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त्याग-तपस्या, साधना-समर्पण के सौंदर्य से पुष्पित-पल्लवित हुआ पुष्पगिरी तीर्थ

locationदेवासPublished: Jul 22, 2019 12:20:00 pm

Submitted by:

mayur vyas

तपाचार्य अंतर्मना मुनिश्री प्रसन्न सागर जी के स्वॢणम जन्म जयंती महोत्सव का हुआ शुभारंभदेश के विभिन्न शहरों के अलावा नेपाल, फिलीपींस, दुबई आदि देशों से आए भक्तजन१४ साल बाद एक साथ एक जगह चातुर्मास कर रहे गुरु-शिष्यमुनिश्री प्रसन्न सागर जी ने कहा- जब दीक्षा को 25 साल हुए थे तब भी गुरुदेव थे साथ, आज जन्म को 50 साल हो रहे तो मिला गुरुदेव का आशीष

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देवास/सोनकच्छ. धर्म और आध्यात्म की ऊर्जा और चेतना को खुद में समेटे जैन तीर्थ पुष्पगिरी पर आस्था और भक्ति की बयार बह रही है। श्रावण माह में हरीतिमा से आच्छादित प्राकृतिक सौंदर्य की छटा तो मन मोह ही रही है लेकिन इस सौंदर्य में जैन धर्म के मुुनिवर, आचार्यवर की साधना-तपस्या, त्याग, समर्पण की मूरत परिलक्षित हो रही है। नजर आ रहा है शिष्य के प्रति गुरु का वात्सल्य और गुरु के प्रति शिष्य का समर्पण। इन अद्भुत पलों को अपनी स्मृति में संजोने के लिए देश के साथ विदेश से भी गुरुभक्त पुष्पगिरी पहुंचे हैं। गुरु की कृपाछाया में शिष्य स्वर्णिम जन्म जयंती महोत्सव के साक्षी बनने के लिए हर आंख भक्ति से भरी है।
दरअसल भक्ति के साथ श्रद्धा-आस्था की त्रिवेणी से इन दिनों जैन तीर्थ पुष्पगिरी पल्लवित हो रहा है। यहां आचार्य श्री पुष्पदंत सागरजी अपने सुशिष्य तपाचार्य अंतर्मना मुनिश्री प्रसन्न सागर जी व मुनिश्री पीयूष सागर जी, एल्लक श्री पर्वसागर जी व अन्य साधु-साध्वियों के साथ चातुर्मास के लिए आए हैं। मुनिश्री प्रसन्न सागर जी जीवन के ५०वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं । इस उपलक्ष्य में स्वॢणम जन्म जयंती महोत्सव आयोजित हो रहा है। रविवार से महोत्सव शुरू हुआ जिसमें देश-विदेश के मेहमानों-गुरु भक्तों ने शिरकत की। सुबह से लेकर देर शाम तक कार्यक्रम चला।
मनोहारी नृत्य ने मोहा मन
रविवार तडक़े गुरुदेव द्वारा भगवान के कलशाभिषेक शांतिधारा धार्मिक अनुष्ठान करवाए गए। सन्मति सभागृह में ध्वजारोहण मंडप उद्घाटन हुआ। गुरुदेव द्वारा गुरुभक्तों के बीच तीर्थ पर 108 पौधे रोपे गए। ढोल-ढमाकों के साथ ससंघ गुरुदेव का पंडाल में आगमन हुआ। गुरुदेव की झलक पाने के लिए भक्तगण व्याकुल थे । मंगलाष्टक के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। मंगलाचरण व स्वागत गीत की मनोहारी प्रस्तुति दी गई। सोनकच्छ की रश्मि सेठी, मनाली सेठी, गरिमा सेठी, आंचल बाकलीवाल, कोमल टोंग्या, गरिमा पाटोदी, खुश्बू मोदी, प्रियंका जैन आदि ने दि सोल डांस एकेडमी के रवि सिंह द्वारा निर्देशित किए गए नृत्य की मनोहारी प्रस्तुति दी। णमोकार मंत्र व गुरु वंदना को नृत्य में पिरोया। भगवान पाश्र्वनाथ के चित्र का अनावरण किया गया। ब्रह्मचारी तरुण भैया ने सधे हुए संचालन से सबको बांधे रखा। उन्होंने दुर्लभ संस्मरण सुनाए। देर शाम को फिल्म कलाकार विवेक ओबेरॉय व मनोज शर्मा पहुंचे। सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। शोभा देवी का सम्मान कर गोद भराई हुई। महोत्सव के अंतर्गत आज स्वॢणम जन्म जयंती विशेष आयोजन व गुरु कृपा महोत्सव होगा।
मुनि बनना सरल लेकिन सरल बनना कठिन
स्वागत-सम्मान के बाद वह घड़ी आई जिसका सभी भक्तों को इंतजार था। मुनिश्री और आचार्यश्री के प्रवचन के लिए हर कोई प्रतीक्षारत था। शुरुआत में एल्लकश्री पर्वसागर जी ने संबोधित करते हुए क्रांतिकारी संत मुनिश्री तरुण सागर जी से जुड़े संस्मरण सुनाए। जीवन में त्याग-तपस्या की भावना की बात कही। अपने गुरुदेव से प्रार्थना की कि वे इस चातुर्मास के दौरान वे उन्हें रत्नत्रय मंत्र देकर दीक्षा प्रदान करें। इसके बाद मुनिश्री पीयूष सागर जी ने प्रवचन दिए। कहा कि पहली बार ऐसा हो रहा है कि जैन संत के जन्म जंयती महोत्सव में विदेश से मेहमान आए हैं। मुनि बनना सरल है लेकिन सरल होना ही कठिन है। ह्रदय में कोमलता, स्वभाव में शीतलता, वचन में मधुरता और मन में सरलता का भाव जिसमें है वही श्रेष्ठ हैं। जिसने इंद्रियों को वश में किया सिर्फ वही जैन नहीं है बल्कि जिसने न्यायपूर्ण जीवन जीने की उद्घोषणा की है वह भी जैन है।
मृत्यु से भय है और जीवन से राग
तपाचार्य अंतर्मना मुनिश्री प्रसन्न सागर जी ने कहा कि मैं सिर्फ दस मिनट बोलूंगा क्योंकि मेरे गुरुदेव की शरण में बैठा हूं । उन्हें ही सुनना है। गुरुदेव को प्रणाम करते हुए कहा कि पुष्पदंत को नित नमूं तजने को अज्ञान, दो आशीष मुझे करूं आत्म कल्याण। इसके बाद कहा कि व्यक्ति सर्वाधित मृत्यु से भयभीत रहता है। व्यक्ति चाहता है कि उसकी मृत्यु कभी न हो। सत्य तो यह है कि दुख की अति में व्यक्ति मरना चाहता है और सुख की अति में व्यक्ति संन्यास की सोचता है। व्यक्ति को मृत्यु से भय और जीवन से राग है। यहां जितने भी लोग बैठे हैं सभी के मन में कभी न कभी मरने का ख्याल आया होगा। अधर्मी और पापात्मा मरने का विचार करती है। मुनिश्री ने कहा कि यह बड़े सौभाग्य की बात है कि २००५ में मैंने आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के साथ नलवाड़ी में चातुर्मास किया था ।१४ सालों बाद आज यहां चातुर्मास कर रहा हूं। जब दीक्षा के २५ साल पूरे हुए थे तब भी गुरुदेव साथ थे और आज जब जन्म के ५० साल पूरे हो रहे तब भी गुरुदेव साथ हैं। तीन संकल्प दिलाते हुए कहा कि तीर्थ में जाओ तो कभी क्रोध न करना। तीर्थ में जाओ तो कभी रात को भोजन न करना और भोजन कभी झूठा मत छोडऩा। भोजन को झूठा छोडऩे वाले को कभी भोजन का सुख नहीं मिलता।
व्यक्ति का व्यवहार औपचारिक है, प्रामाणिक नहीं
आचार्य श्री पुष्पदंत सागर ने संबोधित करते हुए कहा कि जब राजनीति धर्म की शरण में आती है तो सुहागिन की तरह होती है लेकिन धर्म राजनीति की शरण में जाता है तो विधवा की तरह होता है। व्यक्ति का व्यवहार प्रामाणिक नहीं, औपचारिक है। इंसान हर किसी से औपचारिक व्यवहार करता है। यह शरीर परमात्मा से मिलने का माध्यम है, मार्ग है। रस भोजन में नहीं होता, रस हम निॢमत करते हैं। रस हमारे अंदर है। रस का परित्याग करना जरूरी है। हमारे अंदर बैठा खलनायक खतरनाक है। हमारा शरीर सिवाय गंदगी के कुछ नहीं। इसके अंदर जो भी डालो सब मल के रूप में बाहर निकल जाता है। कितनी भी कीमती सामग्री शरीर को लेकिन वह मल में परिणीत होगी। गाय का गोबर तो फिर भी काम आ जाता है लेकिन इंसान का मल किसी काम का नहीं। रस के पीछे मत भागो। रस से ही वासना बनती है। हम खुद को धोखा दे रहे हैं। उन्होंने इंसानी लोभ की एक सुंदर कथा सुनाते हुए कहा कि हम सब जमीन के पीछे भाग रहे हैं लेकिन जब वापस आते हैं तब तक देर हो जाती है और शरीर किसी काम का नहीं रहता।
नेपाल आने का दिया आमंत्रण
कार्यक्रम में नेपाल से आए फुलकुमार ने अपने संस्मरण सुनाकर बात रखी। नेपाल में गुरुदेव को आमंत्रित किया और कहा कि इससे दोनों देशों के सांस्कृति संबंध और प्रगाढ़ होंगे। इसके अलावा ललितपुर के डॉ. पंकज जैन ने अपनी बात रखी। बांसवाडा के पं. लोकेश ने संस्कृत में अपनी बात रखी और ताप, पाप, अभिशाप के बारे में बताया। पं. सुशील सहित अन्य गुरु भक्तों ने वक्तव्य दिए।
सौभाग्य की बात है यहां आना
कार्यक्रमें मुंबई से आए फिल्म निर्देशक सुनील दर्शन ने कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मैं इस महोत्सव में शामिल हुआ। मैं अपनी फिल्मों में भी प्रयास करता हूं कि मनोरंजन के साथ संस्कार भी मिले। बदलते समय, बदलती तकनीक के बावजूद मेरी यही कोशिश रहती है। मप्र के लोक निर्माण व पर्यावरण मंत्री सज्जन सिंह वर्मा भी पहुंचे और कहा कि इस महोत्सव में आना बड़े सौभाग्य की बात है। व्यस्तता के बावजूद मेरा प्रयास रहता है कि यहां समय दे सकूं। आज के दौर में जब राजनीतिक प्रतिस्पर्धा बढ रही है। देशों के बीच विवाद हो रहे हैं ऐसे में मैं चाहता हूं कि सभी जैन धर्म की शरण में आएं। आचार्य श्री की शरण में आएं। वैमनस्यता खत्म होगी और अहिंसा परमो धर्म का संदेश चरितार्थ होगा। रोमिल जैन ने बताया कि इस दौरान कई हस्तियों का सम्मान किया गया। संयोजक प्रशांत जैन, विवेक गंगवाल, कार्याध्यक्ष डॉ.संजय जैन, समन्वयक विवेक जैन कोलकाता, संयोजक जैनेश झांझरी, विकल्प सेठी आदि उपस्थित थे। आभार कार्याध्यक्ष डॉ. संजय जैन माना।
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