करीब आधे घंटे तक सोलंकी के साथ घूमने के बाद हम पहुंचे कांग्रेस प्रत्याशी प्रह्लाद सिंह टिपानिया के पास। साधारण कुर्ता-पायजामा पहने हुए। गले में तीन रंगों का दुपट्टा पहने टिपानिया शुक्रवारिया हाट स्थित धर्मस्थल के बाहर बैठे थे। यहां लोगों से मिले। किसी के के हाथ जोड़े तो किसी से हाथ मिलाया। कुछ देर बाद वहां से निकलकर वे दूसरी जगह गए। रास्ते में किसी ने हार पहनाया तो किसी ने कहा कि हल्के गाड़ी हांको…वाला भजन सुना दीजिए। टिपानिया इतने सहज की कबीर के पद सुनाते हुए भजन सुनाने लग जाते। कई युवा उनके पैर छूते तो वे युवाओं से उनका साथ मांगते। अपने भाषणों में भी टिपानिया सहज ही नजर आते और संत वाली छवि के साथ लोगों के बीच जाते। राजनीति में संत छवि के लोगों की जरुरत बताते और संतों के वचन सुनाते।
समाजों के बीच गए, श्रमिक वर्ग से मिले दरअसल शुक्रवार को प्रचार का आखिरी दिन था। पत्रिका दोनों प्रत्याशियों के जनसंपर्क में पहुंचा और दोनों की शैली देखी। थकान दोनों के चेहरों पर नहीं थी और पैर भी फुर्ती से उठ रहे थे। दोनों के साथ अपनी पार्टी के नेताओं का काफिला था। जनसंपर्क के दौरान दोनों ही प्रत्याशियों ने लोगों से तो मुलाकात की है, समाज प्रमुखों से चर्चा की। क्लबों में गए। वकीलों के संगठनों से मिले। अंतिम दिन श्रमिक संगठनों व श्रमिकों से मिले। जनसंपर्क के दौरान दोनों ही उम्मीदवार कहते रहे कि आप हमारे हाथ मजबूत कीजिए, हम विकास में कसर नहीं छोड़ेंगे। हालांकि स्थानीय मुद्दों की बातें जनसंपर्क में बहुत कम हुई। राष्ट्रीय मुद्दों पर ही चर्चा हुई। भाजपा प्रत्याशी राष्ट्रवाद का नारा लेकर लोगों के बीच गए। मोदीजी के चेहरे के नाम पर वोट मांगे। युवाओं पर फोकस किया। कांग्रेस प्रत्याशी कबीरीयित के मार्फत सियासी डगर पर चले और मप्र कांग्रेस सरकार की उपलब्धियां गिनाई। मोदी सरकार की विफलता की बात कहकर कांग्रेस का विजन बताया। न्याय योजना का बखान किया। प्रचार के दौरान जब हमने दोनों प्रत्याशियों से बात की तो दोनों ने अपनी जीत के दावे किए। दोनों ने ही कहा कि उन्हें जनता का समर्थन मिल रहा है। कांग्रेस को विधानसभा की तरह लोकसभा में बदलाव की उम्मीद नजर आई तो भाजपा को पिछली बार से ज्यादा सीटें आने का भरोसा था।