scriptभिक्षावृति रोकने की जिम्मेदारी दो विभागों के पास लेकिन नहीं देखते मैदानी हकीकत | Two departments have responsibility to stop begging but do not see the | Patrika News

भिक्षावृति रोकने की जिम्मेदारी दो विभागों के पास लेकिन नहीं देखते मैदानी हकीकत

locationदेवासPublished: Aug 13, 2019 11:37:12 am

Submitted by:

mayur vyas

शहर के अंदर भिक्षावृति संगठित उद्योग की तरह पनप गया जिसमें लगा रखा है बच्चों को

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देवास. भिक्षावृति पर रोक लगे इसे लेकर कोई स?ती शहर के अंदर कभी नहीं की गई। भिक्षावृति रोकने का अभियान शहर के अंदर विभागों के आपसी सामंजस्य की कमी से भी कारगार नहीं हो पा रहा हैं। साफ दिख रहा है कि महिला सशक्तिकरण विभाग, सामाजिक न्याय विभाग अभी तक तालमेल नहीं बैठा पाए हैं। साथ ही विभिन्न थाना अंतर्गत पुलिस का भी सहयोग इसमें चाहिए। जब तक ये तीनों विभाग एक साथ नहीं आते मुश्किल है कि शहर के अंदर बच्चों से भीख मंगाने वालों के हौसलें पस्त होंगे। ये ढील ही अब लोगों के लिए मुसीबत बनती जा रही है। नियम के अनुसार 0 से 18 वर्ष तक के भिक्षावृति करने वालों पर कार्रवाई महिला सशक्तिकरण विभाग को करना है, वहीं 18 वर्ष से अधिक उम्र वाले व्यक्ति अगर भिक्षावृति करते मिले तो ये जि?मा सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन कल्याण विभाग का है।
आप शहर के किसी भी क्षेत्र में कुछ देर के लिए खड़े हो जाइए भिक्षावृति करने वाले बच्चे व बड़े आपको घेर लेंगे। वे पहले आपसे मनुहार करेंगे, नाराज होने पर आपको दो बाते भी सुना जाएंगे। भिक्षावृति करने वालों के कारण सडक़ के रहागीर, होटल संचालक, मंदिर-मस्जिद जाने वाले लोग काफी परेशान हैं। भिक्षावृति शहर के अंदर पेशागत रूप ले चुकी है। बस स्टैंड परिसर पर तो भिक्षावृति से जुड़े लोगों का एक तरह से कब्जा ही हो चुका है।
आरटीई का भी उड़ रहा माखौल
भिक्षा मांगने पर कानूनन रोक है, इसे गैर कानूनी घोषित किया है। खासकर जिन हाथों में किताब होनी चाहिए, उन हाथों में भीख का कटोरा देने वालों पर सख्त कार्रवाई का प्रावधान है। लेकिन इन सब पर नजर डाले तो सिर्फ यह कोरी घोषणाएं है। सरकार सात साल से लेकर 14 वर्ष तक के वंचित बच्चों के लिएभी शिक्षा का अधिकार कानून बनाकर लाई है लेकिन शहर के अंदर बड़ी सं?या में बच्चे भी भीख मांग रहे हैं। आरटीई को प्रभावी बनाने के लिए गैर सरकारी संगठनों के जरिए सरकार झुग्गी-झोपड़ी युक्त क्षेत्रों में स्पेशल स्कूल चला रही है। जिसका महत्वपूर्ण उद्देश्य बच्चों को शिक्षा देना और उन्हें बाल मजदूरी एवं भिक्षावृति से रोकना है। शिक्षा के साथ बच्चों को भोजन, किताब, कॉपी सहित अन्य सुविधा का लाभ भी दिया जाता है। लेकिन तमाम सरकारी व्यवस्थाओं के बावजूद न तो बाल मजदूरी रुक रही है और न ही भिक्षावृत्ति पर लगाम लग रही है।
भीख मांगना दंडनीय अपराध
मप्र भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम 1973 के तहत भीख मांगना दंडनीय अपराध है। इतना ही नहीं इस कानून के तहत भिखारियों के पुनर्वास और ट्रेनिंग देकर सामान्य जीवन में लौटने के उपाय करने का भी प्रावधान है। इस कानून के पालन की जि?मेदारी सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन कल्याण विभाग की है। अफसोस कि इस कानून के प्रावधान लागू ही नहीं किए गए। इस कारण न तो भिखारियों पर पुलिस कोई स?त कार्रवाई करती है न ही सामाजिक न्याय विभाग को उनके पुनर्वास की जिम्मेदारी उठाने के लिए कोई मशक्कत करनी पड़ती है। जिले में भिक्षावृत्ति करने वाले आकड़ों की संख्या जिले में किसी भी विभाग के पास उपलब्ध नहीं है।
चाइल्ड लाइन भिजवा देते
भिक्षावृति करते बच्चों के पुनर्वास को लेकर एनजीओ व समाजिक संस्थाएं ही आगे आती है। इनकी सूचना पर महिला सशक्तिकरण विभाग सक्रिय होता है लेकिन ऐसे बच्चों को चाइल्ड लाइन भिजवा दिया जाता है। वहीं 18 से अधिक उम्र के भिखारियों को लेकर सामाजिक न्याय विभाग की जि?मेदारी बनती है, लेकिन इनकी समस्या विभाग की प्राथमिकता में ही नहीं है।
पहली बार पकड़ाए तो दो साल की सजा
भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम के तहत भिखारी के रूप में पहली बार भीख मांगते पकड़े जाने पर दो साल और दूसरी बार में 10 साल की जेल का प्रावधान है। इसकी जि?मेदारी पुलिस के साथ सामाजिक न्याय विभाग की भी है। आईपीसी की धारा 133 में भीख मांगने को पब्लिक न्यूसेंस मानते हुए ऐसे दंड का प्रावधान है।
वर्जन-जिले में लगातार चल रहा अभियान
भीक्षावृत्ति को रोकने के लिए भिक्षा नहीं शिक्षा नाम से हमने जिले में बहुत सारे प्रोग्राम चलाए हैं। भिक्षावृत्ति करते हुए अगर किसी को कोईबच्चा मिले तो वो चाइल्ड लाइन 1098 पर शिकायत कर सकता है। सूचना पर हम टीम बनाते हैं। जिसमें हमारे व महिला बाल विभाग के अधिकारी शामिल रहते हैं। सूचना पर बच्चे को रेस्क्यू करके लाते हैं। बच्चे के माता-पिता की भी काउंसलिंग करते हैं, समझाइश देते हैं। बच्चे के माता पिता नहीं होते हैं तो ऐसे बच्चों को बाल संरक्षण गृह भेजा जाता है। अगर कोई बच्चे का केयर टेकर मिल जाता है तो उसे वहां पर रखकर उसकी शिक्षा की व्यवस्था कराते हैं।
आकांक्षा बेछोटे, महिला सशक्तिकरण अधिकारी
महिला सशक्तिकरण विभाग देवास।
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