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Lockdown 2.0: सीजन में नहीं मिलेगी ‘पेटू’ मछली, जानिए इसकी खासियत

locationदेहरादूनPublished: Apr 23, 2020 08:38:26 pm

Submitted by:

Prateek

Lockdown 2.0: की वजह से नहीं पहुंचे मछली के बीज (This Season Pangasius Fish Won’t Available In Uttarakhand)…
 

Lockdown 2.0: सीजन में नहीं मिलेगी ‘पेटू’ मछली, जानिए इसकी खासियत

Lockdown 2.0: सीजन में नहीं मिलेगी ‘पेटू’ मछली, जानिए इसकी खासियत

अमर श्रीकांत
देहरादून: पेटू मछली यानी पंगेसियस मछली का स्वाद इस सीजन में मिलना दुर्लभ नजर आ रहा है। संयोग से कहीं मिल भी गई तो इसका स्वाद चखने के लिए आर्थिक मंदी के दौर में जेब ढीली करनी पड़ेगी।


कोलकाता से मंगाए जाते हैं विशेष बीज…

दरअसल, मार्च महीने में पंगेसियस बीज तालाब में डाले जाते हैं लेकिन इस बार दुर्भाग्य यह है कि पंगेसियस के बीज लाॅकडाउन होने की वजह से उत्तराखंड नहीं पहुंच पाए हैं। करीब 45 से 50 लाख बीज की उत्तराखंड में फिलहाल जरूरत पड़ती है। ये सारे मछली बीज कोलकाता से मंगाए जाते हैं। पंगेसियस मछली की मांग उत्तराखंड में काफी ज्यादा है लेकिन उत्पादन 3500 मीट्रिक टन होने से हर साल ही संकट रहता है। मत्स्य विभाग इस प्रजाति की मछली के उत्पादन को बढ़ाने के लिए मत्स्यपालकों के लिए बीते साल विशेष प्रशिक्षण भी दिलवा चुका है लेकिन लाॅकडाउन की वजह से इस सीजन में किसानों को लाभ मिलने की उम्मीद नहीं है। देहरादून, उधमसिंह नगर और हरिद्वार जिले में सबसे ज्यादा पंगेसियस मछली का उत्पादन होता है।


यह है पेटू मछली की खासियत…

मीठे पानी की जलधाराओं में पलने वाली पंगेसियस मछली एक कांटे वाली होती है। मात्र 7 महीने में इस मछली का वजन एक से सवा किलोग्राम तक हो जाता है। अक्टूबर-नवम्बर से इसकी बिक्री भी शुरू हो जाती है। प्रतिकिलो ग्राम 120 से 130 रुपए में यह मछली उत्तराखंड में उपलब्ध हो जाती है। ज्यादा महंगी नहीं होने की वजह से उत्तराखंड में पंगेसियस मछली की खपत काफी ज्यादा है। इस मछली की खासियत यह है कि शुरूआती दौर में यह घोंघा या फिर छोटी-छोटी मछलियों को खाने में रूचि ज्यादा दिखलाती है लेकिन बाद में यह खुद शाकाहारी बन जाती है। इसलिए उत्तराखंड के मत्स्यपालक पंगेसियस मछली को भोजन में मकई और चावल को पका कर तालाब में डालते हैं।


किसान फरवरी में ही पंगेसियस मछली के भोजन की व्यवस्था भी कर लेते हैं। पंगेसियस मछली दिनभर खाती रहती है, इसलिए मत्स्य पालक इसे पेटू मछली भी कहते हैं। फरवरी में ही तालाब में जैविक खाद भी डाला जाता है। इसके अलावा संक्रमण नहीं फैले इसलिए प्रचुर मात्रा में चूना भी डाल दिया जाता है। मत्स्यपालकों ने पूरी तैयारी कर ली है लेकिन अब यदि लाॅकडाउन खुल भी जाता है तो तालाबों में बीज डालने से कोई फायदा किसानों को नहीं पहुंचने वाला है, क्योंकि बीज डालने का समय मार्च में ही होता है।


‘पंगेसियस मछली के बीज लाॅकडाउन की वजह से नहीं पहुंच पाए हैं। लिहाजा, उत्पादन संभव नहीं है। मंगलौर में मत्स्य बिक्री के लिए नई मंडी बनी है। लाॅकडाउन खुलते ही मत्स्य पालकों के लिए इसे खोला जाएगा।’ -एचके पुरोहित, डिप्टी डायरेक्टर, मत्स्य विभाग

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