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जज्बे को सलाम: ये बच्चे सुनने-बोलने में थे कमजोर, इस डॉक्टर ने संवार दी जिंदगी

locationधमतरीPublished: Jan 01, 2018 06:03:36 pm

Submitted by:

Ashish Gupta

धमतरी के डॉक्टर ने 54 मंदबुद्धि बच्चों की जिंदगी संवार कर गजब की मिसाल पेश की है। अब वे आत्मनिर्भर बनने व्यवसायिक गुर भी सीख रहे हैं।

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शैलेंद्र नाग/धमतरी. मानसिक रूप से कमजोर बच्चों की देखभाल करना किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि बोलने व सुनने में अक्षम मंदबुद्धि बच्चे दूसरों के सामने खुद को सही तरीके से अभिव्यक्त नहीं कर पाते। लेकिन सार्थक संस्था ने इसे चुनौती के रूप में लिया और चंद सालों में ही एक-दो नहीं, बल्कि 54 मंदबुद्धि बच्चों की जिंदगी संवार दी। अब वे आत्मनिर्भर बनने व्यवसायिक गुर भी सीख रहे है।

उल्लेखनीय है कि शहर में आज से 13 साल पहले जिला अस्पताल में दंतरोग विशेषज्ञ डा. अनिल कुमार श्रीवास्तव के पास इलाज कराने के लिए एक मंदबुद्धि बच्चा आया। उसके दुख और तकलीफ ने उन्हें अंदर से काफी झकझोर दिया। फिर क्या था, देखते ही देखते सेवाभावी युवाओं की टीम तैयार हो गई और मार्च-2004 में सर गौरीशंकर श्रीवास्तव सेवा समिति का गठन कर सार्थक स्कूल की नींव रखी। आज इस स्कूल में 54 बच्चे अध्ययनरत हैं। इनका भविष्य गढऩे के लिए संस्था की अध्यक्ष समेत सभी सदस्य जुटे हुए है। टीचर सुधापुरी गोस्वामी, मैथिली गोड़े, मुकेश चौधरी, पीटी सोनी आदि यहां जिस तरह से बच्चों की सेवा कर पढ़ा रहे हैं, उससे पालकों की सारी चिंता ही दूर हो गई।
इस संस्था से जुड़े प्रभा रावत, डा. इंदरचंद जैन, स्नेहा राठौर, डा. हीरा महावर, एसके अग्रवाल, गोपाल शर्मा, डा. अनिल रावत, राकेश झंवर, वंदना मिरानी, हरख जैन, वर्षा खंडेलवाल, हरख जैन, मोती लुनिया का कहना है कि कुदरत ने इन बच्चों के साथ भले ही नाइंसाफी की हो, लेकिन संस्था के शिक्षकों ने आज इनके भविष्य को संवार दिया है।

कैचिंग पावर ज्यादा
संस्था की ओर से बच्चों को कस्टोडियल ग्रुप, टेनेबल, एज्युकेबल और वोकेशनल ग्रुप की शिक्षा दी जा रही है। आज ये विशेष बच्चे खुद से नहाना, कपड़ा पहनना, जूतों का लैस बांधना, भोजन करना और पानी पीना सब सीख गए है। इनमें कैचिंग पावर इतनी ज्यादा है कि स्कूल में कोई गेस्ट आए, तो हंसकर और हाथ जोड़कर उनका अभिवादन करते हैं।

संवारा जा रहा भविष्य
संस्था की अध्यक्ष डा. सरिता दोशी ने बताया कि इन विशेष बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए पढ़ाई के साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर बनाने स्वरोजगार के गुर भी सिखाया जा रहा हैं। पहले चरण में चार प्रोडक्ट फ्लोर क्लीनर (फिनालय), टायलेट क्लीनर, हैंडवॉश, डिसवॉश बनाना, लेबलिंग और उसका मार्केटिंग करना सिखाया जा रहा है। राज्योत्सव में स्टॉल लगाकर इन बच्चों ने लोगों को काफी आकर्षित भी किया।

मिल रही स्कालरशिप
संस्था के सेवाभावी कार्यों को देखकर जिला प्रशासन भी इनकी मदद के लिए आगे आ गया है। बीते तीन सालों से समाज कल्याण विभाग 15 सौ रुपए प्रत्येक बच्चों को स्कालरशिप दे रहा है। बच्चों की प्रतिभा को देखते हुए अब इस स्कूल को अनुदान देने की प्रक्रिया भी चल रही है।

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