सुझाव दिया है कि व्यापक जन जागरण अभियान चलाकर सूचना तंत्र की स्थापना की जाए। साथ ही काल सेंटरों में इस तरह के पशुपालकों की सूचना देने की व्यवस्था की जाए। जो पशुपालक पालतू पशुओं का स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ देते हैं उनका पता लगाया जाए। पहली बार तो पशुपालकों को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाए लेकिन दूसरी बार पशुपालकों को दंडित किया जाना चाहिए।


इसके अलावा सरकार स्वतंत्र विचरण करने वाले पशु चाहे क्यों न पशु आवारा ही हों सभी के लिए सरकारी खर्च पर शेल्टर होम की व्यवस्था की जानी चाहिए। विधि आयोग ने यह भी सुझाव दिया है कि आवारा पशुओं की उचित देखभाल के लिए सेवकों की नियुक्ति की जाए। सेवकों पर यह जिम्मेदारी भी सौंपी जाए कि वे विभिन्न स्थानों से पशुओं को एकत्र कर उनकी देखभाल करें। आवारा पशुओं के लिए पशु चिकित्सालय बनाए जाएं। जहां पशुओं के उपचार की व्यवस्था हो।

 

‘काफी पहले अधिनियम को संशोधित करके सरकार के पास भेजा गया है। अब तक कैबिनेट की मुहर नहीं लग पाई है।’

राजेश टंडन ,अध्यक्ष, विधि आयोग

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