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घर पर परिजन नहीं रखते ध्यान

locationधारPublished: Jun 15, 2018 01:28:03 am

‘हम आराम से रहकर दो वक्त का भोजन तो कर लेते हैं’

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घर पर परिजन नहीं रखते ध्यान

खलघाट. क्या करें साहब? बच्चे घर में परेशान करते हैं। इस बुढ़ापे में काम कर नहीं सकते। आखिर जाएं तो जाएं कहां? यह वृद्धाश्रम ही हमारा आसरा है। यहां हम कम से कम आराम से रहकर दो वक्त भोजन तो कर लेते हैं। यह शब्द थे खलघाट के समीप खल बुजुर्ग के आशा निकेतन वृद्धाश्रम के बुजुर्गों के। गौरतलब है कि पूरे क्षेत्र में बुजुर्गों के लिए एक ही वृद्धाश्रम है, जिस का संचालन आशा ग्राम से किया जाता है। इस आश्रम में 22 महिलाएं एवं 12 पुरुष रहते हैं, जिसमें कुछ पति-पत्नी भी साथ रहते हैं। पीड़ा बताते हुए आश्रम में करीब 6 वर्षों से रह रहे 85 वर्षीय गुलाबसिंह तंवर ने बताया कि परिवार में सब है, फिर भी बच्चे मुझे रखते नहीं। यहां पर अब हमारा जीवन बीत रहा है। झापड़ी निवासी काशीराम बालू ने बताया, मेरे बच्चे का हाथ टूट गया। कमाई का कोई साधन नहीं, इसलिए मजबूरी में यहां पर रहना पड़ रहा है। गौरतलब है कि आशा निकेतन आश्रम में करीब 35 महिलाएं एवं पुरुष रह रहे हैं। इस वृद्धाश्रम को शासन से करीब 85 प्रतिशत राशि खर्च करने के लिए मिलती है। बाकी खर्च की राशि वृद्धाश्रम के ट्रस्टी एवं दानदाता मिलकर 15 प्रतिशत खर्च का वहन करते हैं। आश्रम के अध्यक्ष गजेंद्र बजाज के अनुसार, आश्रम में सुधार एवं अन्य सुझाव के लिए ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के माध्यम से शासन को प्रस्ताव भेजा है। यदि यहां पर सुधार होता है, तो वृद्धों को अधिक लाभ मिलेगा।
पेंशन नहीं मिल पाती
बुजुर्गों ने यह भी बताया कि यहां के रहवासी पेंशन के लाभ से वंचित हैं, क्योंकि कागजी कार्रवाई के झमेले में समय लग जाता है और हम जहां के मूल निवासी थे। वहां अब जा नहीं सकते। अब बुढ़ापे में भागदौड़ भी तो होती नहीं है। वृद्धाश्रम के मात्र दो या तीन लोगों को ही वृद्धावस्था पेंशन का लाभ मिल रहा है। बता दें कि आश्रम में बड़वानी, खरगोन, धार, इंदौर जिलों के अलावा महाराष्ट्र के भी बुजुर्ग भी सालों से रह रहे हैं।
मात्र 35 व्यक्तियों की रहने की क्षमता
आश्रम में सिर्फ 35 महिला-पुरुष बुजुर्ग ही रह रहे हैं। आश्रम के सेवादार भगवान धनगर ने बताया, यहां पर मात्र 32 कमरे बने हुए हैं। इसमें अभी कुल 35 व्यक्ति रह रहे हैं। कई बार आसपास के बुजुर्ग यहां पर आते हैं, लेकिन मजबूरी में उन्हें जगह के अभाव रखने से मना करना पड़ता है। यदि यहां पर सहायता राशि से कमरों का निर्माण हो जाता है तो यहां आने वाले बुजुर्गों की संख्या बढ़ जाएगी, जिसका उनको लाभ मिलेगा।
मूल सुविधाओं से वंचित
आश्रम में बुजुर्गों से चर्चा करने के दौरान उमाबाई एवं दृष्टिहीन संतोष कुमार गांवशिंदे दिव्यांग गोपीबाई आदि ने बताया कि वैसे तो आश्रम की सुविधा पूर्ण रूप से अनुकूल है। फिर भी यहां पर पानी की समस्या आ जाती है। साथ आसपास बाउंड्रीवाल नहीं होने से ग्रामीण एवं मवेशी आश्रम के अंदर तक आ जाते हैं। यहां पर ाउंड्रीवाल एवं अन्य सुधार जरूरी है।
जाना पड़ता है धामनोद या कसरावद
(वृद्धाश्रम) के बुजर्गों ने बताया कि 60 से अधिक उम्र में यहां पर रहने वाला प्रत्येक बुजुर्ग किसी ने किसी बीमारी की चपेट में हंै। ऐसे में बीमार होने पर 25 किमी दूर कसरावद या 15 किमी धामनोद जाना पड़ता है। आश्रम में किसी भी प्रकार से चिकित्सीय सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पाती हैं।
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