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दिव्यांग सर्टिफिकेट के लिए आई मुक बधिर तो जाना पड़ा इंदौर

locationधारPublished: Aug 18, 2019 11:48:41 am

Submitted by:

atul porwal

नाक, कान, गला रोग का डॉक्टर नहीं होने से परेशान हो रहे मरीज

Dhar

Dhar

धार.
नाक, कान और गले की परेशानी से प्रतिदिन कई मरीज आते हैं, लेकिन जिला अस्पताल में इस बीमारी से निजात दिलवाने वाला कोई डॉक्टर ही नहीं है। हालांकि सामान्य बीमारी पर मौजूद डॉक्टर दवाई देकर राहत पहुंचाने का प्रयास करते हैं, लेकिन बड़ी बीमारी पर उन्हें इंदौर रेफर कर दिया जाता है। शनिवार को भी बदनावर तहसील के टकरावदा गांव की मुक बधिर वंदना अपने पिता अविनाश पाटीदार के साथ दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने आई थी, लेकिन ईएनटी डॉक्टर नहीं होने के कारण सिविल सर्जन ने उन्हें इंदौर जांच के लिए भेज दिया।
सिविल सर्जन डॉ. एमके बौरासी का कहना है कि मुक बधिर के लिए दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाते समय डॉक्टरी जांच लगाना जरूरी होता है। धार जिला अस्पताल में ईएनटी डॉक्टर नहीं होने के कारण यवुती को इंदौर एमवाय अस्पताल भेजा गया है। वहां से डॉक्टरी पर्ची आने के बाद जिला अस्पताल में उसका प्रमाण पत्र बना दिया जाएगा। युवती के पिता अविनाश का कहना है कि उनकी बच्ची जन्म से ही ना तो सुन सकती है और ना ही उसके मुंह से आवाज निकलती है। मुक बधित होने के कारण उसे ६टी कक्षा से ही इंदौर के मुक बधिर स्कूल में भर्ती करवा दिया था, जो अब ग्रेज्युएट हो चुकी है। वंदना आटर््स से ग्रेज्युएशन कर अब वह आगे की पढ़ाई कर रही है।
पर्ची तो बनती है रोग में लिख देते हैं कुछ और
डॉक्टर को दिखाने से पहले मरीज को रोगी कल्याण समिति की पर्ची बनवाना पड़ती है। इसके लिए 10 रुपए शुल्क है। पर्ची बनाने से पहले काउंटर पर बैठा व्यक्ति बीमारी का नाम पूछता है, लेकिन अस्पताल में ईएनटी नहीं होने के कारण बीमारी का नाम बदलकर पर्ची बना दी जाती है। पर्ची बनाने वालों का कहना है कि मरीज को भटकना ना पड़े इसलिए पर्ची बनाकर डॉक्टर के पास भेज देते हैं। हो सकता है उनका ईलाज हो जाए और वे परेशानी से बच जाएं।

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