चर्चा के दौरान पता चला कि गुजराती समाज की ओर से 17 मई 2005 को इस वृद्धाश्रम की बुनियाद रखी गई थी। इसको बनाने के पीछे उन बुजुर्गो को आश्रय देना था, जो किसी ने किसी कारण अपने परिवार से अलग हो गए है। शुरू में दो-तीन बुजुर्ग ही यहां रहते थे। धीरे-धीरे इसकी संख्या में इजाफा हो गया। पिछले 16 सालों से वृद्धाश्रम में अपनी जिंदगी गुजारने वाले 82 वर्षीय दुर्गाशंकर त्रिवेदी ने बताया कि उनकी देखरेख में ही यह वृद्धाश्रम संचालित हो रहा है। यहां भोजन से लेकर आवास की समुचित व्यवस्था की गई है। सभी बुजुर्ग एक परिवार की तरह रहते हैं। उनमें आपसी प्रेम और सद्भावना देखते बनती है।
सेवानिवृत्त शिक्षक संतराम टंडन ने बताया कि वृद्धाश्रम में रहने वाले सभी बुजुर्गो का काफी ख्याल रखा जाता है। उन्हें अपनों से दूर रहने का मलाल जरूर है, लेकिन यहां मिले अपनत्व और प्रेम से उनकी जिंदगी में आशा की किरण जाग गई है। 85 वर्षीय बुजुर्ग बनऊ राम उम्र के उस दहलीज पर पहुंच गया है,जहां कभी कुछ हो सकता है। उन्हें इस बात की खुशी है कि वृद्धाश्रम में एक साथ रहते हुए अब परिवार की यादें धूमिल होने लगी है।
उल्लेखनीय है कि बनऊ राम की 7 बेटियां है। वह अभनपुर के ग्राम थनौद का निवासी है। उसकी बेटियां इंजीनियर से वकील बन गई है। इसके बावजूद उसे वृद्धाश्रम में रहना पड़ रहा है। उसका कहना है कि शायद यह मेरे किसी कर्मो का फल है, जो मुझे भुगतना पड़ रहा है। मुझे अपने बच्चों से कोई गिला शिकवा नहीं है। 75 वर्षीय अमृता बाई का एक पुत्र है, जो खेती-किसानी करता है। तीन महीने पहले ही वह वृद्धाश्रम में आई है। उसका कहना है कि परिवारिक विवाद के चलते उसे यहां रहना पड़ रहा है। कुछ दिन जरूर अच्छा नहीं लगा, लेकिन अब जिंदगी पटरी पर आ गई है।
पता नहीं जिंदगी का क्या होता
वृद्धाश्रम में रहने वाले श्यामलाल कुकरेजा, गौतम संचेती, झमित राम, मीना बाई, ग्वालिन बाई, सोना बाई, प्रेमीन बाई, दशमत बाई, रानी बजाज, रामप्रसाद, शिवलाल की भी अपनी-अपनी कहानी है। किसी को अपनों से दर्द मिला, तो किसी के साथ कुदरत ने मजाक किया है। इनका कहना है कि कोई नहीं चाहता कि अपनों से दूर रहे। मजबूरी सब कुछ करा देती है। वृद्धाश्रम के संचालकों के लिए इनके मन में काफी श्रद्धा है। वे कहते है कि आज उन्हें यहां आश्रय नहीं मिलता तो पता नहीं जिंदगी का क्या होता।
भजन और योग से खिली जिंदगी
वृद्धाश्रम के संचालक लखमशी भाई भानुशाली का कहना है कि गुजराती समाज रचनात्मक कार्य करने में हमेशा आगे रहा है। समाज के लोगों ने अपनों के ठुकराए बुजुर्गों के दर्द को महसूस करने के बाद ही वृद्धाश्रम की बुनियाद रखी थी। पिछले 16 सालों में वृद्धाश्रम में कई बुजुर्गो को आश्रय मिला है। यहां उनकी देखरेख और सुरक्षा का माकूल इंतजाम भी है। सुबह ध्यान, योग और भजन करने के बाद वे एक साथ नाश्ता करते हैं। रात को भी ईश्वर का स्मरण करने के बाद वे सोते है। इस तरह भजन और योग करने से उनकी जिंदगी खिल उठी है।
(अब्दुल रज्जाक की रिपोर्ट)