सूर्य प्रकाश राय
देवरिया. देश 70 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है । देश और प्रदेश की राजधानियों से एक बार फिर विकास की नई गाथा गढ़ी जाएगी लेकिन सही मायनों में विकास की किरणें सुदूर गाँवों तक नही पहुँच सकी हैं । जिले के रुद्रपुर विधानसभा के विकास पर नजर डालें तो कुछ ऐसा ही दिखता है । 2011 की मतगणना के अनुसार 4,39,763 लाख की आबादी वाले इस क्षेत्र में साक्षरता का प्रतिशत अपेक्षाकृत नही बढ़ सका । सरकारी आंकड़ों की माने तो तहसील क्षेत्र में 59त्न पुरुष तो 49त्न महिलाएँ ही साक्षर घोषित हैं लेकिन हकीकत इसके विपरीत ही नजर आता है । यहाँ स्थित भगवान शिव की एक प्राचीनतम मन्दिर श्री दुघदेश्वर नाथ के नाम में काफी मशहूर है ,इससे रुद्रपुर की अलग पहचान है । रुद्रपुर से सटे राजा सतासी राज का पुराना किला आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है ।
रुद्रपुर क्षेत्र के विकास की बात करें तो इस इलाके में ऐसा कुछ होता नही दिखा जिससे ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं और महिलाओं को रोजगार मुहैया करवाया जा सके । सन् 1962 से पिछले विधानसभा 2012 तक के 14 निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने इलाके में ऐसा कोई विशेष कार्य करने में रुचि नही दिखाई । शायद विकास के अनछुए दर्द के कारण ही रुद्रपुर विधान सभा क्षेत्र के लोगों ने हर चुनाव में अपना जनप्रतिनिधि बदल दिया । हाल के पाँच विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो 1993 में जनता ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी मुक्तिनाथ के पक्ष में अपना मतदान किया तो 1996 में भाजपा के जय प्रकाश निषाद विधायक बन गए ।
फिर 2002 के चुनाव में सपा के बदले हुए प्रत्याशी अनुग्रह नारायण उर्फ़ खोखा सिंह को अपना नेता चुन लिया । 2007 में बसपा के नेता सुरेश तिवारी विधायक चुने गए तो 2012 में कांग्रेस के नेता अखिलेश प्रताप सिंह यहाँ से विधायक निर्वाचित हुए । नाली , सड़क और खडंजा को ही विकास की धुरी मान चुके नेता अपनी उसी सीमा तक केंद्रित रहते हैं । अपने चुनिंदा ठीकेदार छाप कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने के चक्कर में अन्य जनोपयोगी कार्यक्रमों की चर्चा भी नही होती दिखती है । रुद्रपुर इलाके के एक हिस्से पर प्रतिवर्ष बाढ़ का प्रकोप बना रहता है ।
घाघरा नदी की विकरालता से प्रतिवर्ष काफी बड़ी मात्रा में फसलें भी चौपट हो जाती हैं और जब तक नदी में पानी के उतार चढ़ाव का क्रम जारी रहता है पूरा रेता क्षेत्र रात्रि जागरण करता ही नजर आता है । ये समस्या दशकों पुरानी है लेकिन इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए सरकारी स्तर पर कोई बातचीत या चर्चा होती नही दिखती । ख़ास बात यह है कि अधिकारी भी जनोपयोगी विकास कार्यक्रमों की चर्चा करने के बजाय नेताओं की ही हां में हां मिलाते दिखते हैं ।
मिशन 2017 की एक बार फिर चुनावी रणभेरी बजने के बाद सभी राजनितिक दल मैदान में उतरे दिखाई दे रहे है । भाजपा ने अभी यहाँ प्रत्याशी के नाम का खुलासा नही किया है लेकिन अन्य दलों में प्रत्याशी के नाम लगभग तय माने जा रहे हैं । कांग्रेस अपने पुराने उम्मीदवार और पिछले चुनाव में निर्वाचित विधायक अखिलेश प्रताप सिंह पर ही दाँव लगाने की जुगत में है । बसपा और सपा भी अपना प्रभाव बनाते दिख रहे हैं लेकिन अंतोगत्वा देखने वाली बात यह होगी की इस अति पिछड़े इलाके में मोदी की लहर भारी पड़ती या फिर अखिलेश की या कोई जातिगत गणित इन सब पर भारी पड़ता है ।