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लाकडाउन ने बिगाड़ दिया छोटे अन्नदाताओंका गणित, अब कर्जे के भरोसे चलेगा काम

locationदेवासPublished: May 26, 2020 05:39:15 pm

लाकडाउन ने बिगाड़ दिया छोटे अन्नदाताओंका गणित, अब कर्जे के भरोसे चलेगा काम

लाकडाउन ने बिगाड़ दिया छोटे अन्नदाताओंका गणित, अब कर्जे के भरोसे चलेगा काम

लाकडाउन ने बिगाड़ दिया छोटे अन्नदाताओंका गणित, अब कर्जे के भरोसे चलेगा काम

देवास. कोराना संक्रमण के बाद के बदले हालत में सबसे ज्यादा नुकसान में छोटे सीमांंत किसान रहे हैं। लाकडाउन के चलते छोटी जोत के किसान अपना प्याज, अनाज व सब्जी इस वर्ष नहीं बेच सके। इन किसानों की हालत भी ऐसी नहीं है कि ये घाटा उठा सके। अधिकांश किसान कर्ज लेकर ही खेती करते हैं, अब खरीफ फसल के लिए फिर छोटे किसान साहूकारों के यहांं चक्कर लगा रहे हैं। हालाकि छोटे किसानों की हालत सुधारने के लिए शासन योजनाएंं तो बहुत बनाता है लेकिन वे कभी भी कागज से बाहर नहीं निकल पाती। भारतीय किसान मजदूर महासंघ के प्रदेश महामंत्री त्रिलोक गोठी कहते है कि हमने शासन से कई बार मांग रखी की वो छोटे किसानों की फसल खरीदने की ग्यारंटी ले, लेकिन शासन इस पर ध्यान नहीं दे रहा। गोठी कहते है कि परिवार में लगातार बंटवारे का असर खेती पर भी पड़ा है व अधिकांंश किसान जिले में अब छोटी जोत के हैं। इन किसानों को अपनी उपज बेचने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं।
पिता के इलाज में हो गया लाखों कर्ज, अब आगे का रास्ता नहीं सुझ रहा
सोनकच्छ. कोरोना काल के दौरान लगे लॉकडाउन में बड़े किसानों को तकलीफे तो हुई है, लेकिन वे उसे सह कर आने वाले समय मे उसकी भरपाई कर लेंगे, लेकिन उन छोटे भूमि हीन किसानों का क्या हुआ होगा, जो कम जमीन पर या बाटेदारी करके अपने परिवार का भरण पोषण करते है। अब ऐसी परिस्थिति में उसके पास कर्ज में डूबे रहने के अलावा और कुछ नहीं है अब तो उसके हालात ऐसे हो गए है जैसे इस धरती पर वह स्वयं बोझ बन कर रह रहा हो। ऐसा ही एक परिवार सोनकच्छ तहसील के ग्राम कराडिय़ा परी में अमरसिंह सैधव का रहता है। ये परिवार पहले से ही परेशानियों में था और कोरोना के दौरान और अधिक परेशानी में आ गया। अमरसिंह जी के 18 वर्षीय पुत्र संदीप ने बताया कि हम एक छोटे किसान है, मेरे पिता की गत वर्ष दुर्घटना में रीढ़ की हड्डी टूट गई, जिसके कारण वे चल फिर नहीं सकते, अब घर की सारी जवाबदारी मैं और मेरी मां के ऊपर है। मेरी एक बहन भी है जिसकी शादी करना है लेकिन पिता के इलाज में लाखों का कर्ज सिर पर है जिसे चुकाना मुश्किल हो गया है। इस वर्ष फसल अच्छी हुई लेकिन उचित मूल्य नहीं मिल रहा और फसल भी खेतों में खराब हो गई दूसरी और जिन लोगों का रुपया देना है उनका अब हम सूद भी नहीं दे पा रहे है अब तो हालात ऐसे है कि जीवन जीना भी मुश्किल है। अब तो जमीन बैचकर ही कुछ निजाद मिले तो ठीक है वरना गरीबी में पैदा हुए है और गरीबी में ही मर जाएंगे।
जब संदीप से पूछा कि आप कर्ज कहां से लेते हो तो उस पर उसने बताया कि हमे कर्ज गांंव व सोनकच्छ नगर के व्यापारियों से कम ब्याज पर मिलता है लेकिन आज के हालात ऐसे है कि हमे कर्ज चुकाना भी मुश्किल है। वही संदीप की मां से पूछा कि आप के बच्चे की पढ़ाई का क्या करेंगे, तो उन्होंने बताया कि मेरे बच्चे की पढ़ाई तो छूट गयी है अब उसका आगे पढऩा बहुत मुश्किल है क्योंकि अब हमें पेट भरने व कर्ज चुकाने में ही अपना सारा जीवन बिताना पड़ेगा। संदीप ने बताया कि अभी तक सरकार से कोई मदद नही मिली है। एक बार सांसद महेंद्र सिंह को हमारे पाप के नाम से मदद के लिए क्षेत्र के कुछ लोगो ने कहां था लेकिन आज तक उनके द्वारा भी कोई मदद नहीं दी गई।
खेतिहर कामगारों के लिए मुश्किल समय
भमोरी. किसान पिन्टु मालवीय की तीन बीघा जमीन हैं। वहीं संतोष चौहान के पास डेढ़ बीघा जमीन है, ये सीमांत किसान इन दिनों काफी परेशान है। कोरोना महामारी के चलते छोटे भूमिहिन किसानों हालात बेहद खराब हो चुकी है। जब फसल आई तब लाकडाऊन में मंडिया बंद थी, छोटे किसानों ने 1500 से 16 00 रुपए में स्थानीय छोटे व्यापारियों को गेहंू तोल दिया, जो समर्थन मूल्य से 400 रुपए कम है। विक्रम जायसवाल के पास डेढ़ बीघा तो जगदीश जाटव के पास दो बीघा जमीन है लेकिन इतनी कम जोत पर इस वर्ष उन्हें कोई मुनाफा नहीं हुआ है। लाकडाउन ने इन किसानों का गणित बिगाड़ दिया है। परेशानी के चलते छोटे एवं भूमिहीन किसानों ने 24 से लेकर 36 प्रतिशत ब्याज दर पर सुदखोरों से कर्ज लिया है। किसानों के अनुसार अगर अगली फसल को तैयार करना हो तो फिर कर्ज के बिना काम नहीं चलेगा। कई छोटे किसानों ने पत्रिका को बताया कि वे इस वर्ष निजी स्कूलों में पढ़ रहे अपने बच्चों की फीस तक जमा नहीं कर पाएहैं। सरकार की तरफ से केवल 4000 रुपए सम्मान निधि मिली है जिससे काम नहीं चलना हैं।

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