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यहां की जनता ने बसपा को छोड़कर सबको दिया मौका, महागठबंधन से हो सकती राह आसान

locationदेवरियाPublished: Mar 28, 2019 11:54:49 am

बांसगांव सुरक्षित क्षेत्र की जनता ने बसपा को छोड़ सबको मौका दिया

मायावती

Mayawati

आजादी के करीब डेढ़ दशक बाद अस्तित्व में आए बांसगांव सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र ने सभी दलों को मौका दिया लेकिन दलित राजनीति से उभरी बहुजन समाज पार्टी को जीत के लिए हमेशा तरसाया है। अव्वल यह कि दलित वोटरों को इस सीट पर कभी भी एकतरफा करने में सफल नहीं हो सकी जिसका नतीजा यह रहा कि 1989 से हर लोकसभा चुनाव में बसपा त्रिकोणीय लड़ाई बनाने में सफल तो रही लेकिन खाता नहीं खोल सकी।
बांसगांव लोकसभा क्षेत्र गोरखपुर-बस्ती मंडल की एकमात्र सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र है। सन् 1962 में अस्तित्व में आए गोरखपुर जिले की इस लोकसभा सीट पर पहली जीत कांग्रेस ने हासिल की थी। 1989 में बहुजन समाज पार्टी ने पहली बार यहां चुनाव लड़ा। वीपी सिंह की लहर चल रही थी लेकिन बसपा नेता मोलई प्रसाद ने भाग्य आजमाया और बसपा को पहले ही चुनाव में सम्मानजनक वोट मिले। यहां से बसपा को 85 हजार से अधिक वोट मिले। हालांकि, यहां की जनता पर लहर का कोई असर नहीं हुआ और उसने अपने पुराने नेता पूर्व राज्यपाल महावीर प्रसाद पर भरोसा जताया। लेकिन 1991 में देश की मिजाज के साथ इस लोकसभा क्षेत्र की जनता भी रही। 1991 में रामलहर में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने यहां अपना खाता खोला। राजनारायण पासी को अपना सांसद बना दिया। कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व राज्यपाल महावीर प्रसाद चुनाव हार गए। बसपा इस बार भी सम्मानजनक वोट पाकर हारी। बसपा प्रत्याशी मोलई प्रसाद को 80791 वोट मिले।
1996 में हुए लोकसभा चुनाव में सपा के तत्कालीन दबंग विधायक ओम प्रकाश पासवान की पत्नी सुभावती पासवान पर जनता ने अपना भरोसा जताया। इस बार बसपा के मोलई प्रसाद 102746 वोट पा सके।
1998 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने अपने महावत को बदल दिया। इस बार बसपा ने ई.विक्रम प्रसाद पर दांव लगाया। नए महावत ने भी कोई चमत्कार नहीं किया। एक साल बाद फिर हुए चुनाव में बसपा ने सदरी पहलवान पर दांव लगाया लेकिन जीत का जश्न बसपा के हिस्से में नहीं आया। 2004 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने पूरे दमखम के साथ चुनावी रणनीति बनाई। प्रत्याशी थे सदल प्रसाद। लेकिन क्षेत्रीय जनता ने एक बार फिर अपने पुराने नेता पूर्व राज्यपाल महावीर प्रसाद पर भरोसा जताया। बसपा इस बार दूसरे नंबर पर रह गई।
2009 में बसपा ने अपने कद्दावर नेता श्रीनाथ एडवोकेट को उतारा लेकिन वह भी दूसरे नंबर पर ही सिमट गए। 2014 में बसपा ने फिर सदल प्रसाद को आजमाया लेकिन वह भी दूसरे नंबर तक पहुंच सके।
अब महागठबंधन से आस

राजनीति के जानकार बताते हैं कि बहुजन समाज पार्टी का बेस वोट दलित वोटबैंक है। सुरक्षित सीट पर सभी दल अनुसूचित जाति के ही प्रत्याशी उतारते हैं। ऐसे में एससी/एसटी वोटों में अन्य दल भी बंटवारा कर लेते हैं। अन्य वोटों को पाने में जो भी अन्य दल सफल होता है उसके सिर जीत का सेहरा बंधता है। कांग्रेस, सपा या भाजपा की जीत के पीछे यही रणनीति रही है। हालांकि, महागठबंधन होने के बाद बसपा को इस बार काफी आस है। रणनीतिकारों का मानना है कि सपा का बेस वोट अगर बसपा को एकतरफा मिल जाएगा तो मुस्लिम वोटर भी काफी हद तक एंटी बीजेपी मूवमेंट में जुड़ सकता है। ऐसे में इस बार मुकाबला काफी रोचक हो सकता है।
बसपा हर बार रही लड़ाई में, लेकिन जीत से रही दूर

1989

महावीर प्रसाद कांग्रेस 162287
फिरंगी प्रसाद निर्दल 152258
मोलई बसपा 85768

1991

राजनारायण भाजपा 124578
महावीर प्रसाद कांग्रेस 98437
मोलई प्रसाद बसपा 80791
1996

सुभावती पासवान सपा 203591
राजनारायण भाजपा 177422
मोलई प्रसाद बसपा 102746

1998

राजनारायण बीजेपी 217433
सुभावती पासवान सपा 186893
ई.विक्रम प्रसाद बसपा 148699

1999

राजनारायण बीजेपी 184684
सुभावती पासवान सपा 174996
सदरी पहलवान बसपा 137221
2004

महावीर प्रसाद कांग्रेस 180387
सदल प्रसाद बसपा 163946


2009

कमलेश पासवान बीजेपी 223006
श्रीनाथ बसपा 170224


2014

कमलेश पासवान बीजेपी 417597
सदल प्रसाद बसपा 228260
गोरख प्रसाद पासवान सपा 133534

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