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समृद्ध रही है देवास की सांगीतिक परंपरा…देश में है खास पहचान

locationदेवासPublished: Jun 21, 2019 11:36:51 am

Submitted by:

mayur vyas

-विश्व संगीत दिवस पर विशेष-शास्त्रीय संगीत के साथ ही सुगम संंगीत में भी उभर रही प्रतिभाएं

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देवास. सभी जानते हैं कि आज विश्व योग दिवस है लेकिन इसके साथ एक खास दिन और भी है जिसे हर कोई शायद न जानता हो। आज विश्व संगीत दिवस भी है। इस दिन महानगरों में कई आयोजन होते हैं लेकिन देवास भी अब इस दिशा में बढ़ रहा है और यहां के कलाकार राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त कर रहे हैं। वैसे तो संगीत के क्षेत्र में देवास का देश में खास मुकाम है। पं. कुमार गंधर्व, वसुंधरा कोमकली,उस्ताद रजबअली खां, अमानत अली खां साहब के बाद मौजूदा दौर में कुमार साहब की बेटी कलापिनी कोमकली, भुवनेश कोमकली जैसे शास्त्रीय गायकों ने शहर का मान बढ़ाया है। मुकुल शिवपुत्र का देवास से रिश्ता कौन नहीं जानता और उनकी आवाज का मुरीद कौन नहीं है। इसके अलावा अन्य कई कलाकार हैं जिनकी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में अलग पहचान है। न सिर्फ गायन बल्कि नृत्य और वादन के क्षेत्र में भी शहर के कलाकारों ने ख्याति अर्जित की है। विश्व संगीत दिवस के मौके पर ऐसे ही कुछ कलाकारों से पत्रिका ने बात की और अपने सांगीतिक सफर को कलाकारों ने पत्रिका से साझा किया।
दरअसल संगीत इंसानी रूह के बेहद करीब है। खुशी और गम में गाहे-बगाहे जुबां गीत गुनगुनाने लगती है। पुराने दौर के नगमें हो या नए अंदाज के रिमिक्स गाने, हर कोई अपनी पसंद के लिहाज से इन्हें चुनता है। विश्व संगीत दिवस भी पहले अनजान ही था या महानगरों तक सीमित था लेकिन बीते कुछ सालों से यह छोटे शहरों में भी मनाया जाने लगा। कहा जाता है कि फ्रांस में १९८२ में इसकी शुरुआत हुई थी। अमेरिका के साथ भी इसका किस्सा जोड़ा जाता है। २१ जून को कई देशों में विश्व संगीत दिवस पर आयोजन होते हैं जहां एक साथ कई कलाकार संगीत में डूबते हैं।
अतीत की तरह वर्तमान भी है समृद्ध
देवास की बात करें तो यहां सुगम संगीत के क्षेत्र में देवास को किसी परिचय की जरुरत नहीं। अतीत जितना समृद्ध था, वर्तमान भी उसी समृद्धता को बनाए हुए हैं। भविष्य की नई पौध तैयार हो रही है। गायन-वादन के अलावा शास्त्रीय नृत्य के क्षेत्र में घुंघरू नृत्य अकादमी नए कीॢतमान स्थापित कर रही है। कथक नर्तक प्रफुल्ल गेहलोत परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं और कई बच्चे बड़ी प्रतियोगिताओं में पुरस्कार जीत चुके हैं। इसके अलावा और भी ऐसे कई नाम हैं जो शहर की सांगीतिक विरासत को संजोकर इसमें अपना योगदान दे रहे हैं।
गायन के क्षेत्र में बढऩा है आगे
पायोनियर स्कूल में पढऩे वाले ११वीं की छात्रा भूमिका पाठक की आवाज जब गीत गुनगुनाती है तो सुनने वाले सुनते रह जाते हैं। भूमिका ने गोपाल बारोड़, गौरव बर्डे से तालीम ली है और गायन के क्षेत्र में आगे बढऩे की ख्वाहिश है। १०वीं बोर्ड में भी भूमिका ने ९० से ज्यादा प्रतिशत अंक अर्जित किए हैं और अब संगीत के क्षेत्र में भी आगे बढ़ रही हैं। भूमिका का कहना है कि देवास में कई सांगीतिक प्रतियोगिताओं में परफॉर्म कर चुकी हूं। २३ जून को गीतांजलि ग्रुप की प्रतियोगिता में भाग लूंगी। शास्त्रीय संगीत सीख रही हूं। कलापिनी कोमकली व संजीवनी कांत से बात भी हुई थी। कोशिश है कि इन जैसे कलाकारों से सीखूं। संगीत में संघर्ष बहुत है लेकिन यदि आपमें प्रतिभा है तो आपको सफलता जरुर मिलेगी।
घर में रखे हैं हर तरह के ताल वाद्य
शहर की सांगीतिक संस्था है प्रवाह जिसे संचालित करते हैं प्रवीण कुमार वर्मा। प्रवीण ने ताल वाद्यों पर अपनी गहरी पकड़ बनाई है। शायद ही कोई ऐसा ताल वाद्य हो जो उनके पास न हो। घर का एक कमरा वाद्य यंत्रों से भरा पड़ा है। तबले-ढोलक से लेकर ऑक्टोपेड व ड्रम्स तक उपलब्ध हैं। प्रवीण ने अपनी मेहनत से संगीत के क्षेत्र में खास उपलब्धि पाई हैै और अपनी संस्था के माध्यम से आयोजन करते हैं। विश्व संगीत दिवस के मौके पर भी २१ जून को शाम ७ बजे से गीता भवन पर संगीत समारोह आयोजित कर रहे हैं। प्रवीण बताते हैं कि विगत दस सालों से वे संगीत के क्षेत्र में हैं। शुरुआत में गायन को चुना लेकिन रूझान ताल वाद्यों में ही थी लिहाजा इस ओर झुक गए। बबलू शर्मा से ड्रम्स सीख रहे हैं और ख्यात ड्रमर शिवामणि उनके आदर्श हैं। देश के कई शहरों में हुए संगीत आयोजनों में प्रवीण शिरकत कर चुके हैं। वल्र्ड कल्चर फेस्टिवल से लेकर नर्मदा यात्रा तक में उन्होंने सांगीतिक सहभागिता की है। उनकी संस्था में २० से २५ लोग हैं। खास बात ये है कि संगीत के साथ ही संस्था सामाजिक कार्यों में भी हिस्सा लेती है। आगामी दिनों में संस्था गरीब बच्चियों के विवाह का बीड़ा उठाएगी, इस पर काम चल रहा है। प्रवीण का कहना है कि हमारा प्रयास रहता है कि देवास के लोगों को ज्यादा अवसर मिले। प्रतिभा की कमी नहीं है लेकिन प्रतिभा को मंच नहीं मिल पाता। हम हमारे कार्यक्रमों में नवोदित कलाकारों को मौका देते हैं। आयोजन में ट्रेक का उपयोग नहीं करते क्योंकि इससे संगीत का मूल विकृत हो जाता है। पारंपरिक वाद्य यंत्र ही ज्यादा बजाता हूं। आने वाले दिनों में नया कंसेप्ट शुरू कर रहा हूं जिसमें संजा बाई, होली के फाग गीत, दीवाली के पारंपरिक गीतों को पुनर्जीवित करेंगे। इस पर काम चल रहा है।
सिंगापुर के लिए हुए सिलेक्ट
संगीत के क्षेत्र में ऐसे ही कुछ और नाम हैं जो हैं बचपन में ही अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं। साईं कला संगीत क्लासेस के ये बच्चे कई संगीत प्रतियोगिताओं में पुरस्कार जीत चुके हैं। अभा सांस्कृतिक संंघ पुणे द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं में पुरस्कार जीतने वाले ये बच्चे अब सिंगापुर जाएंगे। संगीत शिक्षक शिरीष चांदोलीकर ने बताया कि अंशिका परवाल ने प्रथम, अभिषेक वर्मा ने द्वितीय व अरुण कुमावत ने तीसरा पुरस्कार जीता। दिसंबर में सिंगापुर जाएंगे। इसके पहले भी एकेडमी के कई बच्चों ने पुरस्कार जीते हैं। ये पुरस्कार गायन और वादन के क्षेत्र में जीते गए हैं।
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