शिमला में आयोजित कार्यशाला के समापन के बाद अंतिम कार्याशाला का आयोजन उत्तराखंड में किया जाएगा। उसके बाद उत्तराखंड की अगुवाई में आपदा से बचाव और राहत को लेकर एक मास्टर प्लान तैयार किया जाएगा। यह मास्टर प्लान केंद्र को भेजा जाएगा। वहां से हरी झंडी मिलने के बाद उक्त मास्टर प्लान पर काम शुरू होगा। दरअसल हर साल न केवल उत्तराखंड बल्कि देश के अधिकतर पर्वतीय राज्यों के अलावा उत्तरप्रदेश और बिहार में बाढ़ की वजह से काफी संख्या में जानमाल की क्षति होने के साथ ही इन राज्यों को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है।
आपदा की वजह से चार हजार करोड़ का नुकसान…
पिछले चार सालों में प्राकृतिक आपदा की वजह से पूरे देश में साढ़े तीन हजार करोड़ से चार हजार करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ है। हर साल यह आर्थिक नुकसान बढ़ता ही जा रहा है। आपदा के लिए गठित विशेषज्ञ कमेटी ने केंद्र को सुझाव दिया था कि पर्वतीय और मैदानी राज्यों के लिए अलग—अलग मास्टर प्लान की आवश्यकता है। वैज्ञानिकों के उक्त सुझाव को ध्यान में रखकर भू वैज्ञानिक आपदा राहत और बचाव को लेकर कसरत कर रहे हैं। शिमला से पहले सिक्किम में भू गर्भीय वैज्ञानिकों ने इस पर मंथन किया है। सिक्किम में आयोजित कार्यशाला में पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था।
यह वैज्ञानिक लेंगे हिस्सा…
शिमला में आयोजित कार्यशाला में एनजीआरआई हैदराबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.वीके गहलौत, ज्योलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के वैज्ञानिक डा.अतुल कोहली,एसएएसई चंडीगढ़ के वैज्ञानिक डा.ए.गंजु के अलावा डा.हेमंत विनायक,डा.शैलाष कुमार अग्रवाल,प्रो.रवि सिन्हा,अनूप कारानथ,डा.केजे रमेश,डा.मृत्युंजय महापात्रा,प्रो.वरूण दत्त,प्रो.जीवीआर मूर्ति,डा.पीयूष रौतेला, बीबी गडनायक जैसे विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया है। इन वैज्ञानिकों के अलावा विश्व बैंक और केंद्र के भी प्रतिनिधि भी कार्याशाला में मौजूद रहेंगे। भू वैज्ञानिक प्रो.एस बिष्ट का कहना है कि आपदा राहत और बचाव को लेकर मंथन किया जा रहा है। हर साल ही भूस्खलन और बाढ़ करोड़ों का झटका राज्यों को लगता है। आर्थिक नुकसान को किस तरह से कम किया जाए। मास्टर प्लान में उत्तराखंड की भूमिका अहम होगी।
आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के अधिशासी निदेशक डा.पीयूष रौतेला का कहना है कि आपदा के दौरान बचाव और राहत बेहद महत्वपूर्ण होता है। आपदा प्रबंधन के लिहाज से उत्तराखंड की व्यवस्था काफी बढिय़ा है। वैज्ञानिकों के सुझावों पर अमल किया जाएगा।