स्वयं को संतुष्ट महसूस कर रहे हैं
रानाडे ने कहा कि वो आधुनिक काल में भी महाऋषि दधीचि के देहदान को याद करते हैं एवं चिकित्सा क्षेत्र में इस तरह के दान को अच्छे शोध कार्यों के लिए समर्पित करना चाहते हैं। अपने जीवन काल में ही वे अपने मकान को कानूनी रूप से सेवा क्षेत्र में दान देकर स्वयं को संतुष्ट महसूस कर रहे हैं। उपस्थितजनों ने उनके इस कार्य को मां भारती की सेवा माना एवं उनसे प्रेरणा लेकर समाज हित में काम करते रहने का संकल्प व्यक्त किया।
पिताजी ने वसीयत नहीं लिखी तो मैं क्यों लिखूं
रानाडे ने बताया यह मकान मेरे पिताजी ने 1961 में खरीदा था। तब मेरे मामा ने कहा था कि इसकी वसीयत करो। तब पिताजी ने कहा था कि यह मेरा नहीं, ईंट और पत्थर का है। जिसके भाग्य में ये मकान होगा वो ले जाएगा। हम तीन भाई व बहन है। सभी की इच्छा थी कि यह संस्था को मिले। समाज के काम आए। मेरे पिताजी ने जब वसीयत नहीं लिखी तो मैं क्यों करूं। रानाडे ने बताया वे संघ से शुरू से प्रभावित रहे। दूसरे में थे तब संघ की शाखा में जाते थे।
रानाडे ने कहा कि वो आधुनिक काल में भी महाऋषि दधीचि के देहदान को याद करते हैं एवं चिकित्सा क्षेत्र में इस तरह के दान को अच्छे शोध कार्यों के लिए समर्पित करना चाहते हैं। अपने जीवन काल में ही वे अपने मकान को कानूनी रूप से सेवा क्षेत्र में दान देकर स्वयं को संतुष्ट महसूस कर रहे हैं। उपस्थितजनों ने उनके इस कार्य को मां भारती की सेवा माना एवं उनसे प्रेरणा लेकर समाज हित में काम करते रहने का संकल्प व्यक्त किया।
पिताजी ने वसीयत नहीं लिखी तो मैं क्यों लिखूं
रानाडे ने बताया यह मकान मेरे पिताजी ने 1961 में खरीदा था। तब मेरे मामा ने कहा था कि इसकी वसीयत करो। तब पिताजी ने कहा था कि यह मेरा नहीं, ईंट और पत्थर का है। जिसके भाग्य में ये मकान होगा वो ले जाएगा। हम तीन भाई व बहन है। सभी की इच्छा थी कि यह संस्था को मिले। समाज के काम आए। मेरे पिताजी ने जब वसीयत नहीं लिखी तो मैं क्यों करूं। रानाडे ने बताया वे संघ से शुरू से प्रभावित रहे। दूसरे में थे तब संघ की शाखा में जाते थे।