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मप्र में पहली बार बने चार जैन आचार्य, अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भेजा अपना प्रतिनिधि

भगवान का जन्म कल्याणक मनाया- पुष्पगिरि पहुंचे राष्ट्रसंत पुलक सागर
शिष्य ने किया साष्टांग प्रणाम, भावविभोर होकर गुरु ने लगाया गले
आचार्यश्री पुष्पदंत सागर से लिया आशीर्वाद

 

देवासNov 29, 2019 / 04:43 pm

रीना शर्मा

मप्र में पहली बार बने चार जैन आचार्य, अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भेजा अपना प्रतिनिधि

सोनकच्छ. पुष्पगिरी तीर्थ पर चल रहे पंच कल्याण महोत्सव का तीसरा दिन बहुत खास रहा। यहां शुक्रवार को पहली बार चार मुनियों को एक साथ आचार्यश्री की पदवी मिली। आचार्यश्री पुष्पदंत सागरजी महाराज द्वारा मुनि प्रसन्न सागर, प्रमुख सागर, राष्ट्रसंत पुलक सागरजी और प्रणाम सागर जी महाराज को आचार्यश्री की पदवी दी गई। इसके लिए मंगल क्रियाएं शुरू हुई।
जैन मुनि प्रसन्न सागर जी को सम्मानित करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपना प्रतिनिधि भेजा है। पुष्पगिरि तीर्थ के संत पर्व सागरजी महाराज ने बताया कि ट्रंप की तरफ से उनके एडवाइजर प्रोफेसर फीलिप जाधव ने प्रसन्न सागरजी का सम्मान किया। चूंकि प्रसन्न सागरजी अमेरिका नहीं जा सकते हैं, इसलिए अमेरिका सरकार ने सम्मान करने अपना प्रतिनिधि यहां भेजा है। जैन मुनि का सम्मान धार्मिक क्षेत्र में उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों के लिए किया जा रहा है। पंचाचार भगवत पद संस्कार का आयोजन भी हुआ। आचार्य पुष्पदंत सागर चेतन (श्रमण) और अचेतन (पाषाण) में भगवत पद के संस्कार किए। इस कार्यक्रम में जैन जगत की कई धर्ममार्गी हस्तियां शामिल होंगी।
एक दिन पहले यानि गुरुवार को महोत्सव के अंतर्गत पंचकल्याणक में भगवान का जन्म कल्याण धूमधाम से मनाया गया था। आचार्य पुष्पदंत सागर के सान्निध्य में शिष्य मुनि प्रसन्न सागर, पुलक सागर, प्रमुख सागर, प्रगल्प सागर, क्षुल्लक पर्व सागर के साथ इंद्र-इन्द्राणियों ने भगवान के जन्मकल्याणक उत्सव का रोचक मंचन किया। सौधर्म इंद्र-इंद्राणी बने अशोक पत्नी कमलेश जैन बड़ोदा द्वारा भगवान के जन्म के बाद उनकी मूरत निहारने के लिए अपनी पत्नी को मनाते रहे। बहुत मनाने के बाद इंद्र द्वारा भगवान को सिर पर रख अपने दरबार व प्रजा में रत्नों की वर्षा कर धर्म प्रभावना की।
प्रवक्ता रोमिल जैन ने बताया कि भगवान के जन्म से पूर्व इंद्र दरबार में भगवान के जन्म को लेकर खुशियां बांटी गई। मांगलिक क्रियाओं के बाद मुख्य पात्रों द्वारा हवन कुंड में आहुति डाल भगवान की आराधना की गई। भगवान के जन्म के बाद उनका उत्सव मनाया गया। तीर्थ क्षेत्र पर बैंडबाजों के साथ प्रभावना शोभायात्रा निकाली गई। इंद्र-इंद्राणियों को सुसज्जित बग्घी पर बैठाया गया। इसके बाद पंचकल्याणक से भगवान के जन्म कल्याणक संबंधित कई क्रियाएं की गई। इस अवसर पर अध्यक्ष पुष्पगिरि न्यास अशोक दोशी, कार्याध्यक्ष डॉ. संजय जैन इंदौर, महामंत्री आरसी गांधी, कोषाध्यक्ष विवेक गंगवाल, जेनेश झांझरी सहित अन्य राज्यों से आए भक्त उपस्थित थे।
मप्र में पहली बार बने चार जैन आचार्य, अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भेजा अपना प्रतिनिधि
गुरु-शिष्य मिलन देख भावविभोर हुए श्रद्धालु

मप्र के राजकीय अतिथिका दर्जा प्राप्त राष्ट्र संत मुनि पुलक सागर का गुरुवार को पुष्पगिरी में प्रवेश हुआ। सूरत से चातुर्मास संपन्न करके प्रतिदिन 30 किलोमीटर पद विहार करके वे अपने गुरु आचार्य पुष्पदंत सागर के पास पहुंचे। गुरु-शिष्य का महामिलन हुआ। यह मिलन देख भक्त भावविभोर हो गए। इसके बाद शोभायात्रा निकाली गई। पुष्पगिरि कॉलेज के पास राष्ट्रसंत पुलक सागर व मुनि प्रसन्न सागर का मिलन हुआ। पुष्पगिरि सिंह द्वार नवीन पुल के समीप संघ मुनियों ने मंच पर आचार्य के चरण पखार के उनका आशीष ग्रहण किया। इसके बाद सभी ने भगवान के दर्शन कर भक्तों को आशीर्वाद दिया।
पंच कल्याणक महोत्सव क्या होता है?

आचार्यश्री – पांच प्रकार की विधियों से भगवान की प्रतिमा को मंत्रित करते हैं। जैसे- एक बीज वृक्ष बनता है। पाषाण कैसे परमात्मा बनाता है…यानी एक जीव कैसे परमात्मा बनता है, उसे हम नाटकीय मंचासन के द्वारा प्रस्तुत करते हैं। यही पंचकल्याणक है।
अष्ट कुमारियां क्या हैं, इनकी भूमिका क्या रहेगी?

आचार्यश्री – जब किसी परमात्मा बनने वाली आत्मा का जन्म होता है, तब स्वर्ग से अष्ट कुमारियां भगवान बालक की मां की सेवा व गर्भ के शोधन के लिए धरा पर उतर आती है और आठ प्रकार से उनसे प्रश्न पूछती है। मां उन प्रश्नों का समाधान करती है। हर गर्भवती नारी की सेवा किस प्रकार करनी चाहिए इससे हमें यह संदेश मिलता है।
पंचाचार संस्कार उत्सव क्या होता है?

आचार्यश्री – जैन परंपरा में 5 प्रकार के आचार्य होते हैं। पांच प्रकार से आचार्य पद विधि की जाती है। उसे पंचाचार कहते है। आचार्य स्वयं संस्कार करते हैं।
आचार्यश्री द्वारा अपने मुनि शिष्यों को एकसाथ आचार्यपदारोहण की उपाधि देने के पीछे क्या उद्देश्य है?

आचार्यश्री – जब संघ बड़ा होने लगता है तो जिम्मेदारियां सौंपी जाती है। कोई भी मुनि किसी अन्य को दीक्षा नहीं दे सकते। दीक्षा देने के अधिकार को आचार्य पद कहते हैं। इसलिए मैं अपने शिष्यों को आचार्य बना रहा हूं। ताकि वे अपने पास आने वाले संन्यासियों को दीक्षा दे सकें। मैं अपने शिष्य मुनि प्रसन्न सागर, प्रणाम सागर, प्रमुख सागर, पुलक सागर को 29 नवंबर को आचार्य पद से विभूषित करूंगा।
आचार्य पद किसे देते हैं?

आचार्यश्री – शिष्य की योग्यता को देखकर उनको आचार्य पद दिए जाते हैं। इस समय तीर्थ पर मेरे चार शिष्य मौजूद हैं। मैं उनको आचार्य बना रहा हूं, ताकि वे देश में जैन परंपरा का निर्वहन कर सकें।
अपने शिष्यों को आचार्य पद देने के बाद आपकी उपाधि क्या कहलाएगी?

आचार्यश्री – आचार्य अपनी उपाधि की घोषणा खुद नहीं करते। घर में पुत्र का पुत्र होने के बाद दादा अपने आप बन जाते हैं। उसी प्रकार यहां भी सब कुछ होगा।
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