बता दें कि, कोर्ट में पेश याचिका में कहा गया है कि, भोजशाला सरस्वती मंदिर है, यहां मुस्लिमों को नमाज पढ़ने से रोका जाए। याचिका में ये मांग भी की गई कि, परिसर में मां सरस्वती की प्रतिमा फिर से स्थापित की जाए। साथ ही, स्थान की पूरी वीडियोग्राफी के साथ साथ कलर्ड फोटोग्राफी कराई जाए। सालों से चले आ रहे भोजशाला विवाद में हिंदू पक्ष ने वकील हरिशंकर जैन के जरिए याचिका दायर कर पूरा परिसर हिंदुओं को देने की मांग की गई है।
हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की अध्यक्ष रंजना अग्निहोत्री व कुलदीप तिवारी मोहित गर्ग, आशीष गोयल, सुनील सारस्वत, रोहित खंडेलवाल की ओर से दायर की गई याचिका के अनुसार, भोजशाला की 33 पुरानी तस्वीरें भी दाखिल की गई हैं। तस्वीरों पर गौर करें तो उसमें देवी-देवताओं के चित्र और संस्कृत में श्लोक लिखे नजर आ रहे हैं। याचिका में मां वाग्देवी की प्रतिमा को लंदन के संग्रहालय से वापस मंगाकर मंदिर में स्थापित कराने की मांग की गई है।
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राजा भोज ने की थी स्थापना
ऐतिहासिक भोजशाला, राजा भोज द्वारा स्थापित सरस्वती सदन है। परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईस्वी तक शासन किया था। 1034 में उन्होंने सरस्वती सदन की स्थापना की थी। यह एक महाविद्यालय था जो बाद में भोजशाला के नाम से मशहूर हुआ। राजा भोज के शासनकाल में ही यहां मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की गई थी। इतिहासकारों के मुताबिक साल 1875 में खुदाई के दौरान यह प्रतिमा यहां मिली थी। 1880 में अंग्रेजों का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड इसे लेकर इंग्लैंड चला गया था। यह वर्तमान में लंदन के संग्रहालय में रखी है।
याचिकाकर्ता के वकील बोले-
हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की ओर से भोजशाला को लेकर याचिका दायर की गई है। वहीं, याचिका दायर करने वाले वकील हरिशंकर जैन ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि, सरस्वती मंदिर पहले उन लोगों ने मजार बनाई। फिर यहां कमाल मौला मस्जिद होने का दावा किया जाने लगा। अब हिंदू पक्ष ये दावा कर रहा है कि, भोजशाला में राजा भोज ने सरस्वती सदन का निर्माण कराया था। उस समय ये शिक्षा का बड़ा केंद्र माना जाता था।
आठ लोगों को कोर्ट ने जारी किया नोटिस
हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने याचिका स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार, राज्य सरकार, आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, एमपी पुरातत्व विभाग, धार कलेक्टर, एसपी, मौलाना कमाल वेलफेयर सोसाइटी और भोजशाला समिति को नोटिस जारी किया है।
मंगलवार को पूजा और जुमे को नमाज
गौरतलब है कि भोजशाला भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित 11वीं शताब्दी का स्मारक है। साल 2003 में एएसआई द्वारा की गई व्यवस्था के अनुसार, हिंदू हर मंगलवार को भोजशाला परिसर में पूजा की जती है, जबकि मुसलमान हर शुक्रवार को परिसर में नमाज अदा करते हैं।
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यहां देखने को मिलती है हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल
बता दें कि, भोजशाला का विवाद लंबे समय से चला आ रहा है। मगर हर सरस्वती पूजा के अवसर पर दोनों समुदाय के लोग सांप्रदायिक सौहार्द की शानदार मिसाल पेश करते हैं। एक तरफ मां सरस्वती की पूजा की जाती है तो दूसरी तरफ नमाज पढ़ी जाती है। दोनों धर्म के लोगों एक-दूसरे की मदद करते हैं। इसी बीच एक हिंदू संगठन ने हाईकोर्ट की इंदौर पीठ में एक याचिका दायर कर दी है, जिसे कोर्ट द्वारा स्वीकार भी कर लिया गया है।
विवाद की शुरुआत
विवाद की शुरुआत 1902 में हुई जब धार के तत्कालीन शिक्षा अधीक्षक काशीराम लेले ने मस्जिद के फर्श पर संस्कृत के श्लोक खुदे देखे। इस आधार पर उन्होंने इसे भोजशाला बताया। 1909 में धार रियासत ने भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया। इसके बाद यह पुरातत्व विभाग के अधीन आ गया।
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