जयपुर। भ्रष्टाचार को लेकर जेडीए अफसर फिर कठघरे में आ गए हैं। अफसरों ने जेब भरने के लिए ऐसा काम कर दिया, जो सरकार स्तर पर होता है। ऐसी ही बड़ी करतूत सामने आई है, जिसने जेडीसी को भी सकते में ला दिया। जेडीसी वैभव गालरिया ने उपायुक्त को चार्जशीट थमाने की फाइल तैयार कर ली है और पट्टा व आरक्षण पत्र निरस्त करने का प्रस्ताव सरकार को भेजने के निर्देश दे दिए हैं।
मामला अवाप्त जमीन का है, जिसका जेडीए कब्जा लेकर मुआवजा कोर्ट में जमा करा चुका। उपायुक्त नवलकिशोर बैरवा ने न केवल मुआवजा राशि कोर्ट से वापस मंगा ली, बल्कि जमीन का आरक्षण पत्र और पट्टा तक जारी कर दिया गया। इसमें सरकार तो दूर, जेडीसी तक से अनुमति नहीं ली। यह जमीन ग्राम राजपुरा उर्फ मथुरावाला तहसील सांगानेर में है। इसका क्षेत्रफल 1.05 हैक्टेयर है।
आरक्षण पत्र लिया और बेच दिया खातेदार ने पहले तो भूखंड का आरक्षण पत्र हासिल किया और फिर उसे दो टुकड़ों में बांटकर बेच दिया। एक भूखंड 427 वर्गमीटर और दूसरा 360 वर्गमीटर का है। एक का पट्टा भी जारी करवा लिया। बेचान के नाम हस्तांतरण पत्र भी जोन द्वारा जारी कर दिए। बाद की कार्रवाई में यह स्थिति पकड़ी गई। इस बीच भूखंडधारी महिला भी पट्टे के लिए पहुंची, जिसके बाद तो मामले की परतें खुलती गई।
जिम्मेदार उपायुक्त को मिलेगी चार्जशीट जेडीए अफसरों ने तो आरक्षण पत्र के आधार पर दूसरे भूखंड का पट्टा जारी करने की प्लानिंग कर ली थी। इसके लिए मामला एग्जीक्यूटिव कमेटी को भी भेज दिया। यहां जेडीसी ने जमीन अवाप्ति से लेकर आरक्षण पत्र जारी करने तक की स्थिति पूछी तो करतूत सामने आ गई। उन्होंने जिम्मेदार अफसर को चार्जशीट सौंपने और पट्टा निरस्त करने के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजने के निर्देश दे दिए।
3-4 दिन में दूसरे अफसर ने कर दिया खेल जेडीए ने 2001 में ग्राम राजपुरा उर्फ मथुरावाला में 1.05 हैक्टेयर जमीन अवाप्त की थी। इसका अवार्ड 2002 में जारी भी कर दिया गया। जून 2006 में मुआवजा राशि करीब 3.38 लाख रुपए कोर्ट में जमा करा जेडीए ने जमीन का कब्जा तक ले लिया।
कुछ वर्ष बाद खातेदार कल्याण पुत्र मांगी लाल ने नकद मुआवजा लेने की बजाय विकसित भूमि के लिए जोन में आवेदन किया। उस समय तत्कालीन जोन उपायुक्त भंवर सिंह सान्दू थे। सान्दू 3-4 दिन के अवकाश पर गए। इस दौरान इस जोन अतिरिक्त कार्यभार उपायुक्त नवलकिशोर बैरवा को दिया गया।
बैरवा ने खातेदार से मिलीभगत की। पहले कोर्ट से मुआवजा वापस लेने की प्रकिया की। इसके लिए भूमि अवाप्ति अधिकारी को पत्र लिखा गया।
फिर बतौर मुआवजा 15 प्रतिशत जमीन के रूप में 787 वर्गमीटर जमीन का आरक्षण पत्र जारी
कर दिया।
इसकी आड़ में खेल सरकार ने फरवरी, 2015 में आदेश जारी किया। इसमें उन खातेदारों को विकल्प दिया गया, जो नगद के बजाय विकसित भूमि मुआवजे के रूप में लेना चाहते हैं। यह आदेश उन्हीं प्रभावितों पर लागू होता जिनकी जमीन पर जेडीए कब्जा नहीं लेता। आदेश में भी स्पष्ट किया कि जिस भूमि का अवार्ड जारी होने के बाद कब्जा नहीं लिया, उसी में ये नियम लागू था। इसी आदेश की आड़ में उपायुक्त ने जेडीसी और सरकार की स्वीकृति लिए बिना अपने स्तर पर ही आरक्षण पत्र जारी कर दिया।