scriptसपा-बसपा की दोस्ती के लिये मुसीबत बनेगी यह सीट, 2019 में पड़ सकती है दरार | Samajwadi Party BSP Alliance May Be in Danger at Salempur Seat Adjustm | Patrika News

सपा-बसपा की दोस्ती के लिये मुसीबत बनेगी यह सीट, 2019 में पड़ सकती है दरार

locationदेवरियाPublished: May 13, 2018 07:13:35 am

देवरिया की सलेमपुर सीट पर अटकेगी सपा-बसपा की दोस्ती, दोनों पार्टियां कैसे पास करेंगी दोस्ती की सियासी इम्तिहान।

Akhilesh Yadav and Mayawati

अखिलेश यादव और मायावती


सूर्य प्रकाश राय
देवरिया. सियासी मौसम के जानकारों का पूर्वानुमान है कि एक बड़ा सियासी तूफान आने वाला है। सपा और बसपा की दोस्ती इस तूफान की जद में आएगी। हालांकि दोनों पार्टियां इसको लेकर अलर्ट जरूर होंगी पर इस तूफान के नुकसान पहुंचाने की आशंका जतायी जा रही है। इस सियासी तूफान का पूर्वानुमान जिले के सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र के लिये है। पिछली बार टिकट पाकर मोदी लहर के भरोसे जीत हासिल करने वाले भाजपा प्रत्याशी का इस बार टिकट कटने की चर्चा आम हो चली है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के प्रस्तावित गठबन्धन में ये सीट किसके हाथ जाएगी, अभी तय नहीं। पिछले 2014 के लोकसभा चुनाव में दूसरे नम्बर पर रही बसपा अपनी प्रबल दावेदारी पेश करने में लगी है। प्रत्याशियों के चयन और दलों के गठबन्धन के बाद ही इस इस बात का अंदाजा होगा कि यह सियासी तूफान किस हद तक खतरनाक साबित हो सकता है।

बताते चलें कि देवरिया जिले की एक पुरानी तहसील है सलेमपुर, इस नाम से विधानसभा की सीट के साथ ही संसदीय सीट भी है। बिहार प्रान्त की सीमा से कुछ हद तक सटे इस लोकसभा क्षेत्र की सरहद पड़ोसी जिले बलिया जिले मे भी घुसी हुई है। 1991 में उपजे जनता दल के लहर के साथ बाद के चुनाव की तस्वीरों पर नजर डालें तो ऐसा दिखता है कि इस सीट पर वर्तमान में काबिज भारतीय जनता पार्टी का प्रभाव पहले कभी नही रहा है।
वैसे पुराने आंकड़ों पर नजर डालें तो 1991 में जनता दल के हरिकेवल प्रसाद ने जीत का झण्डा फहराया था। उसके बाद 1996 में समाजवादी पार्टी के हरिवंश सहाय ने जीत दर्ज की लेकिन दो वर्ष बाद ही 1998 में हुए चुनाव में पूर्व में सांसद रहे हरिकेवल प्रसाद ने एक बार फिर समता पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज कर ली। 1998 के चुनाव के एक वर्ष बाद ही 1999 में पुनः हुए लोकसभा चुनाव में पार्टियों के जातीय समीकरण चरम पर पहुंच चुके थे। 1999 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने अपना प्रभाव जातीय आंकड़ों के सहारे दिखाया और बसपा प्रत्याशी के रुप मे बब्बन राजभर ने अपनी जीत सुनिश्चित की लेकिन अगले 2004 के चुनाव में बाजी फिर पलट गयी।
इस बार समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रुप मे पूर्व मे दो बार सांसद रहे हरिकेवल प्रसाद ने एक बार फिर जीत का डंका बजाया। पांच वर्ष बाद 2009 में बसपा ने पुनः अपना परचम लहराया और रमाशंकर राजभर संसद पहुँच गए लेकिन 2014 मे उपजे मोदी लहर ने सभी को चित्त कर दिया। भाजपा ने इस सीट पर पहली बार अपना खाता खोलकर समाजवादी नेता और पूर्व सांसद हरिकेवल प्रसाद के पुत्र रविन्द्र कुशवाहा को कमल के साथ संसद पहुंचा दिया। किसको मिला था कितना मत 2014 के लोकसभा चुनाव मोदी लहर का असर व्यापक था।
सलेमपुर सीट पर हुए मतदान में 45.83% मत एकतरफा गिरा । इस कारण 2,32,342 मतों की बड़े अन्तर से भाजपा ने अपनी जीत दर्ज की। भाजपा को 3,92,213 मत मिले थे जबकि दूसरे नम्बर पर रहे बसपा को 1,59,871 तो तीसरे स्थान पर रहने वाले समाजवादी पार्टी को 1,59,688 मत प्राप्त हुए थे। कोई खास विकास नही दिखता यहां क्षेत्र के विकास की चर्चा करें तो ऐसा कुछ विशेष नही दिखता जिससे विकास को किसी उदाहरण के रुप में प्रस्तुत किया जा सके।
सांसद अलग अलग दलों का हर बार जनता ने चुना इस कारण इलाके में विकास की गाथा तो लिखी दिखनी ही चाहिए थी। सलेमपुर से सटे पयासी गांव के मूल निवासी देवरिया से निर्वाचित सांसद कलराज मिश्रा केन्द्र की सरकार में वरिष्ठ मंत्री भी थे। उन्होंने अपने पुरखों के गाँव को विकास के चरम पर पहुंचाने के लिए गोद भी ले लिया लेकिन इसे अधिकारियों के देखरेख में चल रही दुर्व्यवस्था कहें या फिर जनप्रतिनिधियों की निरंकुशता , गाँव में अभूतपूर्व तरीके से कुछ परिवर्तित होता नही दिखा। अधिकारियों से बात करें तो वही नाली ,सड़क और खड़ंजा के साथ शुरु होकर सोलर लाइट की चर्चा के साथ बात खत्म हो जाती है।
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