पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत काल में जब युधिष्ठिर जुए में कौरवों से राज्य हार गए थे तब श्रीकृष्ण ने पांडवों को अनंत चतुर्दशी व्रत करने को कहा था। कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों से कहा इस व्रत को करने से हर हाल में राज्य वापस मिल जाएगा। भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि अनंत श्रीहरि के ही स्वरूप हैं।
व्रत करने के विधान अनंत चतुर्दशी पर व्रत करने का भी विधान है। इस व्रत में स्नान करने के बाद अक्षत, दूब, शुद्ध रेशम या कपास के सूत से बने और हल्दी से रंगे 14 गांठ के अनंत को सामने रख कर पूजा किया जाता है। पूजा करने के बाद हवन भी किया जाता है। इसके बाद अनंतदेव का ध्यान किया जाता है।
मान्यता है कि अनंत चतुर्दशी का व्रत करने वालों को एक समय बिना नमक वाला भोजन करना चाहिए। अगर इस दिन कुछ न खाएं तो और ही शुभ माना जाता है। अनंत चतुर्दशी पर शुभ और सामाजिक कार्यों में भाग लेना चाहिए। कहा जाता है कि जो भी अनंत चतुर्दशी पर विधि-विधान से अनंत देव की पूजा करता है, उस पर श्रीहरि की कृपा बरसती है।