सवाल: कंपनी ने इतना क्लेम कैसे मांग लिया।
जवाब: हां, कंपनी ने क्लेम पेश किया है। परीक्षण करा रहे हैं उसके बाद ही स्थिति साफ होगी।
सवाल: ऐसी स्थिति पनप ही क्यों रही है। कौन जिम्मेदार है?
जवाब: इन प्रोजेक्ट में तो प्लान ही बदलना पड़ा था और अन्य कई तकनीकी पहलु रहे हैं।
सवाल: भविष्य में इससे बचने के लिए कोई प्लान।
जवाब: भूमि मिलने के बाद ही आगे से प्लानिंग के साथ काम होगा।
लागत वृद्धि बकाया राशि
३.८४ करोड़ रुपए पांच बिलों में बढ़ी हुई राशि नहीं दी गई सिक्यूरिटी राशि ६.५२ करोड़ रुपए
डिफेक्ट लायबिलिटी पीरियड 18 दिसम्बर, 2015 को खत्म हो चुका, इसके बाद भी जमा सिक्यूरिटी राशि रिलीज नहीं की गई
(बिल में से विविध कटौती की गई अतिरिक्त राशि, जबकि डिफेक्ट लायबिलिटी पीरियड पहले ही समाप्त हो चुका) पेनल्टी के खिलाफ दावा ३२ लाख रुपए
(निर्माण मियाद सितम्बर, 2015 तक बढ़ाने के बावजूद पेनल्टी लगा दी गई)
राज्य सरकार के निर्देश पर बीच में काम रोकने के आदेश दिए गए।
जेडीए ने कार्य में तब्दीली करते हुए दूसरी ड्राइंग सौंपी। 5 नवम्बर,11 को फिर काम शरू। कार्य में अतिरिक्त आइटम शामिल होने से देरी हुई।
जेडीए स्तर पर लागत वृद्धि राशि का भुगतान नहीं करने से निर्धारित समय पर काम पूरा नहीं हो सका। बाद में 19 मई, 2015 को भुगतान किया।
टै्रफिक डायवर्जन समय पर नहीं हुआ। जबकि, कई जगह काम की जगह तक नहीं थी।
जेडीए ने मार्च, 2015 में फिर प्लान बदला। इसमें रिटेलनिंग वॉल के पास पेयजल लाइन व अन्य सुविधा के लिए डक्ट रखी गई।
अफसरों की अूधरी तैयारी और राजनीतिक हस्तक्षेप…प्रोजेक्ट्स पर भारी पड़ते आए हैं। इससे कंपनी को क्लेम मांगने का मौका मिलता है। ज्यादातर प्रोजेक्ट देखें तो सामने आ जाएगा कि कंपनियां ही एजेंंसी से ज्यादा क्लेम मांगती है। रिंग रोड में भी ऐसा हुआ है। अफसरों के अधूरे होमवर्क के कारण न तो समय पर जमीन मिली, न जरूरी क्लीरियेंस। नतीजा, सरकार को करोड़ों की राशि सरकारी खजाने से चुकानी पड़ रही है। एलिवेटेड रोड, बीआरटीएस कॉरिडोर में भी यही लापरवाही है तो अब सबक लेने का वक्त आ गया। इन कंपनियों को हावी होने का मौका ही न दें।
– बी.जी. शर्मा, सेवानिवृत सचिव, पीडब्ल्यूडी