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चंद रुपयों के लिए सिलाई करती थी, साहबों की मेहरबानी से करोड़ो की संस्था की संचालिका बनी

locationदेवरियाPublished: Aug 11, 2018 02:36:07 am

कुछ हजार रुपयों के लिए कभी संघर्ष करने वाली एक महिला का करोड़ों के टर्नओवर वाली संस्था की संचालिका

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महज कुछ हजार रुपयों के लिए कभी संघर्ष करने वाली एक महिला का करोड़ों के टर्नओवर वाली संस्था की संचालिका बनने की कहानी सफेदपोशों व नौकरशाहों की खास मेहरबानी की कहानी बयां करती है। यह कहानी भ्रष्टाचार के उस गठजोड़ की दास्तां भी है जिसमें न जाने कितनी बहु-बेटियां ऐसे माध्यमों से समाज के रसूख वाले लोक व तंत्र के शामिल लोगों के लिए मन बहलाने का सामान बनी।
गिरजा देवी की कहानी शुरू होती है देवरिया के भटनी से। जहां की चीनी मिल में इनके पति मोहन त्रिपाठी कार्यरत थे। खुखुंदू के रुपई गांव की रहने वाली इस महिला की शादी इसी क्षेत्र के नूनखार गांव के मोहन त्रिपाठी से हुई थी। देवरिया शहर में रहने वाले एक व्यक्ति बताते हैं कि शादी के बाद घरखर्च के लिए गिरजा ने सिलाई-कढ़ाई केंद्र खोल लिया था। हुनरमंद गिरजा ने छोटे से कस्बे में ट्रेनिंग शुरू की तो लोगों की खूब सराहना मिली। चूंकि, यह बेहद मृदुभाषी थी इसलिये लोग इनके बात व्यवहार से भी प्रभावित होकर अपनी बच्चियो को यहाँ भेजने लगे। लोकप्रियता बढ़ी तो कई अधिकारी व सफेदपोश भी संपर्क में आये। इसी बीच चीनी मिल बंद हो गई और पति बेरोजगार हो गए। दो बेटियां व एक बेटे की भी जिम्मेदारी थी।
खुखुंदू क्षेत्र के रहने वाले एक व्यक्ति के अनुसार तंगी से निजात पाने के लिए मददगार भी कई सामने आए। संपर्क तो थे ही एक अधिकारी के माध्यम से वह समाज कल्याण विभाग तक पहुंच गईं।
लोग बताते हैं यहां उन्होंने कुछ अधिकारियों के माध्यम से पहले सिलाई-कढ़ाई प्रशिक्षण के लिए कुछ अनुदान लिया। गिरजा देवी जानती थी कि बिना किसी फायदे के कोई भी सरकारी मुलाजिम कुछ मदद नहीं करेगा। बताया जाता है कि वह अन्य एनजीओ से बढ़कर हिस्सा देने लगी और काम हथियाने लगी। इधर, बीच वह सामाजिक व राजनैतिक दायरा भी बढ़ाने लगी। अब गिरजा देवी समझ चुकी थी कि बड़ा काम हथियाने के लिए बड़ी जगह आना होगा। वह देवरिया सपरिवार शिफ्ट हो गई। शहर के एक कालोनी में वह बाल व महिला गृह चलाने लगी। इस प्रकरण को जानने वाले लोग बताते हैं कि इस आश्रय गृह पर रोज किसी न किसी बड़े अफसर-समाज के प्रतिष्ठित लोगों का आना जाना लगा रहता था। तमाम अनजाने लोग भी आने लगे। लड़कियों व महिलाओं के आश्रय गृह पर शाम व रात में लोगों का आना मुहल्ले वालों को खटकने लगा। कुछ वक्त बाद लोग आपत्ति करने लगे। विरोध शुरू हुआ तो इस आश्रय गृह को स्टेशन रोड के एक बड़ी सी बिल्डिंग में किराए पर शिफ्ट कर दिया गया। यह साल 2009 का साल था। गिरजा देवी अब शहर से लेकर लखनऊ व दिल्ली के विभिन्न विभागों में नामचीन समाजसेविका हो चुकी थीं। देवरिया में कई संस्थाएं उनकी संचालित हो रही थी। शहर में कोई सामाजिक कार्य प्रशासन उनके सहयोग के बिना नहीं करता। आश्रय गृह पर आनेजाने वाले रसूखदार लोगों की आमद बढ़ती गई और संस्था को अधिकतर प्रोजेक्ट भी मिलते गए। वह देवरिया से गोरखपुर में भी अपनी संस्था की शाखाएं खोल ली थी।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता जफर अमीन डक्कू बताते हैं कि काली सूची में संस्था होने का बाद भी इस संस्था को कौशल विकास मिशन में भागीदार बना दिया गया। यह सरकार व अधिकारियों की मेहरबानी का ही नतीजा है।
भाष्कर गली में रहने वाले बताते हैं कि इस आश्रय गृह में तमाम बड़े लोगों का आना जाना लगा रहता था। शहर के बड़े अफसर आये दिन यहां आते थे। पुलिस में इनका दखल बहुत हो चुका था। परिवार सलाह केंद्र का भी इन्होंने संचालन शुरू कर दिया था।
कुछ लोग बताते है कि परिवार व समाज की सताई महिलाएं-युवतियां व बच्चियों को इनके आश्रय गृह में रखा जाता था। आरोप है कि इन्हीं बच्चियों-महिलाओं व युवतियों का इस्तेमाल यह अपना रसूख बढ़ाने के लिए करने लगी। मोहल्ले के लोग इस बात की तस्दीक करते हैं कि आये दिन यहां पुलिस-प्रशासन की गाड़ियां, कुछ निजी गाड़ियों में कोई आता था, आश्रय से भी लड़कियां-बच्चियों को भेजा जाता था लेकिन वह यह भी कहते हैं कि पुलिस भी यहां पीड़िताओं को लाती ले जाती थी इसलिए अंदाजा लगाना मुश्किल था कि क्या सही है क्या गलत।
शहर के एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि पिछले एक दशक में जिले का कोई बड़ा अफसर ऐसा नहीं आया जो इस संस्था पर मेहरबानी न दिखाया हो। वह कहते हैं कि इस प्रकरण के खुलने के बाद भी कई बड़े लोग इस मामले को तूल न पकड़ाने के लिए लगे थे क्योंकि परत-दर-परत जांच होने पर तमाम नाम ऐसे आएंगे जो आज की तारीख में उच्च पद पर आसीन हैं। क्षेत्र के एक बड़े एनजीओ संचालक कहते हैं कि अफसरों की मेहरबानी ही रही कि जो संस्थाएं मानक पूरा करती थीं उनको काम नहीं मिलता था और अधोमानक पर ही गिरजा देवी को काम मिल जाता था।
भाष्कर गली के रहने वाले प्रिंटिंग प्रेस के संचालक ओपी पांडे बताते हैं कि प्रोबेशन विभाग, समाज कल्याण आदि विभागों में उनकी पहुंच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता कि विभागीय लेन देन का एक मामला फंसा तो इन्होंने ही मध्यस्ता की। वह बताते हैं कि बीते वित्तीय वर्ष में प्रोबेशन विभाग का एक बाबू मिलने आये। 28 मार्च को उसके कहने पर वह प्रभारी प्रोबेशन अधिकारी से मिलने गया। बताया गया कि 5 लाख की स्टेशनरी विभाग को सप्लाई करनी है। उन्होंने बताया कि पांच लाख का आर्डर दो दिनों में कर दिया। मई के पहले सप्ताह में सप्लाई का भुगतान भी हो गया। लेकिन अगले दिन ही प्रोबेशन विभाग का एक बाबू आकर बताया कि स्टेशनरी वापस लेकर आप खाते में आया पैसा टैक्स काटकर दे दें। वह नहीं माने तो प्रोबेशन अधिकारी आ गए। गिरजा देवी भी सिफारिश में आ गईं। काफी बहस हुआ। पांडेय बताते हैं कि धमकी भी उनको दी गई कि अगली बार से नहीं दी जाएगी। लेकिन वह पैसों की बंदरबांट के लिये तैयार नहीं हुए।
इसी मोहल्ले के एक सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं कि अभी कुछ महीने पहले ही एक अधिकारी ने इन संस्था पर कार्रवाई की कोशिश की थी लेकिन जिले के सबसे बड़े अफसर के पास लखनऊ से कई फ़ोन आये और तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करने गए अधिकारी को जिले के बड़े अफसर ने वापस आने का कड़ा आदेश दिया था।
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