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जिला अस्पताल में इलाज मिले कैसे अधिकांश डॉक्टर निजी क्लिनिक चला रहे

locationदेवासPublished: Mar 14, 2019 12:03:41 pm

– गंभीर बीमारी में अधिकांश को किया जाता रेफर, सबसे खराब ढर्रा प्रसूति वार्ड का, बिना पैसा दिए नहीं होती डिलेवरी

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देवास.अमजद शेख जिला अस्पताल में बुधवार से डेंगू की जांच भी होने लगी, वहीं पैथोलाजी में माइक्रो स्कोप मशीन भी सूक्षम जांच के लिए आ गई। पिछले साल से सिटी स्कैन मशीन भी शुरू हो गई थी, जहां गरीबों का नि:शुल्क व अन्य को रियायती दरों पर सिटी स्कैन का लाभ मिल रहा हैं, ये तस्वीर का एक पहलू हैं जहां शासन ने तेजी से जांच की कई सुविधाएं मुहैया कराकर महंगी जांचों से मरीजों को निजात दिलाने की कोशिश की हैं, जिला अस्पताल की दूसरी तस्वीर इसके ठीक उलट हैं, जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों को ठीक से इलाज नहीं मिल पा रहा हैं। इलाज में ये कमी डॉक्टरोंं के निजी प्रेक्टिस करने के कारण आ रही हैं।
जिला अस्पताल में नौकरी करने वाले अधिकांश डॉक्टर खुद का निजी क्लिनिक चलाते हैं। ऐसे में डॉक्टर अपनी निजी प्रेक्टिस व सरकारी ड्यूटी के बीच पूरी तरह से ईमानदार नहीं रह पा रहे हैं। ये तस्वीर का दूसरा बदरंग पहलू हैं जिसे आज तक सुधारा नहीं जा सका हैं, बदरंग तस्वीर का सबसे बड़ा उदाहरण जिला अस्पताल का प्रसूति वार्ड हैं, यहां पैसे के लेनदेने को लेकर कई बार शिकायतें अस्पताल प्रबंधन के पास भी पहुंची, विवाद भी हुए, लेकिन कोई सुधार आज तक नहीं हो सका। पूर्व कलेक्टर आशीष सिंह इस मर्म को समझ गए थे, डॉक्टरों पर नकेल कसने के लिए उन्होंने डिप्टी कलेक्टर को जिला अस्पताल का नोडल अधिकारी बनाकर इसे अपनी प्रशासनिक निगरानी में ले लिया था। उन्होंने कई डॉक्टरों का ओपीडी के समय पटवारी को भेजकर निरीक्षण कराया था कि वे निजी अस्पताल में हैं या फिर जिला अस्पताल में ड्यूटी दे रहे हैं। उस समय एक महिला डॉक्टर धरा गई थी। जो कसावट आशीष सिंह कुछ समय के लिए जिला अस्पताल में लेकर आए थे वो उनके जाने के बाद ही धाराशायी हो गई।
मंत्री वर्मा ने भी उठाए थे सवाल

जिले की सोनकच्छ विधानसभा से विधायक व प्रदेश सरकार में लोक निर्माण मंत्री सज्जनसिंह वर्मा भी जिला अस्पताल से बड़ी संख्या में मरीजों के निजी अस्पतालों में रेफर किए जाने पर नाराजगी जता चुके हैं। नाराजगी में उन्होंने यहां तक कहा था कि वे किसी दिन स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट के साथ जिला अस्पताल का औचक निरीक्षण करेंगे। मंत्री की खुली नाराजगी के बाद भी जिला अस्पताल से निजी अस्पतालों में रेफर मरीजों की संख्या में कमी नहीं आई हैं।
6 से 7 डॉक्टर गायब, नहीं हुए टर्मिनेट

जिला अस्पताल से 6 से 7 डॉक्टर बिना सूचना के दो साल से अधिक समय से गायब हैं। इन गायब डॉक्टरों को टर्मिनेट कर नई भर्ती के लिए कई बार जिला अस्पताल प्रबंधन ने भोपाल लिखा, लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया जा सका। जिला अस्पताल में अभी 17 विशेषज्ञ डॉक्टर व 24 सेकंड क्लास डॉक्टर कार्यरत हैं। जिला अस्पताल करीब 900 से 1200 मरीज रोजाना इलाज के लिए आते हैं। अधिकांश सामान्य बीमारी के होते हैं। जो गंभीर हालत में आते उन्हें सीधे रेफर कर दिया जाता हैं। जिला अस्पताल के ड्यूटी डॉक्टरों का कहना है कि जिला अस्पताल पर मरीजों का दबाव अधिक हैं। इस कारण ठीक से सभी मरीजोंं को देखना संभव नहीं हो पाता हैं। लेकिन यहीं भीड़ जब उनके निजी क्लिनिकों पर रहती हैं तो उन्हें कोई परेशानी नहीं आती हैं।
नाम का आईसीयू अलग से नहीं मिलता डॉक्टर

गंभीर हालत में जिला अस्पताल आने वाले मरीजों के लिए आईसीयू बनाया गया हैं लेकिन ये केवल नाम का हैं। आईसीयू में आने वाले मरीज को इमरजेंसी डॉक्टर ही देेखता हैं। जबकि आईसीयू के लिए अलग से डॉक्टर की ड्यूटी होना चाहिए। 24 घंटे आईसीयू में ड्यूटी के लिए 4 डॉक्टर चाहिए। जिला अस्पताल पर जिले की पूरी आबादी का भार हैं लेकिन आईसीयू में अलग से डॉक्टर की व्यवस्था आज तक नहीं हो पाई हैं। वहीं ट्रामा सेंटर के साथ ही लगा हुआ इमरजेंसी वार्ड होना चाहिए, इसे लेकर पूर्व कलेक्टर आशीषसिंह ने योजना बनाई थी लेकिन अब मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
दानदाताओं का नहीं मिल रहा सहयोग

जिला अस्पताल में सुविधाओं के विस्तार के लिए शहर के दानदाताओं में भी उत्साह कम हैं। दानदाताओं के सहयोग से जिला अस्पताल में पार्क बनाए जाने की योजना तैयार की गई थी। इसके लिए करीब 8 से 10 लाख का खर्च आ रहा था। लेकिन ये योजना बाद में ठंडे बस्ते में चली गई।
तीन माह से बंद पड़ी बायोकेमेस्ट्री मशीन

पिछले तीन माह से बायोकेमेस्ट्री मशीन खराब पड़ी हैं। पीलिया, शूगर, बीपी व अन्य महत्वपूर्ण जांचों में इसका उपयोग किया जाता हैं। अस्पताल प्रबंधन ने भोपाल इसकी जानकारी पहुंचाई हैं लेकिन अभी तक बायोकेमेस्ट्री मशीन शुरू नहीं हो पाई हैं। इसके साथ ही पिछले 6 माह से सीआर्म मशीन भी खराब हैं। इस मशीन से हड्डी का ऑपरेशन किया जाता हैं। प्रदेश के जिला अस्पतालों में एसएनसीयू यूनिट के साथ अलग से लेबोरेट्री भी रहती हैं लेकिन जिला अस्पताल में अलग से लेबोरेट्री नहीं हैं। यहांं पर एक मात्र लैब टेक्निशियन का भी अन्य जगह स्थानांतरण हो चुका हैं। अलग से लेबोरेट्री होने से जांच में सुविधा रहती लेकिन अभी इसका इंतजार बना हुआ हैं। सिविल सर्जन डॉ. आरके सक्सेना ने बताया कि जो जांच मशीनें खराब हो गई हैं उन्हें जल्द सुधार लिए जाएगा इसके लिए शासन को पत्र लिखा गया हैं।
सिविल सर्जन डॉ. आरके सक्सेना से सीधी बात
पत्रिका- 1. जो 6-7 डॉक्टर दो साल से गायब हैं उन पर कार्रवाई के लिए क्या किया
सिविल सर्जन- कई बार भोपाल हमने पत्र लिखा हैं। थोड़े दिन पहले भी फिर से भोपाल पत्र लिखकर दिया था। वहां से कुछ नहीं हो रहा। भोपाल बुलाया था उन्हें, निकालने की कार्रवाई होनी थी, लेकिन ऐसा अभी तक नहीं हुआ। भोपाल से जब तक इन्हें बाहर नहीं किया जाएगा तब तक ये गायब डॉक्टर हमारे रिकार्ड में बने रहेंगे।
पत्रिका- समय पर नहीं आने वाले डॉक्टरों पर निगरानी कैसे होती
सिविल सर्जन- जिला अस्पताल से डॉक्टर गायब नहीं रहते, बायोमेट्रिक मशीन लगी हुई हैं। जिला अस्पताल में वैसे भी डॉक्टरों की भारी कमी हैं। अगर डॉक्टर गायब रहते तो यहां की व्यवस्था प्रभावित हो जाती।
पत्रिका- निजी प्रेक्टिस पर रोक क्यों नहीं
सिविल सर्जन- निजी प्रेक्टिस डॉक्टर कर सकते हैं। इस पर शासन की तरफ से ही रोक नहीं हैं। सिर्फ जिला अस्पताल में अपनी ड्यूटी समय पर वे निजी प्रेक्टिस नहीं कर सकते।
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