दरअसल भाजपा ने न्यायाधीश रहे महेंद्र सोलंकी को अपना प्रत्याशी बनाया है। कबीर गायक कांग्रेस के प्रह्लाद टिपानिया से उनका मुकाबला है लेकिन टिपानिया की तुलना में सोलंकी पहचान को तरस रहे हैं। कबीर गायकी की वजह से टिपानिया जहां जन-जन के बीच चर्चित हैं तो सोलंकी जज की नौकरी के चलते सामाजिक जीवन से दूर ही रहे और अब इसके साइड-इफेक्ट भी सामने आ रहे हैं। जब पहली बार सोलंकी भाजपा कार्यालय आए थे तो आधे से अधिक भाजपाई तो इसलिए आए थे कि सोलंकी को देख तो लें कि कैसे दिखते हैं। उन्हें देखने-सुनने के लिए ही लोग आए थे और बाद में अपने हिसाब से उनके व्यक्तित्व के कयास लगाने लगे।
मंगलवार का कहा मगर कहकर भूल गए भाजपा कार्यालय पर सोलंकी ने खुद को राष्ट्रवादी करार दिया और नौकरी की मर्यादा की बात कहकर ज्यादा बोलने से इंकार किया। हालांकि देवास विधायक के पैर जरूर छुए और इससे उपस्थितों को संकेत भी दे दिए। बाद में मीडिया से चर्चा की। चर्चा में जब उनसे सवाल पूछे तो सिवाय खुद के जीवन परिचय के ज्यादा कुछ नहीं बोले। राजनीति में आने का मकसद सेवा बताया और जब पूछा कि तैयारी कब से चल रही थी तो कहा कि मंगलवार को बात करूंगा। अन्य सवालों के जवाब भी यह कहकर टाले कि मंगलवार को विस्तार से बात करूंगा लेकिन मंगलवार के साथ ही गुरुवार भी बीत गया लेकिन सोलंकी पलटकर कार्यालय नहीं आए। कार्यकर्ता भी कहने लगे कि वादा करने के बाद तो आना था, चाहे कुछ देर रूकते। क्योंकि यदि अभी से ये हाल रहेंगे तो आगे मुश्किल होगी। इसके पहले मनोहर ऊंटवाल जब सांसद थे तब भी यही समस्या हुई थी। देवास के लिए ऊंटवाल समय नहीं निकाल पाते थे और करीब आधा कार्यकाल बीतने के बाद वे मीडिया से मुखातिब हुए। बाद में देवास में निवास करने लगे, लेकिन यहां भी कुछ नेताओं से घिरे रहे।
इंदौरी नेताओं के दखल की चर्चा
सूत्रों का कहना है कि चूंकि सोलंकी की पढ़ाई-लिखाई इंदौर में ही हुई है और राजनीतिक यात्रा भी इंदौर से शुरू हुई इस कारण इंदौर के नेताओं से उनकी नजदीकी है। देवास-शाजापुर से टिकट मिलने के बाद इंदौरी नेताओं का देवास में दखल भी बढ़ गया है जिस कारण स्थानीय नेता चिंतित नजर आ रहे हैं। संगठन की मर्यादा के चलते खुलकर तो कोई कुछ नही ंबोल रहा लेकिन दबीजुबान कह रहे हैं कि यदि हालात ऐसे ही रहे तो देवास के नेताओं पर इंदौरी नेता हावी होंगे और लोकसभा के बाद जिले की दूसरी विधानसभाओं में भी इसका असर देखने को मिल सकता है।
इंदौरी नेताओं के दखल की चर्चा
सूत्रों का कहना है कि चूंकि सोलंकी की पढ़ाई-लिखाई इंदौर में ही हुई है और राजनीतिक यात्रा भी इंदौर से शुरू हुई इस कारण इंदौर के नेताओं से उनकी नजदीकी है। देवास-शाजापुर से टिकट मिलने के बाद इंदौरी नेताओं का देवास में दखल भी बढ़ गया है जिस कारण स्थानीय नेता चिंतित नजर आ रहे हैं। संगठन की मर्यादा के चलते खुलकर तो कोई कुछ नही ंबोल रहा लेकिन दबीजुबान कह रहे हैं कि यदि हालात ऐसे ही रहे तो देवास के नेताओं पर इंदौरी नेता हावी होंगे और लोकसभा के बाद जिले की दूसरी विधानसभाओं में भी इसका असर देखने को मिल सकता है।
एक के होठों पर भजन, दूसरे की आंखों में आंसू बुधवार को शाजापुर प्रवास के दौरान सोलंकी अपने परिवार की पृष्ठभूमि बताते हुए रो पड़े। बोलते-बोलते आंखें भर आई। सोशल मीडिया पर उनका वीडियो चला। रूदन की इस भावना के सियासत में अलग-अलग मायने निकाले गए। यहां तक बातें हुई कि एक उम्मीदवार भजन गाकर वोट मांग रहा है तो दूसरा आंसू बहाकर। यह बात इसलिए हो रही है क्योंकि अब तक हुए कांग्रेस के कार्यक्रमोंं में कांग्रेस उम्मीदवार भजन गाते नजर आए और कांग्रेसियों ने ही उनसे भजन गाने की डिमांड भी की। दूसरी तरफ सोलंकी का प्रवास 10 अप्रैल से ही शुरू हुआ है और इसकी शुरुआत में ही उनकी आंखों से आंसू भर आए तो चर्चाएं शुरू हो गई।
टिकट के बाद क्रेडिट लेने की कोशिश सोलंकी के टिकट के बाद अब क्रेडिट की होड़ मची है। भाजपा कार्यालय पर आमतौर पर अब तक किसी तरह का फ्लेक्स नहीं टांगा गया था लेकिन जब सोलंकी का टिकट हुआ तो उनका आदमकद फ्लेक्स टांगकर स्वार्थ साधा गया। शहरभर में कुछ नेता यहां तक कहलवा रहे हैं कि टिकट के पीछे उनका हाथ है। ऐसा ही एक मामला सोशल मीडिया पर चला जिसमें कहा कि एक भिया ने सोलंकी के टिकट के पीछे अपनी मेहनत बताई लेकिन उक्त भिया के वार्ड में ही कांग्रेस के पार्षद हैं। इस तरह की घटनाओं के बाद क्रेडिट लेने वाले नेताओं पर तंज कसे जा रहे हैं।