मिट्टी की उपलब्धता घटी, महंगे हो गए मटके
देशी फ्रिज की मांग बढ़ी

धामनोद. गर्मी शुरू होते ही नगर में देशी फ्रिज के नाम से मशहूर मिट्टी के मटकों की मांग बढ़ गई है। शहर के अलावा अन्य क्षेत्र के भी नगर में मटके बेचे जा रहे हैं। कुछ तो मोहल्लों व बाजारों में फेरी लगाकर बेच रहे हैं। शनिवार को बाजार में मटके बचने आए कुम्हार ने बताया कि मिट्टी नहीं मिलने से मटके इस बार महंगे बेचना पड़ रहे हैं, ऊपर से महंगाई की मार के कारण उन्हें मटके बनाने में भी परेशानी आ रही है। कभी 10 से 25 रुपए में बिकने वाले मटके इन दिनों 50 से 150 रुपए तक बिक रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि आधुनिकता के इस दौर में भी मटकों की मांग बनी हुई है। गर्मी शुरू होते ही यह मांग और बढ़ गई है, क्योंकि कई लोग फ्रिज की अपेक्षा मटके का पानी अधिक पसंद करते हैं, लेकिन इनकी कीमत भी लगातार बढ़ रही है। इसका मुख्य कारण मिट्टी की उपलब्धता घट गई है। नगर में मटके बेच रहे कुम्हार ने बताया कि पहले घर के आसपास ही मिट्टी की खदानों में मटके बनाने वाली मिट्टी सहजता से उपलब्ध हो जाती थी, लेकिन अब मिट्टी मिलना इतना आसान नहीं रहा। शहर व इसके आसपास मिट्टी की खदानें खत्म हो चुकी है। इसलिए मिट्टी भी अब दूर- दराज से खरीदकर लाना पड़ रही है।
सडकों पर सजने लगी दुकानें
जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है, शहर की सडक़ों पर मटकों की दुकाने लगने लगी है। इनमें छोटे-बड़े सभी प्रकार के मटके शामिल हैं। कुछ प्लेन हैं तो कुछ में कारीगरी की गई है। अब रेत से बने मटकों की भी मांग बढ़ी है। बताया जा रहा है कि रेत व मिट्टी से निर्मित मटको में पानी जल्दी ठंडा हो जाता है। नगर के महेश्वर रोड पर मटकों की दुकाने देखी जा सकती हैं। बताया गया कि धामनोद में अधिकांशत काली मटके बनाए जाते हैं, लेकिन इस वर्ष गुजरात के लाल मटके तथा भोपाल के सीहोर के पास से बड़ी रांझन भी बिक्री के लिए लाई गई है। मटका बाजार में अब बड़ी संख्या में खरीददार पहुंच रहे हैं। पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष भाव अधिक रहे।
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