दरअसल स्कूली जीवन वह दौर होता है जब बच्चा सांचे में ढलता है। यहीं से शुरू होती है आगे की राह। पुराने दोस्त बिछड़ते हैं तो नए साथी मिलते हैं। अगले कुछ दिनों के बाद उन विद्याॢथयों के लिए यह राह शुरू हो जाएगी जो 12वीं की परीक्षा देंगे। दो से तीन माह बाद स्कूल की दहलीज से निकलकर कदम रखेंगे कॉलेज की चौखट पर। इसीलिए शहर के शासकीय मॉडल स्कूल ने बच्चों के अभिभावकों को पत्र लिखा है कि आने वाले दो माह में उन्हें कैसा व्यवहार करना है। इस पत्र में कई बिंदू हैं जिनको लेकर पालकों को हिदायत भी दी गई है कि उन्हें क्या करना है जिससे बच्चे के जीवन की दिशा निर्धारित हो और अपनत्व की भावना प्रगाढ़ हो।
यह लिखा है पत्र में पत्र में अभिभावकों के लिए लिखा है कि आप अपने बच्चों के साथ खाना खाएं। उन्हें परिश्रम के बारे में बताएं। खाना झूठा न छोड़ें यह सिखाएं। इससे उन्हें मेहनत की प्रेरणा मिलेगी। बच्चों को अपनी मां के साथ खाना बनाना सिखाएंं, इससे यह होगा कि समय आने पर वह भूखा नहीं रहेगा। पड़ोसियों के घर जाएं। उनसे घनिष्ठता बढ़ाएं। मुसीबत मे पड़ोसी ही काम आते हैं, यह बात सिखाएं । अपने काम करने की जगह पर बच्चों को ले जाएं, इससे वे सिखेंगे कि घर चलाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। सोफे, पलंग, कुशन की जिंदगी से बाहर निकालकर बच्चों को दोस्तों के साथ खेलने दें, चोट लगने दें, गंदे होने दें इससे वे प्रकृति से जुड़ेंगे। पढ़ाई के समय बच्चों को टीवी, मोबाइल, गैजेट्स से दूर रहने को कहें। उन्हें बताएं कि इन सबके लिए पूरा जीवन पड़ा है। उन्हें परिवार के साथ घुलने-मिलने दें। सामाजिक रीतियों, परंपराओं के बारे में बताएं। बेटों को शिक्षा दें कि बेटियों का सम्मान करे। पत्र में और भी कई बातें लिखी गई हैं और आखिर में यह बात कही है कि माता-पिता होने के नाते आपका कर्तव्य है कि आप अपने बच्चों को समय दें।
पहली बार हुई पहल यह पहली बार है जब किसी शासकीय स्कूल ने इस तरह का पत्र लिखा है। आमतौर पर अभिभावकों की मीङ्क्षटग होती है, बच्चों को पत्र लिखा जाता है लेकिन अभिभावकों को पत्र लिखने की यह पहल पहली बार हुई है। इसके पीछे खास बात यह भी है कि मॉडल स्कूल के प्राचार्य ने अपने घर-परिवार की स्थिति को देखकर यह पत्र लिखा है और संदेश दिया है कि पढ़ाई का मतलब सिर्फ नंबर गेम नहीं है, अच्छा व्यक्तित्व होना चाहिए।
पढ़ाई जरुरी लेकिन परिवार भी अहम मॉडल स्कूल के प्राचार्य अनिल सोलंकी ने बताया कि जिले में पहली बार हमने इस तरह की पहल की है। प्रदेश में भी शायद ही किसी शासकीय स्कूल ने ऐसा किया हो। मेरा खुद का अनुभव है कि बच्चे पढ़ाई के अलावा घर-परिवार पर ध्यान नहीं देते। अभिभावक भी उन्हें पढ़ाई का ही कहते हैं। उनसे अच्छे परसेंट, मेरिट में आने की अपेक्षा रखते हैं लेकिन मूल चीज भूल जाते हैं। मैंने मेरे खुद के बच्चों में यह देखा है इसलिए हमने स्टाफ के साथ बैठकर इस तरह की पहल की। अभिभावकों तक ये पत्र पहुंच चुका है और उनकी ओर से धन्यवाद भी आ रहे हैं। मकसद यही है कि स्कूल या कॉलेज की शिक्षा के अलावा घर-परिवार की जानकारी, महत्व, संस्कार आदि बच्चों को दिए जाएं जिससे वे सबकुछ समझ सकें।