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सरकारी स्कूलों में छात्राएं ज्यादा, निजी स्कूलों में हैं कम

locationदेवासPublished: Apr 03, 2019 12:47:34 pm

Submitted by:

Amit S mandloi

-छात्राओं के लिए संचालित विभिन्न योजनाओं का लाभ लेने की चाह भी है एक कारण

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सत्येंद्र ंिसंह राठौर
जिले में लिंगानुपात 931 है। सरल शब्दों में इसका मतलब यह है कि प्रति एक हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 931 है। इसके हिसाब से स्कूलों में छात्राओं की संख्या भी छात्रों की तुलना में कम होना चाहिए लेकिन कई पालक पुत्र मोह के कारण बेटों को तो निजी स्कूलों में शिक्षा दिला रहे हैं जबकि बेटियों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश करवा रखा है। सरकारी स्कूलों में छात्राओं की संख्या अधिक है जबकि निजी स्कूलों में छात्र अधिक हैं। छात्राओं के लिए संचालित विभिन्न योजनाओं का लाभ पाने की इच्छा भी सरकारी स्कूलों में इनकी अधिकता का एक कारण है।
पिछले कुछ सालों में महिला सशक्तीकरण की दिशा में गांव से लेकर शहर तक सार्थक प्रयास हुए हैं। इससे लोगों में जागरुकता भी आई है। कई तरह की विशेष योजनाएं बालिकाओं व महिलाओं के लिए संचालित की जा रही हैं। वहीं महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों पर नियंत्रण के लिए नए-नए कानून बनाए जा रहे हैं। इससे होने वाले बदलाव भी नजर आ रहे हैं लेकिन अभी भी समाज से लैंगिक भेदभाव पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया है। अभी भी कई परिवार बेटे और बेटी में भेदभाव रखते हैं। जिले में हजारों ऐसे परिवार हैं जिनके बेटों को तो निजी स्कूल में अच्छी व महंगी शिक्षा दिलाई जा रही है लेकिन इन्हीं परिवारों की बेटियां सरकारी स्कूलों में पढ़ रही हैं। यह स्थिति सिर्फ प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर ही नहीं बल्कि कई जगह हाई स्कूल व हायर सेकंडरी स्तर पर भी है। हालांकि कुछ परिवार छात्राओं के लिए संचालित विभिन्न योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से बेटियों को सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, वहीं कुछ पालक बेटियों को पढ़ाई के लिए गांव से बाहर भेजना पसंद नहीं करते, इसलिए गांव में जो स्कूल है उसी में प्रवेश करवाते हैं।
हर विकासखंड में छात्राएं ज्यादा: शासकीय स्कूलों के आंकड़े (प्रावि व मावि २०१८-19)
विकासखंड स्कूल छात्र छात्राएं कुल संख्या
देवास ४७३ ८८०६ 11317 २०१२३
बागली ५५० १३९७३ १५१७२ २९१४५
कन्नौद ४३६ १३६९८ १५०३७ २८७३५
खातेगांव ३६० ९२६६ १०१२१ १९३८७
सोनकच्छ ३१९ ४५३८ ६४७८ ११०१६
टोंकखुर्द २२० २८६४ ४४०३ ७२६७
योग २३५८ ५३१४५ ६२५२८ ११५६७३
वर्ष २०१७-१८ में यह थी स्थिति शासकीय प्रावि-मावि की
देवास ४७३ ९३८५ १२४८९ २१८७४
बागली ५५० १४४७४ १५८८४ ३०३५८
कन्नौद ४३६ १४८२९ १६०५९ ३०८८८
खातेगांव ३५९ ९५१४ १०३८७ १९९०१
सोनकच्छ ३१९ ४९४० ७२२२ १२१६२
टोंकखुर्द २२० ३०९५ ४८१६ ७९११
योग २३५७ ५६२३७ ६६८५७ १२३०९४

गांव-गांव में हैं सरकारी स्कूल
यह सच है कि सरकारी स्कूलों में प्रावि व मावि स्तर पर छात्रों की तुलना में छात्राओं की संख्या अधिक है लेकिन इसका मूल कारण स्पष्ट रूप से बता पाना संभव नहीं है। सरकारी प्राथमिक स्कूल लगभग हर गांव में खुले हुए हैं। बहुत से पालकों की यह भी सोच रहती है कि बेटी को अपने ही गांव के स्कूल में पढ़ाया जाए।
-राजीव सूर्यवंशी, डीपीसी देवास।

बेटियों के प्रति पराए घर वाली मानसिकता में बदलाव की जरूरत
सरकारी स्कूलों में छात्राओं की संख्या अधिक होने के कई कारण हो सकते हैं लेकिन यह भी सच है कि कई परिवार बेटियों के प्रति पराए घर जाने की मानसिकता रखते हुए उनकी शिक्षा आदि पर उतना ध्यान नहीं देते जितना बेटों पर दिया जाता है। बेटे को परिवार का आधार स्तंभ माना जाता है और माता-पिता मानते हैं कि बुढ़ापे में वही उनके लिए सहारा बनेगा जबकि वास्तव में बेटियां भी बेटे से कम नहीं हैं। बेटी के पराए घर जाने की मानसिकता में बदलाव की और अधिक जरूरत है।
-गेरूलाल व्यास, सेवानिवृत्त सहायक संचालक शिक्षा देवास।
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