दरअसल जिला प्रशासन का सुस्त रवैया लगातार जारी है। अधिकारी चुनाव के समय तो सक्रिय होते हैं लेकिन जन समस्याओं से उन्हें सरोकार नहीं रहता जिसके चलते जनता का भी अफसरों से जुड़ाव नहीं हो पा रहा। वर्तमान में पुलिस-प्रशासन में यही हाल है और नए अफसरों की कार्यशैली के चलते अधीनस्थ अमला तो व्यथित है ही, जनता भी जुड़ नहीं पा रही है। इसका उदाहरण मतदाता जागरुकता के लिए किए जा रहे आयोजनों में देखने को मिल रहा है। चुनाव के समय पूरी ताकत झोंक देने वाला प्रशासन व्यवस्थाएं सुधारने के दावे तो कर रहा है लेकिन हकीकत कुछ और ही है। हस्ताक्षर अभियान, कविता, गीत, संगीत, नृत्य, नाटक आदि के माध्यमों से प्रयास किए जा रहे हैं कि मतदान का प्रतिशत बढ़े लेकिन आमजन तक यह संदेश कारगर तरीके से नहीं पहुंच पा रहा।