ये है मानसिक बीमारी की पहचान
-नींद ना आना या देर से नींद आना।
-उल्टा सीधा बोलना, गाली गलौज करना।
-चिंता, घबराहट, उलझन आदि रहना।
-किसी काम में मन नहीं लगना।
-जरूरत से ज्यादा गुस्सा आना।
-बेहोशी के दौरे आना।
-आत्महत्या करने का विचार आना।
-बुद्धि का अपेक्षाकृत विकास नहीं होना।
-सरदर्द या भारीपन बना रहना।
-बेवजह शक करते रहना।
-नींद ना आना या देर से नींद आना।
-उल्टा सीधा बोलना, गाली गलौज करना।
-चिंता, घबराहट, उलझन आदि रहना।
-किसी काम में मन नहीं लगना।
-जरूरत से ज्यादा गुस्सा आना।
-बेहोशी के दौरे आना।
-आत्महत्या करने का विचार आना।
-बुद्धि का अपेक्षाकृत विकास नहीं होना।
-सरदर्द या भारीपन बना रहना।
-बेवजह शक करते रहना।
दोपहर दो बजे तक शिविर, बाद में प्रशिक्षण
सुबह ९ बजे से दोपहर दो बजे तक मन कक्ष में मानसिक मरीजों से चर्चा कर उनकी बीमारी समझने की कोशिश की गई। डॉ. अपूर्वा तिवारी ने बताया कि मानसिक रूप बीमार मरीजों से उनकी ही भाषा या सरल अंदाज में बात करना होती है, जिससे उनका ठीक से ईलाज किया जा सके। दोपहर दो बजे बाद जिला अस्पताल के डॉक्टरों का प्रशिक्षण शिविर लगा, जिसमें सभी को मानसिक बीमारी पहचानने, उससे ग्रसित मरीज का उपचार करने जैसे तरीकों के बारे में बताया गया।
सुबह ९ बजे से दोपहर दो बजे तक मन कक्ष में मानसिक मरीजों से चर्चा कर उनकी बीमारी समझने की कोशिश की गई। डॉ. अपूर्वा तिवारी ने बताया कि मानसिक रूप बीमार मरीजों से उनकी ही भाषा या सरल अंदाज में बात करना होती है, जिससे उनका ठीक से ईलाज किया जा सके। दोपहर दो बजे बाद जिला अस्पताल के डॉक्टरों का प्रशिक्षण शिविर लगा, जिसमें सभी को मानसिक बीमारी पहचानने, उससे ग्रसित मरीज का उपचार करने जैसे तरीकों के बारे में बताया गया।