उल्लेखनीय है कि धमतरी जिले में महानदी, पैरी और खारून नदी में उम्दा किस्म की रेत मिलती है। बारिश के बाद यहां स्वीकृत 32 रेत खदानों में से करीब 20 रेत खदान शुरू हो चुकी है। पर्यावरण विभाग की अनुमति के बाद एक-दो और खदानें जल्द शुरू होने की बात कही जा रही है, लेकिन धमतरी, कुरूद और मगरलोड ब्लाक की रेत खदानों में भारी अनियमितता बरती जा रही है।
सूत्रों के मुताबिक यहां महानदी, पैरी और खारून नदी में जिन रेत खदानों को पट्टा जारी किया गया है, उनमें से 60 फीसदी रेत खदानों में जिला खनिज विभाग द्वारा जारी पट्टा से दुगुना से ज्यादा जगह पर रेत की निकासी कर ली गई हैं। धमतरी कलेक्टर और खनिज अधिकारी से शिकायतों के बाद कोई नहीं हो रही है। अतत: नदी तटीय गांवों के सरपंचों ने महानदी के अस्तित्व को बचाने के लिए सीधे राज्यपाल अनुसुईयां उइके, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, मुख्य सचिव तथा राज्य खनिज सचिव से शिकायत कर अवैध उत्खनन रोकने की मांग की।
उनका कहना है कि धमतरी में खनिज विभाग रेत के अवैध उत्खनन, परिवहन के मामले में संदेह के घेरे में है। शिकायतों के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होती, इसलिए राज्य स्तरीय उडऩदस्ता टीम भेजकर कार्रवाई की मांग की थी, जिसके बाद से यहां ताबड़तोड़ कार्रवाई शुरू हो गई है। दो दिन पहले लड़ेर खदान तथा दरगहन में चैन माउंटेशन मशीनों को सील करने के बाद टीम ने अमेठी और तेंदुकोन्हा में भी छापामार कार्रवाई की।
आरटीओ भी संदेह के घेरे में
गौरतलब है कि धमतरी जिले की ग्रामीण रूट की सड़कों में 16 से 18 टन पासिंग की अनुमति हैं, लेकिन यहां दिनभर 35 से 40 टन वजनी हाइवा वाहनें रेत लेकर चल रही हैं। बाकायदा भरारी रेत खदान नाम से सोशल मीडिया में व्हाट्अस ग्रुप भी बना है। इसमें 10 चक्का हाइवा में 2 हजार रुपए तथा 12 चक्का वाहन में 25 सौ रुपए तथा अलग से 15 सौ रुपए रायल्टी का रेट लिस्ट डाला गया है।
यहां से चौबीस घंटे रेत परिवहन की सुविधा उपलब्ध होने की कही गई है। इससे सड़कों की हालत जर्जर हो रही हैं। चौबीस घंटे के दौरान करीब 6 सौ हाइवा वाहनें रेत के लिए महानदी, पैरी और खारून नदी स्थित रेत खदानों में पहुंचती हैं। इसके बावजूद क्षमता से अधिक वजनी वाहनों पर नकेल कसने के लिए परिवहन विभाग गंभीरता दिखा रहा है और न ही प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अधिकारियों की निंद्रा टूट रही है।
गांवों को नहीं हुआ कोई फायदा
नीलामी की शर्तों के मुताबिक जिन गांवों की सरहद में रेत खदान स्वीकृत हैं, वहां ठेकेदारों को सामाजिक सरोकार योजना सीआरएस फंड से वहां पेयजल व्यवस्था और पौधरोपण करना अनिवार्य हैं, लेकिन इसके तहत जिले के किसी भी गांव में रेत ठेकेदारों की ओर से पर्यावरण संरक्षण के लिए पौधरोपण किया गया और न ही पेयजल की जरूरतों को पूरा करने हैंडपम्प या बोर खनन किया गया। इससे नदी तटीय गांवों में रहने वाले लोग अपने आप को ठगा सा महसूस करने लगे है।
सूचना बोर्ड तक चस्पा नहीं
जिले के 80 फीसदी रेत घाटों में सूचना बोर्ड तक चस्पा नहीं है, जबकि यह लगाना बेहद अनिवार्य है। आम जनता के संज्ञान में लाने के लिए भूपेश सरकार ने कलेक्टर और खनिज अधिकारी को संबंधित रेत खदान का नाम, ठेकेदार का नाम, लीज अवधि, रकबा आदि की जानकारी सूचना बोर्ड में अंकित करना जरूरी है, लेकिन रेत की काली कमाई को देखते हुए ठेकेदारों ने राज्य शासन के फरमान को ही मानने से इनकार कर दिया है। रेत घाटों में ऐसा कोई सूचना बोर्ड नजर नहीं आता।
इधर, अपने ग्राम पंचायत की सीमा का अतिक्रमण कर अवैध रेत उत्खनन को लेकर ग्राम पंचायत अछोटा और कोलियारी के ग्रामीणों ने सख्त ऐतराज जताया है। अछोटा सरपंच अरूण देवांगन, कोलियारी के ग्रामीण लोकेश कुमार, डोमार राम का कहना है कि अमेठी में स्वीकृत रेत घाट का रेत खत्म हो चुका है, इसके बावजूद खनिज विभाग ने यहां सीमांकन कराकर खदान बंद नहीं किया जा रहा है। अधिकारियों के संरक्षण पाकर ही अब खदान ठेकेदार पड़ोसी गांव कोलियारी और अछोटा की सीमा में अवैध रूप से उत्खनन कर रहा है। बार-बार मनाही के बाद भी वे बाज नहीं आ रहे। ऐसे में कभी भी यहां बलवा जैसी घटनाएं घट सकती है।
खनिज निरीक्षक खिलावन कुलार्य ने कहा, जिन रेत घाटों को लेकर शिकायत मिल रही है, वहां मौके पर पहुंचकर जांच कर कार्रवाई की जा रही है। रेत का अवैध उत्खनन और परिवहन करने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
(अब्दुल रज्जाक रिजवी की रिपोर्ट)