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भोजपुरी के साफ सुथरी छवि को समाज के बीच परोसने किया जा रहा प्रयास

locationदेवरियाPublished: Sep 18, 2017 10:33:59 pm

पश्चिमी सभ्यता देश के वातावरण को प्रभावित कर रही है

purua organization initiative for bhojpuri language

भोजपुरी

देवरिया. अक्सर सार्वजनिक मंचों और आम बातचीत में सुनने में मिलता है कि पश्चिमी सभ्यता देश के वातावरण को प्रभावित कर रही है लेकिन ऐसा कम ही दिखता है जिससे ये लगता हो कि कोई संस्था इसके विरुद्ध सांस्कृतिक तरीके से अपनी जमीन को बचाने के प्रयास में दिखती हो । इन दिनों भोजपुरिया समाज से जुड़े कुछ युवकों ने अपने संगठन पुरुआ के माध्यम से एक अलग तरीके का अलख जगाना शुरु किया है और वो भी देवरिया जिले के रुद्रपुर तहसील के एक छोटे से गांव जमीरा से । आगामी दो अक्टूबर गाँधी जयन्ती के दिन इसी गाँव में एक बड़ा आयोजन भी किया जा रहा है । 
 भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता के लिए बहुत पहले से आवाज उठती आ रही है। लगभग 50 सालों से अलग-अलग स्तर पर आन्दोलन चल रहे हैं। सरकार का इस मुद्दे पर क्या रुख है ये तो अबतक साफ नहीं है लेकिन इन दिनों ग्रामीण अंचल से जुड़े एक संगठन ने आन्दोलन का अलग ही रूप अख़्तियार किया है। पुरुवा संगठन का मानना है कि भोजपुरी भाषा को संवैधानिक मान्यता ना मिलने की एक बहुत बड़ी वजह ये है कि लोगों को इस भाषा की गहराई नहीं मालूम है । लोग भोजपुरी को बस अश्लील और द्विअर्थी गीतों से ही जानते हैं। इस संगठन को आगे बढ़ाने में भोजपुरी क्षेत्र के कई ऐसे युवा आगे आए हैं जिनमें से कई उच्च शिक्षा ग्रहण कर नौकरी प्राप्त कर ली है या फिर बीटेक और एमटेक जैसे उच्च शिक्षा को ग्रहण कर रहे हैं ।
 बताते चलें कि इस सोच को बदलने का बीड़ा उठाए युवाओं के संगठन पुरुआ ने भोजपुरी भाषा में अच्छे और स्तरीय गीत-संगीत का निर्माण करने का कार्य शुरु कर लोगों के मन मष्तिष्क तक अपनी अलग छाप छोड़ने का प्रयास शुरु किया है । बीते कल यानि 17 सितम्बर को किसानों के दर्द को उकेरती एक कर्णप्रिय पहली गीत पुरुआ के श्रोताओं के बीच लोकप्रिय हो रही है । 24 घण्टे के बीच लगभग दो हजार लोग उस गीत के वीडियो को सुन और देख चुके हैं । यह गीत किसानों के जीवन की मूल समस्या को रेखांकित करता है। कहीं अतिवृष्टि है तो कहीं अनावृष्टि। सिंचाई व्यवस्था को लेकर सरकारों के पास कोई ठोस रणनीति नहीं है। इस गीत से किसानों के दर्द को सामने लाने का प्रयास किया गया है । 
पुरुआ ने अपने फेसबुक पेज के माध्यम से देश विदेश में फैले भोजपुरी भाषा प्रेमियों को जोड़ने का अभियान छेड़ रखा है । संगठन के संस्थापक सदस्य धनन्जय तिवारी बताते हैं कि मंच ने ऐसे युवाओं को तैयार किया है जो परदेसी होने के कष्ट को झेल रहे हैं। वे मल्टीनेशनल कंपनियों में अच्छी सैलरी पाते हैं । अंग्रेजी भाषा और आधुनिक तकनीक से अवगत हैं लेकिन माटी का प्रेम परदेस में भी उनके साथ है। ऐसे लोगों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ और गाँव से भी बेरोजगार एवं प्रतिभाशाली तथा कुछ कर गुजरने का माद्दा रखने वालों को जोड़कर एक साझा संकल्प लिया है कि अपनी भोजपुरी भाषा को और इससे जुड़े समाज को नयी दिशा देंगे।
 सोशल मीडिया के माध्यम से देश-विदेश से भोजपुरी भाषियों को जोड़ने के प्रयास में संगठन से जुड़े वो युवा काफी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते दिख रहे हैं जो कम्प्यूटर साइंस से बीटेक और एमटेक जैसी महत्वपूर्ण शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं । संगठन से जुड़े लोग दीपक पाण्डेय, पंकज त्रिपाठी, पंकज यादव, सुधांशु शेखर और अरविन्द ओझा बताते हैं कि फूहड़ता के विरुद्ध इस अभियान में नए कलाकारों को लेकर ही गीत संगीत का निर्माण किया जा रहा है। इस कदम से लोगों में उत्साह का माहौल भी देखने को मिल रहा है । 

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