वे कहते हैं कि पहली बार भाग लेने के कारण कई नियमों की जानकारी नहीं थी। अब पूरी जानकारी हो गई है। अगली बार निश्चित रूप से गोल्ड मेडल प्राप्त करूंगा। शहर के न्यू कालोनी मोहल्ले के रहने वाले हिमांशु कुमार सिंह दवा व्यवसाय से जुड़े हैं। वे विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय रहते हैं। डाक टिकट रखने का शौक उन्हें बचपन में ही लग गया। हिमांशु की माने तो पहली बार बुआ के यहां से एक चिट्ठी पर चिपके पांच रुपए के टिकट को अपने पास रखा।
इसी तरह चिट्टी आती गई और हिमांशु लिफाफे पर चिपके टिकटों को रखते गए। उम्र बढ़ने के साथ शौक और बढ़ता गया। फिर जहां भी मौका मिलता हिमांशु टिकट खरीदते और उसका संग्रह करते। पहले स्कूल, फिर जिले स्तर के आयोजनों में अपने डाक टिकटों की प्रदर्शनी लगाई। थोड़ी बहुत चर्चा हुई तो फिर हिमांशु इसमें पूरी तरह रम गए। वर्ष 2000 में पहली बार गोपेक्स में डाक टिकटों की प्रदर्शनी लगाई।
उसके बाद तो यह सिलसिला चल पड़ा और प्रदेश स्तर की प्रदर्शनी में कई बार गोल्ड मेडल जीता। हिमांशु को इस साल पहली बार नेशनल डाक टिकट प्रदर्शनी में भाग लेने का मौका मिला। 30 नवम्बर से चार दिसम्बर तक मुम्बई के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में यह प्रदर्शनी आयोजित हुई थी। इसमें प्रदेश से छह डाक टिकट संग्रहकर्ताओं ने भाग लिया था। हिमांशु ने महात्मा गांधी पर आधारित अपने डाक टिकटों का संग्रह लगाया था। गांधी-मैन आफ द मिलेनियम थीम पर हिमांशु ने पांच फ्रेम लगाए थे। इन फ्रेमों में उन्होंने महात्मा गांधी के जीवन, विभिन्न आंदोलनों व उनके निधन के बाद 1848 में जारी डाक टिकटों को शामिल किया था। हिमांशु कहते हैं कि इसके पहले कभी भी नेशनल प्रदर्शनी में नहीं गया था। इसलिए कई चीजों की जानकारी नहीं थी।
सामग्री होते हुए भी जानकारी के अभाव में कई चीजों को प्रस्तुत नहीं कर सका। बावजूद इसके जूरी के सदस्यों ने हिमांशु के इस संग्रह की प्रशंसा की तथा उन्हें सिल्वर-ब्रांच मेडल मिला। नेशनल स्तर पर पहली ही बार में पदक जीतने वाले हिमांशु का लक्ष्य अन्तराष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी में भाग लेना है। नेशनल स्तर पर गोल्ड व रजत जीतने वालों को इसमें भाग लेने का मौका मिलता है। नेशनल स्तर पर प्रदर्शनी का आयोजन चार वर्ष पर होता है। हिमांशु कहते हैं कि अब मै अपनी कमियों को जान गया हूं। उन कमियों को दूर करने का काम मैने वहां से लौट कर आने के बाद ही शुरू कर दिया है। उन्हें विश्वास है कि अगली नेशनल प्रदर्शनी में गोल्ड मेडल जीतेगें और अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में भाग लेने का उनका सपना जरूर पूरा होगा।
हिमांशु ने अपने डाक टिकटों की पहली प्रदर्शनी गोपेक्स 2000 में लगाई थी। इसके बाद कुशीपेक्स 2005 में भी भाग लिया। फिर जिले व मंडल स्तर पर डाक विभाग की ओर से लगने वाली हर प्रदर्शनी में वे भाग लेने लगे। इस बीच वे जहां भी जाते वहां से डाक टिकट जरूर खरीदकर लाते। इनके पास महात्मा गांधी, रोटरी इंटरनेशनल, जंग ऐ आजादी, कालेज स्कूल, फाना एण्ड फ्लोरा के डाक टिकटों का अच्छा संग्रह है। आज उनके पास लाखों रुपए मूल्य के हजारों डाक टिकट है।