व्यक्ति अपने जीवन में जिस प्रकार के कर्म करता है उसी के अनुरूप उसे मृत्यु मिलती है। उक्त उद्गार चैत्र नवरात्रि महापर्व के उपलक्ष्य मे क्षेत्रवासियों द्वारा श्रीराम जवेरी मंदिर में आयोजित श्रीमद भागवत महापुराण ज्ञान गंगा यज्ञ महोत्सव के तीसरे दिन मंगलवार को व्यासपीठ से पं. संदीप गोपालकृष्ण नागर ने व्यक्त किए। कथा के दौरान भजन मंडली द्वारा सुमधुर भजनों की प्रस्तुतियां दी गई, जिस महिलाओं ने खूब नृत्य किया। महाराज श्री ने धु्रव चरित्र, अजामिल एवं प्रहलाद चरित्र के विस्तारपूर्वक वर्णन किया। उन्होंने कहा कि बालक के जीवन की पहली पाठशाला मां है, मां चाहे तो बाल का जीवन सुधार दे या बिगाड़ दे।
माता सुनीति ने अपने पुत्र धु्रव को पांच वर्ष की उम्र में परमात्मा को प्राप्त करने की का मार्ग बताया। देवहुति और कर्दन ऋषि का प्रसंग सुनाते हुए गृहस्थ आश्रम के बारे में बताया कि व्यक्ति का गृहस्थ आश्रम तब संपूर्ण होता है जब माता, पिता, पत्नी, संतान का जीवन पर्यंत लालन, पालन एवं पोषण करेे। मनुष्य को सुख में कभी इतराना नहीं चाहिए और दुख में कभी घबराना नही चाहिए। क्योंकि यह निरंतर प्रक्रिया है, मनुष्य को दोनों ही प्रक्रियाओं से गुजरकर इनसे सामना करना पड़ता है। कथा 13 अप्रैल तक प्रतिदिन दोपहर 2 से 6 बजे तक चलेगी।