scriptअपने बीच से डॉक्टर बनकर नाम करा रहा तो उत्साहित हो गए ऑटो वाले | Auto people were excited when he started being a doctor from his midst | Patrika News

अपने बीच से डॉक्टर बनकर नाम करा रहा तो उत्साहित हो गए ऑटो वाले

locationधारPublished: Aug 25, 2019 12:18:57 pm

Submitted by:

atul porwal

मंत्री से मिले सम्मान के बाद ऑटो यूनियन ने किया डॉ. भूर्रा का सम्मान, यूनियन की मांग पर डॉक्टर ने फिर चलाया ऑटो, मजदूरी और ऑटो चलाकर पढ़ाई की और आज डॉक्टर बनकर कमा रहे नाम

अपने बीच से डॉक्टर बनकर नाम करा रहा तो उत्साहित हो गए ऑटो वाले

अपने बीच से डॉक्टर बनकर नाम करा रहा तो उत्साहित हो गए ऑटो वाले

धार.
कभी ऑटो चलाकर तो कभी मजदूरी कर मजदूरों की बस्ती ब्रह्माकुंडी से गिरिराज नाम का एक युवक डॉक्टर बन गया। एमबीबीएस करने के बाद उसने डॉक्टरी में मास्टर डीग्री भी हासिल की और सरकारी नौकरी में आ गया। यहां काम करते हुए उसने इतना नाम कमाया कि कई बार सम्मानित भी हुआ। हाल ही में भोपाल में आयोजित सम्मान समारोह में जब शिक्षा मंत्री ने डॉ. भूर्रा का सम्मान किया तो धार के ऑटो वाले गौरव महसूस करने लगे। वे इतने उत्साहित हुए कि शुक्रवार को उन्होंने इंदौर नाके पर डॉ. भूर्रा का सम्मान किया। उनके साथ पहुंचे डॉ. नरेंद्र पवैया को भी हार पहनाकर उनका भी सम्मान किया गया। यही नहीं उनकी इच्छा पर बरसों बाद डॉक्टर ने फिर ऑटो चलाया। करीब डेढ़ दर्जन ऑटो वाले डॉ. भूर्रा को जिला अस्पताल तक छोडऩे गए। यहां डॉक्टर ने अपने पुराने ऑटो वाले साथियों के साथ फोटो खिंचवाया और ऑटो वालों ने सिविल सर्जन डॉ. एमके बौरासी का भी सम्मान किया।
अस्पताल के बाहर ऑटो नंबर 16
किसी जमाने में जिला अस्पताल के बाहर ऑटो नंबर 16 की खूब डिमांड थी। मसला यह नहीं था कि उसमें भाड़ा कम लगता, कारण यह था कि जो उस ऑटो को चलाता वह डॉक्टर बनने की इच्छा रखता था, जो अपने ऑटो में बैठे मरीज और उनके परिजन से बीमारी के बारे में चर्चा करता और इतने में टाइम पास होकर वे अस्पताल पहुंच जाते। ऑटो नंबर १६ आज के डॉक्टर और तब के मेहनतकश युवा गिरिराज भूर्रा चलाते थे। मेहनत मजदूरी का नाम सफलता होती है आखिर डॉक्टर बनकर भूर्रा ने यह साबित कर दिखाया। पारिवारिक गरीबी के कारण गिरिराज को पढ़ाई की रकम के लिए मेहनत मजूदरी करना पड़ती थी। डॉ. भूर्रा ने बताया कि दिनभर मेहनत करने के बाद जब वे पढ़ाई करते थे तब पिता सुखराम और मां श्यामा बाई उन्हें खूब मदद करते थे। हालांकि पिता को यह उम्मीद नहीं थी कि बेटा डॉक्टर बन जाएगा, लेकिन मां को पूरा भरोसा था कि बेटा एक दिन इतना नाम कमाएगा कि परिवार की स्थिति ही बदल जाएगी। दरअसल डॉ. भूर्रा के परिवार में सभी मेहनत मजदूरी करते हैं और कोई इतना पढ़ालिखा नहीं है।
डॉक्टरों को देखकर जागी लालसा
डॉक्टर भूर्रा ने बताया कि जब वे ऑटो चलाते थे तो अकसर उनका काम ऑटो से कई मरीजों को अस्पताल लाने का होता था। मरीजों के मुंह से डॉक्टर के प्रति प्रेम और डॉक्टरों की प्रतिष्ठा देखकर ही उनमें डॉक्टर बनने की लालसा जागी। डॉ. भूर्रा निश्चेतना प्रभारी हैं, जिनको मृत्यु दर कम करने हेतु किए गए उत्कृष्ठ कार्य के लिए सम्मानित किया गया।

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