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चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक ‘पंचप्रदीप’ से करें ये गणेश आरती

Published: Sep 07, 2018 12:11:32 pm

Submitted by:

Shyam

गणेश उत्सव- चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक ‘पंचप्रदीप’ से करें ये गणेश आरती

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चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक ‘पंचप्रदीप’ से करें ये गणेश आरती

देवी देवता की पूजा का एक महत्वपूर्ण अंग होता है आरतीं, शास्त्रों में आरती को ‘आरक्तिका’ ‘आरर्तिका’ और ‘नीराजन’ भी कहते हैं । आगामी गणेश उत्सव में भगवान श्री गणेश जी को पूजा-आरती से प्रसन्न कर उनकी कृपा के अधिकारी बन सकते हैं । कहा जाता हैं कि गणेश जी की स्थापित प्रतिमा की दोनों संध्याओं में विशेष आरती और स्तुति करने का शास्त्रोंक्त विधान है । वैसे भी पूजा, यज्ञ-हवन, षोडशोपचार पूजा आदि के बाद अंत में आरती की ही जाती है । अगर इन दस दिनों तक श्रीगणेश की पांच बत्तियों वाले दीपक से दोनों समय सुबह और शाम को श्रद्धापूर्वक आरती की जाती है, इसे ‘पंचप्रदीप’ भी कहते हैं । एक, सात या उससे भी अधिक बत्तियों से आरती की जाती है । आरती की थाल को इस प्रकार घुमाएं कि ॐ की आकृति बन सके । आरती को भगवान् के चरणों में चार बार , नाभि में दो बार , मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार घुमाना चाहिए ।

आरती से पूर्व इस मंत्र का उच्चारण करें

व्रकतुंड महाकाय, सूर्यकोटी समप्रभाः ।
निर्वघ्नं कुरु मे देव, सर्वकार्येरुषु सवर्दा ।।
ॐ गजाननं भूंतागणाधि सेवितम्, कपित्थजम्बू फलचारु भक्षणम् ।
उमासुतम् शोक विनाश कारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् ।।

अथ श्रीगणेश आरती

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।
माता जा की पार्वती, पिता महादेवा ॥ जय गणेश देवा…

एकदन्त दयावन्त चार भुजाधारी
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी ।।

अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।। जय गणेश देवा…

पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा ॥

‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥


गणेश स्तुति

1- गणपति की सेवा मंगल मेवा सेवा से सब विघ्न टरें ।
तीन लोक तैंतीस देवता द्वार खड़े सब अर्ज करे ॥
ऋद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विरजे आनन्द सौं चंवर दुरें ।
धूप दीप और लिए आरती भक्त खड़े जयकार करें ॥

2- गुड़ के मोदक भोग लगत है मूषक वाहन चढ़े सरें ।
सौम्य सेवा गणपति की विघ्न भागजा दूर परें ॥
भादों मास शुक्ल चतुर्थी दोपारा भर पूर परें ।
लियो जन्म गणपति प्रभु ने दुर्गा मन आनन्द भरें ॥

3- श्री शंकर के आनन्द उपज्यो, नाम सुमरयां सब विघ्न टरें ।
आन विधाता बैठे आसन इन्द्र अप्सरा नृत्य करें ॥
देखि वेद ब्रह्माजी जाको विघ्न विनाशन रूप अनूप करें।
पग खम्बा सा उदर पुष्ट है चन्द्रमा हास्य करें ।
दे श्राप चन्द्र्देव को कलाहीन तत्काल करें ॥

4- चौदह लोक में फिरें गणपति तीन लोक में राज करें ।
उठ प्रभात जो आरती गावे ताके सिर यश छत्र फिरें ।
गणपति जी की पूजा पहले करनी काम सभी निर्विध्न करें ।
श्री गणपति जी की हाथ जोड़कर स्तुति करें ॥

उपरोक्त आरती पूर्ण होने के बाद कपूर की आरती कर पुष्पाजंली और शांतिपाठ करके सभी को प्रसाद बांटे ।
समाप्त

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