धरना-चक्काजाम से नहीं....कीचड़ में बैठकर विरोध करने से खुलती है नगर निगम की नींद...!
शहर में विरोध प्रदर्शन का चला नया चलन, कीचड़ में बैठ रहे पार्षद
कुछ पार्षदों के कीचड़ में बैठने से समस्या हल हुई तो दूसरे भी कहने लगे-हम भी कीचड़ में धरना देंगे

देवास. शहर में इन दिनों सियासत का नया चलन चल पड़ा है। अब विरोध प्रदर्शन के लिए बजाय अफसरों को घेरने या आवेदन देने के लिए कीचड़ में धरना देने का तरीका अपनाया जा रहा है। ये तरीका इसलिए अपनाया जा रहा है क्योंकि शुरुआत में जिस पार्षद ने कीचड़ में बैठकर धरना दिया तो उसकी समस्या हल हो गई। इसके बाद पार्षदों को लगा कि लापरवाह निगम प्रशासन शायद इसी तरीके से सुनेगा तो हर कोई यह तरीका अपनाने लगा। हालांकि सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं कि वार्डों में विकास कार्य करवाने में नाकाम रहे ये पार्षद अब नगरीय निकाय चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक रोटियां सेंकने लगे हैं।
दरअसल सबसे पहले पार्षद रूपेश वर्मा ने कीचड़ में बैठने का काम शुरू किया था। सड़क नहीं बनने से नाराज वर्मा कीचड़ में बैठे थे और नगर निगम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। इसके बाद पार्षद इरफान अली ने भी यही तरीका अपनाया। दो दिन पहले पार्षद नरेंद्र यादव श्मशान का शेड न बनने से नाराज होकर श्मशान में ले गए तो गंगा नगर में कीचड़ की समस्या को लेकर युकां नेता अक्षय बाली ने समाधि की सियासी चाल चली। कीचड़ में लेटे और ऊपर से मिट्टी डलवा ली, हालांकि बाद में वे उठ गए। शनिवार को पार्षद राज वर्मा कीचड़ में बैठ गए और विरोध प्रदर्शन किया। महिला कांग्रेस की शहर अध्यक्ष और पार्षद वंदना पांडेय ने भी चेतावनी दे दी कि वार्ड की समस्या हल नहीं हुईतो कीचड़ में धरना देंगी। इस तरह के विरोध प्रदर्शन के बाद सवाल भी उठरहे हैं। पार्षदों का कहना है कि नगर निगम अगर कीचड़ में बैठने से ही सुनवाई करेगा तो कीचड़ में बैठ जाएंगे। सोशल मीडिया पर कुछ लोग कह रहे हैं कि अब तक ये पार्षद विकास क्यों नहीं करवा सके और जब नगरीय निकाय चुनाव नजदीक आ गए तो प्रदर्शन करने लग गए।
सोशल मीडिया पर उठा रहे सवाल
पार्षदों के विरोध प्रदर्शन के बाद सोशल मीडिया पर लोग चटखारे ले रहे हैं। अलग-अलग तरीके से व्यंग्यात्मक लहजे में अपनी बात कह रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही उठाया जा रहा है कि जब चार साल से परेशानी हो रही थी तो अब तक चुप क्यों रहे। बारिश का इंतजार क्यों किया। अब तक विरोध प्रदर्शन क्यों नहीं किया। सीवरेज को लेकर अब सवाल उठा रहे हैं लेकिन जब सीवरेज ने काम शुरू किया तब पुरजोर तरीके से विरोध क्यों नहीं किया।
कटघरे में है कांग्रेस
इस मामले में कांग्रेस भी कटघरे में है। जब सीवरेज का काम शुरू होने वाला था तब सीवरेज कंपनी पर ब्लेक लिस्टेड होने के आरोप लगाए थे। जमकर विरोध प्रदर्शन किया था। बात कोर्ट तक गई थी लेकिन बाद में सब चुप हो गए। सबसे अहम सवाल यह है कि अब जबकि कांग्रेस सरकार मप्र में है तो नेता क्यों चुप हैं। कांग्रेस नेता अपने हिसाब से प्रशासन को चला रहे हैं, ऐसे में सीवरेज के मामले में नेताओं की चुप्पी सवालों को जन्म दे रही है। अब तक हुए घटनाक्रमों में महापौर की चुप्पी भी सवालों को जन्म दे रही है। पूर्व में छोटी-छोटी बातों, विरोधप्रदर्शन पर प्रेसनोट जारी करने वाले महापौर शहर की दुर्गति पर चुप हैं और उनकी ओर से कोई बयान जारी नहीं हो रहा। पूर्व में बारिश के समय औचक निरीक्षण पर जाने वाले सभापति भी इस बार चुप बैठे हैं और किसी तरह की हलचल दिखाई नहीं दे रही। इन सबको लेकर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर जनता ने जिनको चुना है वे जनता का सामना करने से क्यों कतरा रहे हैं।
सीवरेज कंपनी के कारण बिगड़ी स्थिति
नगर निगम में नेता सत्तापक्ष मनीष सेन का कहना है कि सीवरेज कंपनी वालों ने रोड रिपेयर नहीं किया जिस कारण स्थिति बिगड़ी। पहले ये कहा गया था कि तीन साल तक रोड नहीं बनेंगी। टेंडर निरस्त कर दिए थे। फिर आचार संहिता लग गई। कांग्रेस सरकार बनी तो तबादले होने लगे और अधिकारी कुछ समझ ही नहीं पाए। अब पार्षद कुछ करे तो लोग नौटंकी कहते हैं और कुछ न करे तो निष्क्रिय कहते हैं। आखिर पार्षद क्या करे। उनको तो जनता को जवाब देना है। कीचड़ में बैठने वाले पार्षद रूपेश वर्मा, इरफान अली के वार्ड में सड़क निर्माण शुरू हो गया तो बाकी सभी को लगा कि शायद नगर निगम वाले इसी तरह सुनेंगे।
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