उल्लेखनीय है कि किसानों को सिंचाई का लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से गंगरेल बांध बनाया गया है। इस बांध से सिर्फ खरीफ सीजन में सिंचाई के लिए ही किसानों को पानी दिए जाना हैं, लेकिन पिछले साल उन्हें रबी सीजन में भी पानी दिया गया। एक साल में दो फसल लेने के बाद भी किसान सिंचाई टैक्स पटाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। सिंचाई विभाग ने राशि वसूली के लिए उन्हें नोटिस भी दिया। इसके अलावा गांवों में शिविर भी लगाया जा रहा है, लेकिन उन पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। ऐसे में टैैक्स वसूली को लेकर फील्ड में कार्यरत कर्मचारियों की परेशानी बढ़ गई है। सूखाग्रस्त जिला होने के कारण वे किसानों पर ज्यादा दबाव भी नहीं बना पा रहे हैं।
चौपट हो गई किसानी
किसान गुहलेद राम सोनवानी, करण साहू, मनोज कुमार सिन्हा आदि का कहना है कि इस साल माहो की बीमारी ने परेशान कर दिया। हजारों रुपए की दवा का छिड़काव करने के बाद भी रोकथाम नहीं हो पाई, जिससे धान उत्पादन ठीक से नहीं पाया। सोसायटी में धान बेचने पर लिकिंग से कर्ज की वसूली की जा रही है।
किसानों से सिंचाई टैक्स की वसूली की जा रही है। इसके अलावा गावों में शिविर भी लगाया जा रहा है। एसके ताम्रकर, अधिकारी सिंचाई विभाग
सिंचाई एक नजर में
सिंचाई विभाग के सूत्रों की माने तो करीब 66 हजार 225 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई नहर नाली के माध्यम से होती है। सिंचाई टैक्स के रूप में खरीफ सीजन में प्रति एकड़ करीब 91 रुपए लिया जाता है। रबी सीजन में यह राशि बढ़ जाती है। फसल की कटाई के बाद किसानों को टैक्स पटाना अनिवार्य है, लेकिन वे दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं।