राज्यभर में 176 ऑटामेटिक वेदर स्टेशन
वर्तमान में उत्तराखंड में कुल 176 ऑटामेटिक वेदर स्टेशन स्थापित किए जा चुके हैं। 176 में से करीब 46 आटोमेटिक वेदर स्टेशन अभी हाल ही में स्थापित हुए हैं। बड़ी विडम्बना यह है कि दूर दराज क्षेत्रों में स्थापित अर्ली वेदर स्टेशनों से सटीक रूप से मौसम संबंधी सूचनाएं नहीं मिल रही हैं। जिसमें मुख्यरूप से केदारनाथ में स्थापित ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन भी शामिल है। पिथौरागढ़ की भी यही स्थिति है। इसके अलावा उत्तरकाशी के दूरदराज क्षेत्रों से भी नियमित और स्टीक डाटा उपलब्ध नहीं हो पा रहे है। शेष अन्य जनपदों और शहरों में स्थापित ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन ठीक ढंग से काम कर रहे हैं। आपदा से संवेदनशील ग्रामीण क्षेत्र और जनपदों में इस स्टेशन द्वारा सटीक काम नहीं करने के कारण मौसम संबंधी वास्तविक जानकारी नहीं मिल पा रही है।
2013 की आपदा के बाद शुरू हुआ था काम
केदारनाथ में वर्ष 2013 में आई आपदा के बाद से ही ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन की प्लानिंग उत्तराखंड सरकार ने शुरू की। इस महत्वपूर्ण काम में समय जरूर लगा लेकिन पूरे प्रदेश में ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन स्थापित हो गए। केदारनाथ आपदा को ध्यान में रखकर ही ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन की प्लानिंग वैज्ञानिकों ने की लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आज वहीं पर यह स्टेशन सुचारू रूप से काम नहीं कर रहा है। दरअसल काम नहीं करने के पीछे संचार व्यवस्था भी प्रमुख कारणों में से एक है। हालांकि केदारनाथ में स्टेशन से जुड़े फोन सही काम कर रहे हैं। फोन पर बातचीत भी हो रही है, लेकिन ये फोन डाटा उपलब्ध नहीं करा सकते हैं। इसके लिए वहां लगी उच्च तकनीक स्थापित है।
सटीक जानकारी से हो रहे वंचित
ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन स्थापित करने के पीछे सरकार की मंशा पूरे प्रदेश के बारे में मौसम की जानकारी उपलब्ध कराना है। विशेष रूप से चारधाम सीजन के समय ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन की सूचनाएं तीर्थयात्रियों के लिए बेहद जरूरी होती है। ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन अर्थात अर्ली वेदर वार्निंग सिस्टम से बारिश,तापमान और आद्र्रता के डेटा मिलते हैं। जिसका वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं। उसके बाद ही मौसम वैज्ञानिक यह तय करते हैं कि कहां पर किस गति से बारिश या फिर आंधी या बादल छाए रहेंगे। यदि प्रदेश में स्थापित सभी ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन से डाटा नहीं मिलेंगे तो इन स्टेशनों के स्थापित होने का कोई लाभ नहीं रह जाता है। राज्य मौसम केंद्र इस समस्या को राज्य सरकार तक पहुंचा चुका है। बावजूद अब तक तकनीक में आई खामियों को नहीं सुधारा जा सका है। स्थापित करने का काम राज्य सरकार का है। साथ ही ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन की मानिटरिंग की जिम्मेदारी भी प्रदेश सरकार द्वारा की जाती है। इसके लिए सरकार ने आपदा न्यूनीकरण प्रबंधन केंद्र को इस तरह का सारा जिम्मा सौंप रखा है।
संवेदनशील है मामला
राज्य मौसम केंद्र की जिम्मेदारी केवल ऑटोमेटिक वेदर स्टेशनों से उपलब्ध डाटा पर अध्ययन करके यह बताना है कि कहां किस रफ्तार से बारिश या फिर तूफान आने की संभावना है। यदि सटीक सूचनाएं लोगों को लग जाएंगी तब तीर्थयात्री या फिर लोग अलर्ट रह सकेंगे। फिलहाल इन त्रुटियों से प्रदेश को सटीक लाभ नहीं मिल पा रहा है। राज्य मौसम केंद्र उत्तराखंड के निदेशक विक्रम सिंह ने कहा कि केदारनाथ सहित दूर दराज क्षेत्रों से डाटा उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। जिससे दिक्कतें पैदा हो रही हैं। वैसे भी केदारनाथ काफी संवेदनशील है। यहां पहले भी त्रासदी हो चुकी है।