इसके कारण गर्मी में हर साल हजारों भक्त यहां आते हैं। हालांकि अक्टूबर से अप्रैल तक बर्फ के कारण आना कठिन होता है और यहां बर्फ जमी रहने से यात्रा बंद रहती है। जानकारों के अनुसार ऋषिकेश-बद्रीनाथ सांस-रास्ता पर गोविंदघाट से पैदल चढ़ाई से ही इस गुरुद्वारे तक पहुंचा जा सकता है। इस गुरुद्वारे के कपाट 20 मई को खुलेंगे, लेकिन कुछ कारणों से यहां तक पहुंचने की राह आसान नहीं है।
हेमकुंड साबिह यात्रा मार्ग खुलने में महज चार दिन बचे हैं और अभी भी रास्ते में बड़े पैमाने पर बर्फ पड़ी है। बीते दिनों हेमकुंड साहिब यात्रा मार्ग खुलने को लेकर चमोली जिलाधिकारी हिमांशु खुराना ने समीक्षा बैठक की। इस दौरान उन्होंने 20 मई को हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे के गेट खुलने से पहले सभी तैयारियों के पूरा होने की उम्मीद जताई। उन्होंने बताया कि गोविंदघाट और घांघरिया गुरुद्वारे में रंग-रोगन का काम पूरा हो गया है। दूसरी ओर अटलाकुड़ी से हेमकुंड साहिब तक सेना के जवान और मजदूर रास्ते से बर्फ हटाने में जुटे हैं।
कल जत्था होगा रवाना
बता दें कि हेमकुंड साहिब के ग्लेशियर प्वाइंट पर फिलहाल 6 फीट ऊंचाई तक बर्फ जमी है, जिसे देखते हुए यहां करीब 60 मीटर तक बर्फ के बीचोंबीच आने-जाने के लिए अलग-अलग रास्ते बनाए जा रहे हैं। हेमकुंड साहिब में गुरुद्वारे के मुख्य द्वार पर भी करीब चार फीट बर्फ है। साथ ही चार क्विंटल गेंदे के फूल और गुलाब की पत्ती से गुरुद्वारे को सजाने का काम किया जा रहा है। इधर, 17 मई को ऋषिकेश से श्रद्धालुओं का पहला जत्था पंच प्यारों की अगुवाई में हेमकुंड साहिब के लिए रवाना होगा।
जरूरी है यह जानना, नहीं मिलेगी अनुमति
गुरुद्वारा प्रबंधन के अनुसार गोविंदघाट से दोपहर दो बजे बाद किसी भी तीर्थयात्री को घांघरिया नहीं भेजा जाएगा और घांघरिया से सुबह 10 बजे के बाद तींर्थयात्री हेमकुंड साहिब नहीं भेजे जाएंगे। इसके अलावा हेमकुंड की तीर्थयात्रा के लिए पंजीकरण कराना जरूरी है। बीमार या सांस से संबंधित बीमारी वाले तीर्थयात्रियों के साथ ही बच्चों को यात्रा पर आने पर रोक है। हालांकि जून में जब यहां की बर्फ पिघल जाएगी तब रोके गए लोगों को भी यात्रा पर आने की अनुमति दे दी जाएगी।
कैसे होती है यात्रा, रात्रि विश्राम की नहीं व्यवस्था
हेमकुंड साहिब के लिए टेक-ऑफ प्वाइंट ऋषिकेश से 275 किलोमीटर दूर गोविंदघाट शहर है। यहां से 13 किलोमीटर की दूरी पर घंगारिया गांव तक रास्ता बनाया गया है, यहां एक और गुरुद्वारा भी है जहां अक्सर तीर्थयात्री रात बिताते हैं। इसके अलावा यहां कुछ होटल, तंबू और गद्दे के साथ एक कैम्प ग्राउंड भी हैं, यहां से 6 किलोमीटर तक पत्थर के रास्ते पर चढ़ाई पार करते हुए चलना पड़ता है। हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे के पास रात्रि में विश्राम की कोई व्यवस्था नहीं है। इसलिए यहां से दोपहर 2 बजे तक यात्रियों को वापस भेज दिया जाता है।
श्रद्धालुओं का मानना है कि सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने अपने पूर्व जन्म में कई वर्षों तक यहां महाकाल की आराधना की थी, बाद में उन्होंने फिर जन्म लिया। इस स्थान का उल्लेख गुरु गोविंद सिंह की आत्मकथा में है। यहां सात पर्वत चोटी के चट्टान पर निशान साहिब सजा हुआ है। यहां बड़ी संख्या में सिख श्रद्धालु मत्था टेकने आते हैं। यह जगह रामायणकालीन लोकपाल भी माना जाता है। मान्यता है कि यहां लक्ष्मणजी ने तपस्या की थी। यहां लक्ष्मणजी का भी मंदिर है। मान्यता है कि यहां पांडु ने भी तपस्या की थी।
कैसे अस्तित्व में आया हेमकुंड साहिब
1. हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे की भौगोलिक स्थिति का पता सबसे पहले विद्वान तारा सिंह नरोत्तम ने लगाया था। ये हेमकुंड साहिब की भौगोलिक स्थिति का पता लगाने वाले पहले सिख थे। इसके बारे में जानकारी 1884 में प्रकाशित श्री गुड़ तीरथ संग्रह में मिलता है, जिसमें 508 सिख धार्मिक स्थलों में से एक के रूप में हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे का उल्लेख किया गया है।
2. एक सेवानिवृत्त फौजी संत सोहन सिंह ने भाई वीर सिंह का वर्णन पढ़कर हेमकुंड साहिब को खोजने का फैसला किया था। बाद में 1934 में वो सफल हुए।
3. इसके बाद 1939 में संत सोहन सिंह ने अपनी मौत से पहले हेमकुंड साहिब के विकास कार्य की जिम्मेदारी मोहन सिंह को सौंप दी। इससे पहले 1937 में इस गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब को स्थापित किया गया था।
4. 1960 में मोहन सिंह ने सात सदस्यीय कमेटी बनाकर इस तीर्थ यात्रा के संचालन की जिम्मेदारी दे दी। ऐसे पहुंचते हैं गुरुद्वारा, रास्ते में ट्रैकिंग
हेमकुंड साहिब तक की यात्रा की शुरुआत अलकनंदा नदी के किनारे गोविंदघाट से होती है। इसके आगे घांघरिया तक 13 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है। इसके आगे का 6 किलोमीटर का सफर और भी ज्यादा मुश्किलों से भरा है। इससे पहले झूलते हुए ब्रिज के जरिए गोविंदघाट पहुंचा जाता है।