कुछ देर परिसर के शेड में रहे तो गर्भवति को पेट में दर्द और बढ़ गया और हल्ला हुआ कि शेड में ही डिलेवरी हो गई। खबर सुनते ही मेटरनिटी वार्ड से दो स्टाफ नर्स और आयाबाई आई और गर्भवती को वार्ड में ले गए। हालांकि तब तक अनिता गर्भ से ही थी, लेकिन उसके पेट का दर्द बढ़ गया था। आरएमओ डॉ. संजय जोशी ने डॉ. नंदिता निगम को फोन कर जिला अस्पताल भेजा तो उन्होंने डॉ. गिरीराज भूर्रा की मदद से ऑपरेशन कर डिलेवरी करवाई। अब अनिता व उससे जना बच्चा स्वस्थ हैं। हालांकि जन्मे बच्चे को अभी एसएनसीयू में रखा है, जिसकी कुछ जांचें की जा रही है।
जब डॉक्टर ने गर्भवती की जांच के बाद ऑपरेशन का कहा तो पति चिल् लाचोट करने लगा। उसका कहना था कि आप लोग गरीबों के साथ ऐसा ही करते हो। हमें नहीं करवाना ऑपरेशन। और रात 3.20 बजे जिला अस्पताल से चले गए। लेकिन बुधवार सुबह करीब 8 बजे जब अनिता का ऑपरेशन कर डिलेवरी करवाई और मरीज अनिता व उससे जन्मे बच्चे की ठीक होने की बात सुनी तो वह कुछ बोलने को तैयार नहीं था। उसका कहना था कि रात में जो भी हुआ उसके बारे में कुछ नहीं कहना।
इधर अस्पताल सूत्र बता रहे हैं कि जिला अस्पताल आने वाली गर्भवती महिलाओं के साथ हर रोज 5-6 आशा कार्यकर्ताएं जिला अस्पताल के मेटरनिटी वार्ड में रहती है। जांच पड़ताल के बाद परिजन को बहला फुसलाकर उन्हें निजी अस्पताल ले जाती है, जहां पहले से उनका कमिशन बंधा रहता है। इस मामले में भी यही बात सामने आ रही है। हालांकि इस मामले में कोइ्र बोलने को तैयार नहीं है, लेकिन अनिता की जांच के बाद जब ऑपरेशन की बात हुई तो आशा कार्यकर्ता ने ही परिजन से कहा कि पहली डिलेवरी में ऑपरेशन की जरूरत नहीं। मेरे साथ चलो किसी निजी अस्पताल में दिखाएंगे।
परिजन की मर्जी के बगैर जबरन ऑपरेशन नहीं कर सकते। जांच के बाद जब गर्भवती की स्थिति ठीक नजर नहीं आई तो ऑपरेश के लिए कहा था। उन्होंने मना कर घर जाने की बात कही तो जाने दिया। फिर लौटकर आए तो हमने अपना फर्ज निभाया। इसके बारे में कोई कुछ भी कहे हमें फर्क नहीं पड़ता। हम अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं।
-डॉ. एमके बौरासी, सिविल सर्जन