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तीन बार मिली असफलता, मगर नहीं हुए निराश…शहर की बेटी और बेटा बना सिविल जज

कंपाउंडर के बेटे पंकज और चने-परमल की दुकान लगाने वाले की बेटी स्वाति ने बढ़ाया मानसपने देखे…मेहनत की और पाई सफलता

देवासAug 23, 2019 / 12:08 pm

mayur vyas

patrika

(चंद्रप्रकाश शर्मा)
देवास. मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो सपने जरुर साकार होते हैं और सफलता के रूप में हकीकत बनते हैं। अपनी मेहनत से सपनों को साकार कर ऐसी ही सफलता पाई है शहर के बेटे पंकज बुटानी और बेटी स्वाति कौशल ने। दोनों का चयन सिविल जज के लिए हुआ है और दोनों बेहद खुश हैं। तीन बार असफल होने के बावजूद दोनों ने हार नहीं मानी और कड़ी मेहनत से सफलता पाई। पत्रिका से चर्चा कर दोनों ने अपने अनुभव साझा किए।
दरअसल स्वाति कौशल के घर में माता आशा व पिता मनोहर कौशल हैं। एक बड़ी बहन है और दो छोटे भाई-बहन हैं। स्वाति की प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर में हुई। ११वीं में गणित विषय लिया। बाद में यह तय हुआ कि अब न्यायिक सेवा में ही जाना है तो शासकीय गल्र्स कॉलेज से बीए किया। केपी कॉलेज से एमए और एलएलबी किया। इंदौर से एलएलएम किया। चार बार के प्रयासों के बाद सिविल जज की परीक्षा उत्तीर्ण की। बीच में ऐसा दौर आया जब स्वाति हताश होने लगी लेकिन परिजन ने हि?मत दी और इसी हि?मत का नतीजा है कि आज स्वाति सिविल जज बनी।
जब भी हताश हुई माता-पिता ने बढ़ाई हि?मत
स्वाति ने कहा कि पिता की चने-परमल की दुकान है। मध्यमवर्गीय परिवार है। ज्यूडिशरी में ही जाने का तय कर लिया था इसलिए कड़ी मेहनत की। बहुत कठिन पढ़ाई और प्रतियोगिता के बावजूद मैं डटी रही। चौथी बार में परीक्षा उत्तीर्ण की। असफलता से थोड़ा घबरा गई थी लेकिन माता-पिता ने हौसला दिया और कहा कि बेटी तुम जरुर जज बनोगी। इसके बाद से पीछे नहीं देखा और ज्यादा मेहनत की। सफलता का श्रेय मेरे माता-पिता, भाई-बहनों, गुरुजनों को है। मैं प्रयास करूंगी समाज में नैतिकता बढ़े। महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया बदले। इज्जत की भावना पनपे। यह सिर्फ पड़ाव है। मैं एडीजे के लिए मेहनत करूंगी।
तीन बार असफल हुए, लेकिन नहीं मानी हार
पंकज बुटानी की कहानी और संघर्ष भरी है। बायोलॉजी के स्टूडेंट रहे पंकज ने बायो टेक किया। इसके बाद देवी अहिल्या विवि से रसायन में एमएससी किया। बाद में कानून की पढ़ाई शुरू की। लॉ क्लासेस शुरू की। बतौर एडवोकेट काम शुरू किया। मन में ठान लिया था कि जज बनना ही है। कड़ी प्रतियोगिता के बाद चौथी बार में परीक्षा पास की और अब सिविल जज बने।

मां ने किया प्रोत्साहित, पत्नी ने दिया सहयोग
पंकज ने बताया कि उनके पिता रमेशचंद्र बुटानी की आयुर्वेद दवाओं की दुकान है। माता निर्मला बुटानी आयुष विभाग में कंपाउंडर है। पत्नी रितु इलाहाबाद बैंक में क्लर्क है। छह साल का एक बेटा है। मां ने बहुत प्रोत्साहित किया। उनके आशीर्वाद से ये मुकाम हासिल किया। पत्नी ने सहयोग दिया और छह साल का बेटा होने के बाद पढ़ाई शुरू की। जी-तोड़ मेहनत की। सिंधी परिवार में जन्म लेने के बावजूद व्यापार से कुछ अलग करने की इच्छा थी इसलिए न्यायिक सेवा को चुना। सामान्य वर्ग के लिए बहुत कड़ी परीक्षा रहती है लेकिन मैंने हार नहीं मानी। प्रारंभिक, मु?य परीक्षा और साक्षात्कार की तैयारी की। जज का पद बहुत प्रतिष्ठित रहता है। इसके लिए तैयारी भी कठिन रहती है। सिलेबस को तीस से चालीस बार रिवाइज करना पड़ता है। हमारे संविधान का यह जरुरी अंग है और इससे समाज में अनुशासन रहता है। इंटरव्यू के लिए गया तो हर स्तर पर परखा। कानून की समझ से लेकर सामाजिक ताने बाने से जुड़े सवाल पूछे। व्यक्तित्व का आकलन किया। आज इस सफलता के बाद माता-पिता, पत्नी, दोस्त सभी खुश हैं।
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